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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 38 रूपक अलंकार पीछे     आगे

लक्षण (दोहा) :- अपना ही उपमेय पर ठोकि दिहल उपमान।
वाचक धर्म छिपा दिहल रूपक के पहिचान॥
या
वाचक धर्म हटाइ के राखि दिहल उपमेय।
रंग चढ़ा उपमान के रूपक लक्षण ज्ञेय॥
 
चौपई :-
वाचक धर्म दूर हटि जाय। कथ्यण अकथ्यt भेद मिट जाय॥
जइसे चिउरा दही समेत। मिति के स्वायद एक ही देत॥
दुइ गो देहि प्रान हो एक। रूपकओ के कहत विवेक॥
वाचक धर्म मेटिया मानि। यदि फोरल जा लाठी तानि॥
तब ऊ मेटाफोर कहात। इंगलिस भाषा में विख्याात॥
 
उदाहरण (दोहा) :-
जालि सिनेमा के बिछा चाउर चित्र छितारि।
खग जनता के प्रान प्रिय पइसा लेत निकारि॥
 
अभेद रूपक
 
लक्षण (दोहा) :-
कथ्य अकथ्यर दुहून में भेद न तनिक देखात।
एक रूपता तब उहे हवे अभेद कहात॥
 
न्यू>न या हीन अभेद रूपक
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उपमेय में उपमान से गुण कम जहाँ दरसात बा।
रूपक उहे तब न्यूसन अथवा हीन मानल जात बा॥
 
उदाहरण (दोहा) :- फूलन तूँ विक्टोtरिया गोर चाम से हीन।
नूरजहाँ बिनु हरम के बिनु अभाव के दीन॥
चाँद बिबी बिनु निज किला रजिया तूँ बिनु राज।
बिना नृत्यब नरगिस तुँही बिना ताज मुमताज॥
कठिन काय ट्रैक्टयर वृषभ संग न जोड़ीदार।
सींग पोंछि आ प्राण बिनु आ शरीर बिनु बार॥
सकल मनोरथ नृपन के काटि गिरौनी माथ।
हम भृगुनायक बिनु जटा बिनु कुठार धनु भाथ॥
माइक बंशी स्विर सुना हरत लोग के ज्ञान।
मोर मुकुट बन माल बिनु नेता श्री पति आन॥
 
रोला :- बिना गरज के मेघ बेग बिनु हम इक आन्‍हीं।
बिनु झोंटा के सिक्खा हईं पगड़ा ना बान्हींs॥
ना दुसरा का दिहल बुद्धि से काम चलायीं।
बिना बजह दस बीस लोग ना रोज मुवायीं॥
 
कुण्डिलिया:-
बिना गुरू के शिष्यग हम , बिनु कक्षा के छात्र।
कोर्स किताब विहीन हम , नहीं परीक्षा पात्र॥
नहीं परीक्षा पात्र फीस ना जमा करीले।
अर्थ दण्ड् या छड़ी न कुछ से कबे डरीले॥
जहँ न पान केहु खाय न बीड़ी सुरती सुरके।
तहाँ पढ़ीले नित्यय बिना छुट्टी बिनु गुरू के॥
एमेले एम पी नृप दुओ , बिना माथ पर ताज।
राज्यम काल पाँचे बरिस , ना कहात महराज॥
ना कहात महराज बरासत के न ठिकाना।
बेटा वारिस बनी या कि केहू बेगाना॥
राज्यव वृद्धि ना करी अवधि भर पद पर खेपी।
युद्ध केर ना चली कबे नृप एमेले एम पी॥
 
कमला ना पढ़नी कबे बपति समा से हीन।
हम मुसलिम आ क्रिश्चियन , रास चरित रस लीन।
रामचरित रस लीन किंतु ना ढोल बजायीं।
ना केहुवे का साथ कबे हरिकीर्तन गायीं।
तथा कथित कवि हईं लिखीं ना गोरिया बलमा।
रुचे न गीता ज्ञान न पढ़नी कहियो कलमा॥
 
सवैया :- हम आदर पाईले आयु का दौड़ में आगे नवे कम तीन हँई।
उठि के चलि जात न बैठि के केवल लेखन में अब लीन हँई।
रस मीठ के भोजन भावत बा दोसरा रस से उदासीन हँई।
अतएव गणेश हँई दुभुजी हम आ गज शुण्डन विहीन हँई॥
 
अधिक अभेद रूपक

 
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उपमेय में उपमान से गुण जब अधिक दरसात बा।
तब अधिक नामक भेद रूपक के उहाँ बनि जात बा॥
 
उदाहरण (दोहा) :-
तरु गृह अतिशय नीक बा कोलाहल से दूर।
देत रहत बाटे सुखद छाँह शान्ति भरपूर॥
तरु मानव लखि मृतक के निष्कारसित असहाय।
चिता सेज खटमल रहित ऊँच देत बिछवाय॥
तरु दाता बिनु स्वा र्थ के बिनु माँगे दे दान।
प्राणवायु दल फूल फल सबके एक समान॥
पशु मानव बढि़ के करत हवे पुण्य के काम।
मरि के भी निज चाम दे खींचत ना कुछ दाम॥
मोस मूस दूषित पवन , तीनूँ के करि दूर।
तरु गृह प्राणिन के सुखद , शरण देत भरपूर॥
महिसूर नृप नृप से अधिक धन कइ गुना कमात।
मृतको से कर दक्षिणा मोट वसूलल जात॥
जग में गान्धीक बइरि तरु बाटे अमर बुझात।
नाथू नर कटि गिरत तबो पनकि बढि़ जात॥
 
सार :- तरुवर शिक्षक बिना फीस के एगो पाठ पढ़ावें।
आपन उदाहरण दे कर के ऊ बिनु सटहा समुझावें।
पर उपकार चाव जेकरा चित पर आके चढि़ जाला।
ए धरती पर सबसे ऊँचा उहे सदा बढि़ जाला॥
 
सवैया :-
भूसूर भूपति दाम वसूल करे में कठोर बुझात हवे।
भूपति जीवित से कर लेत जे जोति जमीन के खात हवे।
लेकिन भूसुर का कर से केहुवे न कहीं बचि जात हवे।
जन्म में मूड़न में तिउहार बियाह में भी बसूलात हवे॥
जब देहि छोडि़ के भागि के मानव प्रेम पुरी में लुकात हवे।
तब श्राद्ध के टैक्सग चुकावे के वारिस ओकर लूटल जात हवे।
तवनो पर जो न गया-कर दे तब जीव न मुक्तस कहात हवे।
धन लूटे में नादिरशाह महीसुर लोग से मात देखात हवे॥
निज पालक मानव के केतने पुरुखा का सँगे सरगे पहुँचावत।
निज आयु का एक हजार गुना उनके उहवाँ सुख साज सजावत।
शिशु ईश्व र के अपना पतई पर सृष्टियों का पहिले से सुतावत।
बर ही मुख अक्षय बा जग में बरही मुख अक्षय व्ययर्थ कहावत॥
 
