hindisamay head


अ+ अ-

कविता

उम्र लंबी तो है मगर बाबा

शीन काफ़ निज़ाम


उम्र लम्बी तो है मगर बाबा
सारे मंज़र हैं आँख भर बाबा

जिंदगी जान का ज़रर बाबा
कैसे होगी गुज़र बसर बाबा

और आहिस्ता से गुज़र बाबा
सामने है अभी सफ़र बाबा

तुम भी कब का फ़साना ले बैठे
अब वो दीवार है न दर बाबा

भूले बिसरे ज़माने याद आए
जाने क्यूँ तुमको देख कर बाबा

हाँ हवेली थी इक सुना है यहाँ
अब तो बाकी हैं बस खँडहर बाबा

रात की आँख डबडबा आई
दास्ताँ कर न मुख़्तसर बाबा

हर तरफ सम्त ही का सहरा है
भाग कर जाएँगे किधर बाबा

उस को सालों से नापना कैसा
वो तो है सिर्फ़ साँस भर बाबा

हो गई रात अपने घर जाओ
क्यूँ भटकते हो दर-ब-दर बाबा

रास्ता ये कहीं नहीं जाता
आ गए तुम इधर किधर बाबा


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में शीन काफ़ निज़ाम की रचनाएँ