लक्षण :- अर्थ बदलि के शब्दप यदि आवे केतनो बार।
यमक नाम के होत तब अलंकार तइयार॥
उदाहरण (सवैया) :-
बनिये हमरा नइखे कि उहाँ चलि के हर और कुदार चलायीं।
बनिये नइखे हमरा लगे कि हम बाहरसे बनिहार बुलायीं।
बनिये न उदार इहाँ कवनो हम जा के जहाँ से उधार ले आयीं।
तब तऽ बनिये के लचार बेकार रहीं सुतिये के सुतार गवायीं॥
कुण्डबलिया (खड़ी बोली) :-
जीवन का जीवन बिना , लखि जीवन बेकार।
जीवन का जी बन गया , मानो ज्व>लित अंगार॥
मानो ज्व>लित अंगार लिखा बादर को ओरहन।
पा कर उच्च स्थाअन तजो अपनी अब कुरहन॥
घाम खेत के फसिल जरावत हवे अगिन वन।
बारिद भूपर बारि बारि दे जड़ी सजीवन॥
सवैया :-
कविता न कहें कब अर्थ बिना पर अर्थ बिना कविता कहि जालें।
सहि पावें स्वकछंद के बन्धथन ना पै स्वहछन्दo के बन्धoन के सहि जालें।
जब भाव बा ऊँच त भाव भी ऊँच होई जनता मन में भ्रम पालें।
समलंकृत मंच करें समलंकृत आनन इंजिन के उपमा लें॥
बिनु केशव की कृपा केशव नीयर के शव के सिंगार सजायी।
मति केतु लसी तुलसी बने के कबहूँ केहू के तुल सी मति जायी।
गति सूर में साहित सूर में का मिली भक्ति का सूर में जे कुछ गायी।
अब ताई में भूजि दशा सगरी कवितायी के पंच बुझाता बितायी।
नर के नरके समुझें भरकें फरके फरके फरके से पुकारें।
पर नारि मिलें परना समुझें पर ना कहि के परना करि डारें।
पतरा जो मिले पतरा जो मिले त एकादशी से षोडसी ले निहारें।
एकमी दुजिया तिजिया छठिया सतिमी कवनो मिलि जा न उबारें॥
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चन्दन से टीकें निज अंक प्रति अंग किंतु ठीके न देत कबे अतिथि दुवार पर।
राम धुन गा के नींद आन के हराम करें रावण के धुन राखें अपना कपार पर।
ब्रत उपवास करें नित्य गऊ ग्रास हरें जब कोपि आवे कोपिआवे जाँ डँडार पर।
गीता के ज्ञान ले के बीता भर भूमि खातिर चीता समान परें भाई पटिदार पर॥
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आगमन सुनि आग मन में सुलगि जात
भाग मन भाग ई अभाग चढि़ जात बा।
लागे प्रणि पात पवि पात का समान और
पूछें कुशलात कुश लात गडि़ जात बा।
आसन जमौला पर आस न रहेला आसन
डोली इहाँ से असन देते पडि़ जात बा।
कारन बा इहे घर कार न पार लागता
पारन का हेतु भागि ऐसे लडि़ जात बा॥
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इन्द्रn के वाहन हउअऽ परन्तुत न देह पै धूल न धैल करेलऽ।
बाजि भी तूँ उनही के परन्तुअ न मातलि का वश भैल करेलऽ।
बनमाली न हो बन माली होके बन माला सदा गहदैल करेलऽ।
चढि़ बात का यान में बात का बात में बात से बात तूँ कैल करेलऽ।
( लालू से) :- रउरा बिहार का गद्दीपर अपना के अंगद चरन करीं।
पक्षपात के वरन करीं जनि पक्षपात के वरन करीं।
जब समता के युग आइल बा छोटका बड़का जनि गनल करीं
अब अटल बिहारी बनल करीं जनि अटल बिहारी बनल करीं।
अब पद के ल्या दे चाह करीं जनि पद के ज्यारदे चाह करीं।
अब जनता के जनि दाह करीं पर जनता के अब दाह करीं॥