सम अभेद रूपक
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उपमेय या उपमान में जब विषमता न देखात बा।
सम उहाँ तद्रूप और अभेद मानल जातबा॥
 
उदाहरण (ताटंक) :-
बस यात्रिन पर यू.पी. में जब तीर्थाटन कर लागि गइल।
माधी मेला का अवसर पर पाँच करोड़ वसूल भइल।
पूर्ण रूप से औरंगजेबी राज्यर अत: दरसात हवे।
हिन्दूर से जजिया तीर्थाटन कर जब पुन: लियात हवे॥
 
सवैया :-
कबे खींचत बार लिलार के दात्र के और कबे धरि कान हिलावें।
केहु के दुओ हाथ से माथ उठाइ दबाइ के ऊपर और तकावें।
केहु के धरि बाँहि ममोरें झुकें उझुके लडि़ के हँसे और हँसावें।
गुरु बन्धुि गुरू लरिका तथा टीचर में समरूप अभेद दिखावें॥
 
हरिगीतिका :-
बैठल दलाल वकील वा आ कचहरी दूकान बा।
बा न्यााय गाहक मुद्दई महँगा मिलत सामान बा।
दारू मुकदमा के नसा जेकरा विशेष धरात बा।
बनि जात जीवन मुक्त ऊ सम्परत्ति मोह नसात बा॥
यमद्वार बाटे कचहरी छवले अन्हामर अपार बा।
बिक जात वकील सब ऐसन बड़ा बाजार बा॥
 
दोहा :- मृग बैरी लखि के करे बाघिनि फूलन वार।
शिशु सहयागी पर करे सदा हृदय से प्या र॥
मेघ नहर कर देत बा सकल सिंचाई कार।
अब तऽ झूठे घन घटा रहि-‍रहि करत अन्हाoर॥
देत रहत निज कोष से भिक्षु वायु के दान।
सौरभ सम्पिति दिवस भर नृप नीरज श्रीमान॥
गणपति बाहन मूस सब गौ माता निलगाय।
रामदूत बानर सभे खात खेत के आय॥
पढ़गित चकईं छात्र चक गुरू प्रधान मिसकार।
विद्यालय पिजड़ा बड़ा जहाँ न रवि संचार॥
तरु टाड़ा मन लोभ के कठ फोड़वा सन्तोtष।
पुस्ताक भव दुख जाल के दीमक राम भरोस॥
 
कुण्डुलिया :- सिंह दुइये पैर के केसर से भी हीन।
गरजत गुन्नाय गहन में रहे सदा स्वाइधीन।
रहे सदा स्वा‍धीन ऊँखि के बात चलावे।
मृग मिल के भयभीत करे जब गरज सुनावे।
देहि पितृ बन बीच जा जबसे भइल हवे अचल।
तब से देह दुका भइल दुम ही लौकत बा बचल॥
 
साँग रूपक
(सावयव)
 
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उपमेय का सब अंग पर उपमान का सब अंग के।
उपमा लगे तब होत रूपक साँग अपना ढंग के॥
उदाहरण :-
कवि सम्मेतलन नौ बेनी तीर्थ लागत जहाँ
श्रोता तीर्थ यात्री लोग आ के बिटुरात बा।
आधी रात होत होत बार सब लोगन के
नाऊ बिना संग ही घड़ी में कटि जात बा।
नौ रस नौ सरिता का संगम नौ बेनी बीच
जा के सब लोग महा मौज में नहात बा।
महा वारूणी के पुण्यज पर्व के प्रभाव पूर्ण
मंचे पर छाइ गैल लौकत छछात बा॥
नयी कविताई में द्रव्यछ अर्थ मिलल जौन
उहे द्विज दुबिधा के दान में दियात बा।
नहान दान दूनूँ के पूरा पुण्यद सहजे में
एके राति रहला में सब को भेंटात बा।
कुछ कवि गा के परमेश देश के सुगीत
तीर्थकर श्रोता में सनेह सरसावता।
कुछ कवि पी के ती के गावें गीत जेहि में से
ले के प्रसाद गुण प्रसाद घसे आवता॥
चर्खा चन्द्र कालिमा में वृद्धा बैठि काते सूत
युग युग से हमनी का ईहे कहात बा।
धुनल रुई के ढेर बादर देखात बाटे
पाइ के बयारि बेग जौन उधियात बा॥
बीगल रुई के बीज जोन्हीध के समूह जहाँ
जत्तर के तत्तर छिटाइल बुझात बा।
वर्षा में भूमि नभ वाला बड़ा केचुवन के
चमक चपला के बक्र रेखा देखात बा॥
 
हरिगीतिका :-
चिट धन नकलची धनी राखत बा बहुत लुकवाई के।
डाकू उड़ाका दल अचानक लूटि लेता आई के॥
रिस्टिकेशन लाठियो रखले उड़ाका दल हवे।
कुछ बरिस खातिर धनिक के करि देत ऊ घायल हवे॥
आ जात प्रलय चुनाव जग कुर्सी सजी विनशात बा।
पेड़ पर्वत मन्त्रिमंडल कुछ कहीं न देखात बा॥
 
दोहा :-
रवि शशि लोक विधान दोउ सभा अस्तं अवसान।
वोट प्रचार सुवारि में डूबल रहत जहान॥
अद्भुत फूलन दल कमल बन बिच विकसि सुहात।
यद्यपि पुलिस अराति से पाला परि परि जात॥
मकई महिला बालि शिशु बलकल बसन ओढ़ाइ।
खड़ी खेत आँगन हरित धनखर लट छिटकाइ॥
लोकतंत्र तरु में कई पार्टी डाढि़ सुहात।
राज्यत भोग सुख फल मधुर एमेले एमपी खात॥
 
कवित्त :-
बरम्हा् किसान सृष्टि फसिल अनेक रूप
यथा योग्यत लोक खेत बीज उपजावता।
केशव किसान खाद पानी दे रक्षा करत
पोसि पालि-पुष्टे सब भाँति से बनावता।
हरी-परी फसल के झूमत समीर संग
देखि-देखि मधवा किसान सुख पावता।
रुद्र कृषक काटि के आ दाँ के ओसा के ओके
अंग अंग अलग-अलग ओके छितरावता॥
 
सवैया :-
मुनि का वन काव्य में एक मृगी उपमा बचवा दिहली एक जोड़ी।
उपमेय तथा उपमानउहे बचवा दिहले बचवा कई कोड़ी।
चलनीं हम राजा शिकार बझावे त काम न देति हवे बुधि घोड़ी।
ब्रज भाषा का ज्ञान के अल्पतता झाड़ी कटीली बा रोकति राह निगोड़ी॥
 
अल्हा् :-
अभिमान लँगोटा कसि कवित्त अँखड़ा में गइनी ताल बजाय।
उपमा के भाई रूपक तब दिहलसि हम के चित्त गिराय।
अलंकार मंजूषा गुरू से सिखनी दाव पेच तब जाय।
तब रूपक से लडि़ उनके आसमान दिहनी दिखलाय॥
* * * *
बाल श्रीपति राष्ट्रgपति बल पत्र कुर्सी पर परे।
चूसत रहत पद रस अँगूठा तंत्र निज मुख में धरे॥
 
एक देश विवर्ति साँग रूपक
लक्षण (हरिगीतिका) :-
कुछ अर्थ निकले शब्दक से कुछ लखि प्रसंग खिंचात बा।
तब साँग रूपक एक देश विवर्ति मानल जात बा॥
 
उदाहरण (सवैया) :-
सब कोर्स किताब भवे से सदा भसुरे जी के नाता घरे निमहावें।
पर कक्षा में पाठ परायन सत्यस नारायण के कथा बाँचि सुनावें ॥
कुछ पूछि परें जनि छात्र अत: उनका मुँह में भय जाब लगावें।
निज वेतन वृद्धि बदे हथि के हड़ताल एगो हर साल मनावें॥
हवे नौकर एक सदा निज वेतन का कमी के दुखड़ा जे सुनावें।
लरिका दल भेडि़ के लेहड़ा देखत भालत में निज आयु बितावें।
कुछ तऽ ओहि में उतराई ले के दरजा दरियाव का पार हेलावें।
हड़ताल गदा का प्रहार से चाहे जबे सरकार के शीघ्र झुकावें॥
गृहहीन बदे निज देह कटाइ के बाँस बसेरा बना के बसावे।
जल मग्नग जमीन मिले जहवाँ त सहायक हो उहाँ पार हेलावे।
बड़का झगरा फरियात न हो त उहाँ चलि के पल में फरियावे।
अरथी बनि के शव के शव के सुता गोद संगे अपना के चिता में जरावे॥
मृदु भाषण नींद के मन्त्र सुना जनता के सुता बहुते अगराला।
तब तऽ कवनो कठिनाई उहाँ जन मानस गेह में जा के समाला।
मत सम्पषति ले के तुरन्तज उहाँ से सुदूर कहीं चुपचाप लुकाला।
तब पाँच बरीस का बाद कहीं उहे मन्त्रम जगावे बदे उपराला॥
 
सार :- कुर्सी धन खातिर प्रत्या शी ललचाला घबड़ाला ।
छोटका बड़का सबका दुवरा अलख जगावल जाला।
पोर्ट फोलिया गाना से ऊ सबके हृदय हरेला।
फेरी लगा लगा रातो दिन सबसे विनय करेला।
वोट भीखि हमरा बैलट झोली में चलीं गिरायीं।
सुखी रहीं भगवान कृपा से रउरा फरीं फलायीं॥
 
ताटंक :- जब सालाना इम्तिहान आखेट सुअवसर आवेला।
टीचर लोग भयंकर खतरा में अपना के पावेला।
छात्र नकलची बनया कुक्कु र छूरा दाँत देखावेला।
सरकार व्याीध दे अधीक्षता पद जालि बिशाल बिछावेला।
वृत्ति प्रान रक्षा खातिर तब टीचर जुगुनि जुटावेला।
भरि मेडिकल छुट्टी छलाँग तब कइसों जान बचावेला।
एगो महिला घर आँगन से दूर डेग न ब़ढ़ावेले।
दूध नहीं घी मछली आमिष बड़ा प्रेम से पावेले।
जीभि पात्र से पानी पीये ना जलपात्र उठावेले।
ऊ निज दाँत छुरी काटा से भोजन सदा उठावेले।
बारि बाघ से डरे स्ना न का नावें देहि कँपावेले।
जीभि हाथ से पोंछि-पोंछि के स्वाच्छप शरीर बनावेले।
भूखि भवानी का पूजा में ज्याछदा चित्त रमावेले।
गणपति बाहन बलि पशु के धइ के बलिदान चढ़ावेले॥
 
अल्हाण :- कसि के हम अभिमान लँगोटा अलंकार अँखड़ा में जाय।
ताल ठोकि के रूपक नट से लडि़के गइनी कुश्तीम खाय।
पिंगल पेच पुन: तब पढ़नी राम बहोरी गुरू से जाय।
बाजि दुबारा तब रूपक के दिहनी आसमान दिखलाय॥
 
दोहा :- काँचे मूस चबाइ के दूध दही जुठियाय।
बिना पाँव धोवले कबे चौका में चलि जाय॥
वेतन पैतृक धन समुझि कक्षा में औंघात।
पापी पढ़ा परोक्ष में कल्म ष कोश कमात॥
विद्यालय बाजार में फीस दाम दे जात।
शिक्षा सउदा गहत में गाहक अति अलसात॥
राम नाम अहि सन्तग के कुरुचि मूस खा जात।
जीवन कोठिला में भरल धर्म न्याकय बिटुरात॥
दुइ गो नट यम दूत आ लौह दण्डय के हाथ।
नकुल गेह दुइ ओर से घेरले एके साथ॥
निज द्रुत गति रघुपति सुमिरि छोडि़ पुराना ओक ।
नेउर धइलसि धाइ के ऊँखि खेत सुर लोक॥
लोक लाज पगहा प्रबल जल कल यूप स्थाकन।
जल असि से नर पशु करत माघ मास बलिदान॥
* * * *
क्षेत्रपाल क्षेत्रन में करत परिश्रम बा
खर्च खाद पानी आ पोत ओकरे माथ बा।
जादूगर अस केहू क्षेत्र फल क्षेत्रपाल और
क्षेत्र तीनूँ के बान्हि राखत साथ बा।
जौना लूगा में तीनूँ बान्हाल जात एक साथ
ओ लूगा के क्षेत्रफल एक वर्ग हाथ बा।
तीनूँ के मिला के एक साथ सदा बेंचत बा
मुँह माँगा दाम ले के होखत सनाथ बा॥
 
बिरहा :- भारत के किसान होला सोझिया महान
एसे केहुवे ना सुने ओकर बात।
तथा कथित हीन करम खेती अपनावेला।
बारहो महीना श्रम करते बितावेला।
बैरी बाढि़ सूखा पाला ठार से ऊ जूझेला।
कुलीन उजर पोस सब कुजाति ओके बूझेला।
धनुष जीभि नाहीं आपन कहियो चढ़ावेला।
बान नाराबाजी के ना कबे बरिसावेला।
मुरुचा घेराव त बनावही ना आवेला।
लड़े खातिर सेना यूनियन ना सजावेला।
कृपान हड़ताल नाहीं कहियो चलावेला।
एही से कृपा न ओपर केहु देखलावेला।
तोड़ फोड़ बम नाहीं कतहीं गिरावेला।
एसे ऊ आतंक फइलाइये ना पावेला।
केहुवे विदेशी ना मदत पहुँचावेला।
होइ के उपेक्षित पूरा जिनिगी बितावेला।
किन्तु जब कवनो चुनाव निराला।
खंजन हितैषी लोग ढेर उपराला।
बीतते बीतत किन्तुे फागुन चुनाव सभे
फेरु नाहीं कतहीं देखात।
भारत के किसान होला सोझिया महान।
एसे केहुवे ना सुने ओकर बात॥
 
भिन्नस धर्मा साँग रूपक माला
(मालाकार सांग रूपक)
 
उदाहरण (दोहा) :- संकट शत्रु बिनाशनऽ सुकृत सुहृद सुधाम।
भव सागर केवट कुशल राम नाम श्री राम॥
लोकतंत्र तरु में कई पार्टी डाढि़ सुहात।
राज्यत भोग सुख फल मधुर एमेले एम्‍पी खात॥
* * * *
 
कवित्त :-
कृषक विरंचि अन्न फल साग सृष्टि कई यथा योग्या खेत लोक बीच उपजावत।
बनि बनमाली रक्षा सृष्टि के करत ओके पोसि के सुपुष्ट् सब भाँति से बनावता।
फसिल हरी परी के झूमत समीर संग देखि के किसान इंद्र मोद महा पावता।
रुद्र हो के अंत में विध्वंसस कर देत सृष्टि काटि पीटि ढोके आखा के सँपरावता॥
 
सम अभेद सांग रूपक
लक्षण (हरिगीतिका) :-
अपमेय का सब अंग से उपमान का सब अंग के।
उपमा दिया तब सांग रूपक बनत अपना ढंग के॥
 
उदाहरण (दोहा) :- माइक बंशी स्वoर सुना जनता के मति मारि।
वोट चित सबके हरत नेता कृष्णअ मुरारि॥
छात्र वृन्दन सरघा निकर जब उदबेगल जात।
तजि कक्षा छत्ता तुरत करत अमित उतपात॥
मकई नारि सती सदा रहि अकेल उजियाय।
घास फूस पर पुरुष से चहजति न देहि छुवाय॥
अमला आगी के न जब डाँट आँच सहि जात।
पान पता पानी छिरिकि ओसे काम लियात।
देत रहत निज कोष से वायु भिक्षु के दान।
सौरभ सम्पिति रात दिन नीरज नृप श्रीमान॥
पढ़गित चकई छात्र चक अध्यातपक मिसकार।
कक्षा पिंजड़ा में जहाँ राखि बजावत चार॥
लोक बिधान दुओ सभा रवि शशि के अवसान।
वोट प्रचार सजीव कुछ झिल्लीक के निर्माण॥
 
ताटंक :- जनता गोपिन के मन माइक बंशी से भरमावेले।
वोट चित्त तब सबके नेता कृष्णि मुरारि चोरावेले॥
सिनमा लुब्धबक चित्रण चाउर फिल्मर जालि फइलावेला।
देला पइसा प्रान इहाँ दर्शक पंछीजे आवेला॥
 
हरिगीतिका :-
बइठल वकील दलाल जहवाँ कचहरी दूकान बा ।
कब न्याीय सउदा मुद्दई गाहक लही न ठेकान बा॥
ई मुकदमा मदिरा नशा जेकरा विशेष धरात बा।
ऊ बनत चतुर सु-सन्त ओकर वित्त मोह नशात बा॥
ई कचहरी यम द्वार बा अज्ञान अटल अन्हाबर बा।
न वकील टार्च बिना उहाँ हो सकत कवनो कार बा॥
ई कचहरी मन्दिर जहाँ जज देवता आसीन बा।
आ पेशकार प्रचण्डर पण्डा पास परल प्रवीन बा॥
अर्जी चढ़ावा हाथ में सब लोग के ले लेत बा।
तब मथुर डेट प्रसाद अति सन्तोेष प्रद दे देत बा厝॥
बा कचहरी अँखड़ा जहाँ दुइ पक्ष दुइ गो बीर के।
बा होत कुश्ती़ न्या्य में बा प्रेरणा तकदीर के॥
विद्यार्थी चिट धन धनिक चिट धन धरत लुकवाइ के।
त उड़ाका दल डाकू कबें सब लूट लेता आइ के॥
रिस्टिकेशन बम संगे रखले उड़ाका दल हवे।
कुछ बरिस खातिर धनिक के करि देत ऊ घायल बा।
आवत चुनाव प्रलय त कुर्सी जग सजी विनशात बा।
सब सभा मण्ड्ल नगर गिरि बन डूबि जल में जात बा।
तब राष्ट्रडपति श्री पति कहीं बट पत्र कुर्सी पर परे।
चूसत रहत निज पद चरण अँगूठा सदा मुख में धरे॥
जनतंत्र तरु में विविध दल शाखा कई छितरात बा।
पद फल मधुर जे लगल सब नेता बली मुख खात बा॥
इसकूल चीनी मिल जहाँ पर छात्र ऊँखि पेरात बा।
खो धन जवानी रस उहाँ बाहर पुन: आ जात बा॥
 
कवित्त :- प्रश्नु प्रतिद्वन्द्वी से मनुष्यs बुद्धि हारे तब
लड़े बदे युद्ध वीर अक्षर चुनाव बा।
मान लिया कहि मान उत्तर दियात तब
युद्ध में अनेक घात घाव लागि जात बा।
बट्टा न लागे लागे जरब घेरे कोष्ठि घेरा
और कहीं संख्याल तलवार से कटात बा।
युद्ध जीति आवे तब मान निकलाइ जात
केतना अन्याआय और दूख के ई बात बा॥
कवि सम्मेयलन नौ बेनी तीर्थ लागत तहाँ
श्रोता तीर्थ यात्री के समूह बिटुरात बा।
आधी रात होत होत बार सब लोगन के
नाऊ बिना घड़ी में तुरन्तस कटि जात बा।
नौ रस का सरिता का संगम नौ बेनी बीच
डूबि डूबि लोग महा मौज में नहात बा।
वारूणी महान पुण्य पर्व के प्रभाव पूर्ण
कबे कबे मंच पर लौकत साक्षात बा॥
कविता कोंहड़ा में भी आवत मिठास यदि
राग मीठा पाग केहु ओपर चढ़ावता।
कुछ कवि देश परमेश के सुगीत गा के
श्रोता तीर्थ यात्री में सनेह सरसावता।
नवकी कविताई में पावत जे अर्थ लोग
ओही से दान दुविधा द्विज के चुकावता।
कुछ कवि पी के ती के नीके जब गावें गीत
ओही में प्रसाद पा के लोग लौटि आवता॥
चन्द्रंमा के दाग चर्खा बुढि़आ के बाटे जौन
ना जाने सूत ओहि में कबसे कतात बा।
श्वे त बादर धुनल रूई के राशि बाटे जे
उड़त बा बयारि से तऽ चर्खा तोपात बा।
बा जोन्हीय असंख्य जौन बीआ अनेक युग से
काढि़ के कपास में से बाहर बिगात बा।
चपला चमक नभभूमि वाला केंचुवा जे
हो के उधार कबे-कबे लउकि जात बा॥
 
सवैया :- मुनि का कविता बन में उपमा मृगी दे दिहली बचवा एक जोड़ी।
उपमेय तथा उपमान दुओ बचवा से बढ़न्तीन दिखे कई कोड़ी।
चलनीं हम राजा शिकार बझावे त साथ न देति हवे मति घोड़ी।
कवि लोगन के मत भिन्नबता झाड़ी घनी हवे रोकति राह निगोड़ी॥
 
गुरु महतारी सु-शिष्य सुता पर प्रेम प्रभूत सदा बरिसावे।
जब जात परीक्षा निकेत नया पति-गेह त आँसु विशेष बहावे।
केतनो दुख देत विछोह तबो गुरू मातु निरन्ततर ईहे मनावे।
भगवान करे इहे शिष्य सुता इहाँ फेरु पढ़े या रहे जनि आवे॥
 
सोरठा :- बादर गरज सुनात चर्खा के घर्राहटे।
नभ गंगा दरसात ताना तानल सूत के॥
 
सार :- मतवालापन कीचड़ में जब नेता महिष लोटाला।
दीन दुखी माछी मच्छवर तब ओकरा पास न जाला॥
 
चौपई :- मकई महिला दुइ तिन बालि। बालक रखे प्याार से पालि॥
सबके बोकला बसन ओढ़ाइ। घाम सीति से रखे बचाइ॥
हिन्दू> के रिवाज अपनाइ। चुटिआ सब के देति रखाइ॥
हरिहर खेत अजिर में आइ। खड़ी खेलावति मोद मनाइ॥
 
शुद्ध निरंग रूपक या निरंग रूपक
 
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उपमेय आ उपमान के जब अंग कुछ न कहात बा।
जब एक ही उपमा रहेत निरंग मानल जात बा॥
 
उदाहरण (दोहा) :- ट्युटर बनियाँ का न बा आवत तनिको लाज।
चाहत बा गुरू मानि के राखो छात्र लिहाज॥
निपट निर्दयी होइ के मन में ले अभिमान।
पीटत बा तैमूर गुरू शिशु के बिना जियान॥
अपना मन में समुझि के अपना के विद्वान।
गुरू मुहम्मूद तुगलक करत बात नकेहु के कान॥
काटत दिन चुपचाप बा खो के सब उत्साबह।
विवश प्रिसंपल जफर या द्वितीय बहादुर शाह॥
फल के चिन्ताप ना करत केवल करत प्रसार।
शिक्षा सचिव प्रसार प्रिय औरंगजेब मदार॥
शिक्षा छिछिल नहर भइल करत-करत विस्तासर।
बनि शिकार विस्ता र के होत जात बेकार॥
धान जइसिरी कमल दल जस जस जल बढि़यात।
तस तस जल का ऊपरे ऊहो बढ़ते जात॥
जलकुम्भी अकृतज्ञ जन जेहि सर फरत फुलात।
तेहि सर के ऊ अपनहीं सरि-सरि पाटत जात॥
सती नारि मकई रहति सबसे दूर बराय।
घास पात पर पुरुष से चहति न देहि छुवाय॥
चीनी मिल इसकूल में गन्ना छात्र पेरात।
चीनी बनि कुछ बरिस में पुनि बाहर आ जात॥
सरघा छात्र समूह के जब उद्बेगल जात।
तजि छत्ता विद्या भवन करत अमित उत्पाात॥
आगी अमला के न जब आँच डाँट सहि जात।
जल पानी तनि छिरिक के ओसे काम लियात॥
 
सम अभेद निरंग रूपक
लक्षण (हरिगीतिका) :-
सब अंग का उपमान का उपमेय का सब अंग में।
उपमा लगे ना तब उहे रूपक गनात निरंग में॥
 
उदाहरण (दोहा) :-
नभ मेला नव रोज के जोन्हीग नारि अनेक।
शशि अकबर बिचरत जहाँ पुरुष आइ के एक॥
मानव मृग के रक्तप नित पीयत मच्छकर बाघ।
दूइ महीना छोडि़ के सिर्फ पूस आ माघ॥
कृषि के सूखा बाढ़ हिम बटु के ऐश अराम।
तर्क अन्धूविश्वा स के पातक के हरि नाम॥
विद्याभ्याखस कमल कबें ना तनिको उजियात।
आलस पाला छात्र पर आके यदि परि जात॥
पढ़गित चकई छात्र चक अध्यािपक मिसकार।
कक्षा पिजड़ा में जहाँ राखि बजावत चार॥
नख हर से खुजली तथा दाद खेत जोतात।
ब्रह्मानंद अनाज तब मनुज कृषक पा जात॥
करि न सकत तब कलम मुँह प्रकट एक भी बात।
निपट मूक बनि के रहत सूखि जी भिजब जात॥
लालच तरु टाड़ा बदे कठफोड़वा सन्तोsष।
भव पीड़ा पुस्तेक बदे दीमक राम भरोस॥
अल्हाव :-
मच्छ रदानी रिष्य मूक गिरि‍ मच्छ र बालि जहाँ ना जाय।
मानव भीरू सुकंठ जाइ के जहवाँ काटे राति लुकाय॥
 
हरिगीतिका : - इसकूल चीनी मिल जहाँ पर छात्र ऊँखि पेरात बा।
खो धन जवानी रस उहाँ बाहर पुन: आजात बा॥
 
निरंग रूपक मालाकार
(मालाकार निरंग रूपक)
 
लक्षण (दोहा) :- एक कथ्यत का साथ जब कई अकथ्यज कहात।
तब निरंग रूपक उहे मालाकार सुहात॥
 
उदाहरण (सवैया) :-
हवे बाँस बड़ा उपकारी मनुष्या निवास बना दुसरा के बसावे।
जल मग्ऩ जमीन मिले त मलाह हो दे के सहायता पार हेलावे।
झगरा न जहाँ फरियात तहाँ बनि पंच चले पल में फरियावे।
शव के भी सहायक दो उर पै निज डो के तुरन्ते चिता पै चढ़ावे॥
 
दोहा :-
साँपन बदे समाधि आ पेड़न के पतझा़ड।
खटमल दल खातिर अटल , आइल जालिम जाड़॥
हैजा प्ले़ग मशक बदे जठर अनल हित वायु।
आइ गइल जाड़ा पुन: खजुहट हेतु चिरायु॥
कृ‍षि के सूखा बाढ़ हिम बटु के सुख आराम।
तर्क अन्धडविश्वाबस के पातक के हरिनाम॥
मृग बैरी गन पर करे बाधिनि फूलन वार।
शिशु सहयोगी पर करे सदा यथोचित प्या।र ॥
संकट शत्रु सँहारक सुकृत सुहृद सुखधाम।
भवसागर केवट कुशल राम नाम श्री राम॥
गणपति वाहन मूस सब गौ माता निलगाय।
रामदूत बानर सभे के तब हाँके जाय॥
 
कवित्त :-
हिन्दू मुसलमान सिक्ख> एकता के दृष्टिकोण
गान्धी जी के रहे तीन तूँही अपनावेलू।
हिन्दू बदे यज्ञ मुसलमान के हलाल और
सिक्खू बदे झटका के मांस बनि भावेलू।
एही से गान्धी जी तोहरा के मनले बहुत
जान आपन देके खैर आन के मनावेलू।
एकता के केन्द्ररबिन्दुू दूइज के नया इन्दुr
क्षमा और दया सिन्धु बकरी कहावूलू॥
 
ब्रह्मा किसान सृष्टि अन्नु फल साग विविध
यथा योग्यन जानि के जमीन उपजावता।
केशव किसान खाद पानी दे रक्षा करत
पालि पोसि पुष्टप सब भाँति से बनावता।
हरी भरी फसिल के झूमत समीर संग
देखि-देखि मयवा किसान सुख पावता।
रुद्र कृषक ओके उजारि के सँहारि देत
पीटि पाटि झारि अंग अंग छितरावता।
 
पहिले अयोध्याि के अभागि दशरथ हो के
रामराज चर्चा सुना सुख सरसा गइल।
तवना का बाद उहे क्रुर रानी केकयी हो
निज करनी से मन सबके दुखा गइल।
मन्थ रा हो अपना के भरत हितैषी मानि
साजि के सिंगार सजी मन में धधा गइल।
अंगद के बन्हेले सुग्रीव के कँपावत आ
कान धैले बाली के इनाम माँगे आ गइल॥
 
भोग हो धनी के उपयोग ऊनी बस्वआन के
लगन के सुयोग हो के डंका बजा गइल।
पंडित के खोजी रोजी नाऊ आ नचनियाँ के
बरात भीम भोजी हो गाँव गाँव छा गइल।
गोड़ में बेवाईं और आगी के तपाई हो के
कंज कुल सफाई सर सूना बना गइल।
लौकी पर पाला और डेहरी के दिवाला होके
लौना के कसाला जाड़ काला फेरु आ गइल॥
* * * *
सकल देशवासी बन पर्वत निवासी तूँ
मुँह सब ग्रासी बस्तुब बिरले बरावेलू।
हिन्दूब मुसलमान पाक मानेले समान तोके
दूनूँ कर देवता के रक्ता निज पियावेलू।
मन्दिर आ मसवजिद में केतनो कटालु किन्तुे
चुप्पर रहि जालू कहीं दंगा ना करावेलू।
गरीबी के गाय मातृहीन शिशु धाय
रोग टी.बी. के उपाय तूँही बकरी कहावेलू॥
 
सार :-
हवे बिलारि नारि बड़ फूहर जे ना कबे नहाले।
अइसन शुद्ध गोड़ बिनु धोवल चौका में चलि जाले।
ऊ गवनहरी कनियाँ घर से बाहर डेग न डोर।
बड़ी लजाधुर बइठे चुप्पीा साधि लाज का मारे।
पक्काल चोरिनि हवे सून घर जब तनिको पा जाले।
बड़ी चटोरिन दूध दही घी चुपके से खा जाले।
ऊ रानी कुछ काम करे ना , ना केहु कबे अर्हावे।
खा के जा के कहीं पटा के सुख से समय बितावे।
डाक्ट र पक्कास गाँधीवादी जाति पाँति ना माने।
सब के सेवा करे बराबर भेद भाव ना आने।
डाकटर परम सनातन धर्मीं छूवा छूत बरावे।
टी.वी. आ छुतहा रोगिन के अलग दूर बइठावे।
एक व्यपक्ति के दे के सूई सूई के नहवावे।
कबे-कबे तऽ सूई के ऊ दीआ बारि धिकवे।
तब जा के दुसरा रोगी के सुई फेरु लगावे।
डाक्टबर वर्ण व्य वस्थाा पालक चारू वर्ण कहावे।
ब्राह्मण हो के औषधि का प्रति नित निज ज्ञान बढ़ावे।
क्षत्रिय हो के लड़े रोग से ओ के दूर भगावे।
बनि के वैश्वक रुपया से घर भरि के मौज मनावे।
बने शुद्र रोगी के सेवा करे घृणा ना आवे।
 
परम्प/रित रूपक
 
लक्षण (हरिगीतिका) :-
जब मुख्य( रूपक के एगो रूपक अधार देखात बा।
तब एक नास परम्पगरित ओ दुहुन के परि जात बा॥
 
उदाहरण (पद्धरि छंद) :-
जय जय जय गान्धीध महाराज। देश भक्ति पथ दर्शक ' आज '
अँगरेज राज बकरा हुँडार। आजादी गंगा हर द्वार纕॥
चरखा सु चक्र प्रिय हूषी केश। वर बुद्धि प्रदाता श्री गणेश॥
अन्यासय पथिक रस्ताश उरेब। आलस बिलास औरंगजेब॥
भारत छोड़ो सावरी मंत्र। शुभ मंत्र प्रणेता शिव स्वरतंत्र॥
 
चौपई :-
निलहा साहेब मूस बिलार। लोभ फुलाइल मटर तुषार॥
खद्दर खेती यूरिया खाद। हिंसा सुना सीर घननाद॥
जाति पाँति मधुमाछी धूम। सदाचार धन रक्षक सूम॥
छल देशी रजवाड़ पटेल। बस्तुा नशीली ऊँट नकेल॥
तकली राम कथा भरद्वाज। सत्या अहिंसा ब्रज ब्रजरात॥
राजनीति रण द्रोणाचार्य । फैशन कोल भील खस आर्य॥
कुरूढि़ सती रिवाज सरकार । बैर भाव तृण पर अंगार॥
पापी उड़ीस नेवार खाट। अपराध पाक बल तुरा षाट॥
गहना बीखो दादुर भुजंग। अपकार भावना गृह सुरंग॥
 
दोहा :-
लालच तरु टाड़ा बदे कठ फोड़वा सन्तो ष।
भव पीड़ा पुस्त क बदे दीमक राम भरोस॥
लगल दल बदल हाट बा संविधान अनुसार।
नेता सउदा के जहाँ क्रय विक्रय के करि॥
प्रश्नउ पत्र सागर निरखि छात्र पथिक हिय ह्रास ।
चिट जहाज आवत तहाँ तब तक ओकरा पास॥
 
कुण्डिलिया :-
भेड़ा हेड़ा गुरू निकर तीन तहाँ भेडि़हार।
पाड़े शर्मा ठकुरई मूड़त बार्षिक बार।
मूड़त बार्षिक बार नोट के लागत ढेरी।
जीभि सींग से लड़त रहत बैठक का बेरी।
निज संख्यास बढ़वारि हेतु नित जोहत पेड़ा।
बुद्धि आँखि के मूँदि चलत भेड़ा गुरू हेड़ा॥
 
सिंह दुइये पैर के केसर से भी हीन।
गरजत गन्ना गहन में रहे सदा स्वा़धीन।
रहे सदा स्वा‍धीन ऊँखि के बात चलावे।
मृग मिल के भयभीत करे जब गरज सुनावे।
देहि पितृ बन बीच जा सबसे भइल अचल।
तब से देहि दुका भइल दुमही लौकत बा बचल॥
 
छप्प>य छन्द :-
ट्रैक्टgर वृष के रोग बहुत जल्दिये धरेला।
ओकर अर्जन सजी चिकित्से में सँपरेला॥
खरी भूस खर पात भात छँटुआ के जाने।
परमिट के डीजल पीयत मन रहत ठिकाने॥
पगड़ा नाथ बिहीन जे नशल विदेशी हर चलत।
बली बर्द ट्रैक्टजर उहे अब इहवाँ जनमत पलत॥
 
रोला :-
बिनु धक्का् ना चले परे जब एकरा पाला।
मगहर निर्धन घर मुलाइयेा कबें न जाला॥
ना बारात ना लगन न माथे मौर धरेला।
ई वर ट्रैक्टलर और नित्या मटकोर करेला॥
 
तद्रूप रूपक
 
लक्षण (दोहा) :-
अपर अन्य( नव शब्दo या अन्यo शब्दs कुछ आय।
प्रकट करे कुछ भिन्न्ता तब तद्रूप कहाय॥
या
मिले विशेषण अन्य नव या इनके पर्याय।
रूपक में जब आई के तब तद्रूप कहाय॥
न्यू>न तद्रूप रूपक
(हीन तद्रूप)
 
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उपमेय में उपमान से गुण कम जहाँ दसरात बा।
तद्रूप रूपक न्यू न अथवा हीन तब बनि जात बा॥
 
उदाहरण (दोहा) :-
निज पति के राखे सदा अपना ही आधीन।
फूलन नव विक्टोेरिया ताज सिंहासन हीन॥
भिन्नन भाँति के बैल ई टैक्टहर बैल बुझात।
तन पै ना पैना गिरे पगहा गर न सुहात ॥
बिनु गुरू विद्यारथी बिनु कक्षा के छात्र।
विद्यालय से दूर हम कइनी पढ़गित मात॥
सकल मनोरथ नृपन के काटि गिरौनी माथ।
परशुराम बिनु परशु हम खुर्पी पुस्त।क हाथ॥
माइक बंशी से हरत जनता गोपी ज्ञान।
मोर मुकुट बन मान बिनु नेता भी पति आन॥
कवि सम्मे लन नाच अब बा उपरात नवीन।
बिना साज पेशबाज के अश्ली लता विहीन॥
 
रोला :- ट्रैक्टीर वृषभ नवीन रोग के घर बनि आवत।
निज अर्जन सब निजी चिकित्सेब में सँपरावत॥
खरी भूस खर पात भात छँटुवा के जाने।
परमिट के पेट्रोल पेय पीये तब माने॥
एकरा तन में रक्त कबें ना तनिक देखाला।
धकियवले पर चले परे यदि कहियों पाला॥
ना बरात ना लगन न माथे मौर धरेला।
ई ट्रैक्टार वर और नित्या मटकोर करेला॥
 
सवैया :- हवे नेतागिरी नोकरी नवकी जेहि में जियते न रिटायरी आवत।
कुछ जाँच न योग्य ता के कबे होत अपाहिज अज्ञ भी राज्यन जलावत।
मुँह में न लगाम कबे किछऊ बके किन्तुा प्रभाव असीम जमावत।
बड़े-बड़े हाकिम के बिनु दाम के आ बिनु साज के नाच नचावत॥
 
हम आदर पाइले आयु का दौड़ में आगे नबे कम तीन हँईं।
उठि के चलि जात न बैठि के केवल लेखन में अब नील हँईं।
रस मीठ के भोजन भावे सदा दुसरा रस से उदासीन हँईं।
हम साँवर पातर गात के शुण्डस विहीन गणेश नवीन हँईं॥
 
छप्प>य :- इहाँ एक नरसिंह अपर गर बिनु केसर के।
गरजल गन्ना गहन बीच कुछ दिन जम कर के।
ओकर गरजल कृषक लोग का मन अति भावे।
मिल मृग के ऊ गरज किन्तु भयभीत बनावे।
एक बार जन यूथ का सँगे पितृ बन में गइल।
तब से दुमही शेष बा देहि न जाने का भइल॥
 
कुण्डबलिया :-
एमेले एमपी नृपति नव बिना भूमि बिनु ताज।
राज्य काल पाँचे बरिस केहत न केहु महराज।
ना कहात महराज युद्ध के हालि न जाने।
राज्या बढ़ावे हेतु न चिंता चित में आने।
सेवा भाव बिहीन नाम सेवा के ले ले।
माँगत वोट नये जन सेवक अजब एमेले॥
 
लावनी :-
ताज बिनाआ राज बिना राजा नेता सब राज करें।
युद्ध जीति के राज बढ़ावे के चिंता मन में न धरें॥
तोप तीर तलवार चलावे के न तनिक अभ्यानस करें।
जनता प्रजा लोग से केवल वोट भीखि के आस करें॥
घूमि घूमि दुवरा दुबरा वोटर दाता के याद करें।
मिले सफलता तब पर पटना या दिल्ली आबाद करें॥
राजा पद न होत पुश्तैानी ओपर पाँच साल तक ठहरें।
गिरें स्व र्ग पद से नीचे तब पछता पछता के ऊ हहरें॥
 
सम तद्रूप रूपक
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उपमेय आ उपमान में जब गुण समान दिखात बा।
'सम' नाम के रूपक उहे तब भेद एक कहात बा॥
 
उदाहरण (दोहा) :-
ट्रैक्टरर वृष अब वृष हबे बहत भइल कुछ देर।
अन्यो्टर दय बनि गइल अब दोसर एक कुबेर॥
नहर मेघ करि देत अब सकल सिंचाई कार।
पहुँचा कर बान्ह ल घड़ी पहुँची सजे सिंगार ॥
नल इनार जल देत अब निज मुख से भभकाय।
सब थकान अब देत बा चाय शराब मिटाय॥
ज्वथलन पेट के जलन बा ओकरे जे बा धन्य/।
भोजन मनमाना करत पेट जार ई अन्यओ॥
नवका राजा बिडिओ राज्या बलाकिस्ताान।
राज गुरू नेता धवल मंत्री ग्राम प्रधान॥
अब पहुँची पहुँचा घड़ी पहुँची भइल बेकार।
जलकल भइल इनार अब पूछत केहु न इनार॥
बाण बूँद बरसावतऽ भय प्रद गरजत गाढ़।
मशक दैत्यब दल सँग अपर मेघनाद आषाढ़॥
पढ़गित चकई छात्र चक गुरू प्रधान मिसकार।
विद्यालय बड़ पीजड़ा जहँ रवि कर न प्रसार॥
सागर पृच्छा़ पत्र लखि छात्र हताश दिखात।
अभिभावक प्रेषित तहाँ बम बोहित मिलि जात॥
कुर्सी के लालच बिना दे के आपन प्रान।
देश कइल आजाद जे से नेता केहु आन॥
माइक बंशी के हरत जनता गोपी ज्ञान।
चुरा लेत सब वोट चित नेता श्री पति आन॥
 
सवैया :- धरती तल चाम के चीरि के ऊपर यूरिया नून छिटात हवे।
कुछ कोइला भूमि करेज के काटि के नित्यक निकालल जात हवे।
जल रक्तत निकाले बदे नल से गहिरा छिति छाती छेदात हवे।
धरती पर क्रूरता के फल घोर संघार भूडोल देखात हवे॥
 
अधिक तद्रूप रूपक
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उपमेय में उपमान से गुण जब अधिक दरसात बा।
'तद्रूप रूपक अधिक' नामक उहाँ मानल जात बा॥
 
उदाहरण (हरिगीतिका) :-
बिनु माँगले दिन भर करत जे प्राण वायु प्रदान बा।
तरु भूमि पर के कल्पक तरु सब फूल फल के खान बा ॥
टैक्टूर वृषभ ओह वृषभ से बहुते अधिक बरियार बा।
ई करत बीसन वृषभ का बदले अकेले कार बा॥
हर काठ के बा पैदले ले जात निज हरवाह के।
चढि़ जात उनका कान्हा पर भी तय करत जब राह के॥
ले जान ट्रैक्टनर हर सदा निज पीठ पर बइठाइ के।
निज ड्राइबर के घाम बरखा सीति से लुकवाइ के
मरखाह तनिको ना हवे पैना देखावल जात ना।
आ तूरि के पगहा कबें ऊ खेत केहु के खात ना॥
आ बोझ कुण्टगल पौन सौ ले चलत गावत गीत बा।
आ देत चालक पर न आवे घाम वर्षा शीत बा॥
निज पीठ पर उनके चढ़ौले बिनु कहीं ना जात बा।
पथ रात में भी दूर तक ओकरा प्रत्यतक्ष देखात बा॥
भूप एम.पी. भूप से भी लहत सुख अधिकाह बा।
महल दिल्ली में मिलत भारी मिलत तनखाह बा॥
सामन्‍त एमेले लोग भी अपना अधीन अनेक बा।
आ विप्र व्यभवसायी बड़ा केहु करत नित अभिषेक बा॥
भूपति भूसुर भुपति से भी वसूली में टांच देखात हवे।
भूपति जीवित से कर लेत जे जोति जमीन के खात हवे॥
भूपति भूसुर के करनी कहवाँ ले कहीं न कहात हवे।
जन्म में मूड़न में तिउहार में तीरथ में भी लियात हवे॥
तब वारिस से ओकरा कर श्राद्ध का नाम से भारी लियात हवे।
तवनों पर जो न गया कर दे कर खाता में बाकी लिखात हवे॥
अरु प्रेम के बन्ध न छूटत ना कबें मुक्ते न मानल जात हवे।
सरकार के कुर्क अमीन भी मूपति भूसुर लोग से मात हवे॥
 
दोहा :- फूलन दल छवि कमल दल बन बिच बिकसि सुहात।
यद्यपि पुलिस अराति से पाला परि-परि जात॥
डाक्टिर से बढि़ के हवे सोखा डाक्टपर लोग।
जेकरा एक भभूति से भागि जात सब लोग॥
कठउ हर दिन में चले निशि में करे अराम।
निशि में भी करि देत बा ट्रैक्टेर हर निज काम॥
पर घर जा ट्युशन करत ना उहवाँ औघात।
ऊ टीचर केहु और जे श्रम के रोटी खात ॥
एमेले एम्पी नृपति नच भोगत सुख अधिकाह।
कर न देत केहु के कबे मिलत मोट मनखाह॥
 
सार :- ऊ औरंगजेब जे भारी हिन्दू< शत्रु कहौले।
जय सिंह आ जसवंत सिंह के सेनाध्यदक्ष बनौले॥
ऊ महमूद विदेशी कट्टर मुसल्माकन जब आइल।
मन्दिर के धन लूटि-पाटि के गजनी पुन: पराइल॥
मन्दिर पर ना रोक लगवलसि यद्यपि रहे विजेता।
ई देशी महमूद नेता सब मंदिर बने न देता॥
 
कुण्ड/लिया :-
अपर डाकघर द्विज उदर खुलल रहत दिनरात।
जे जेतना चिउड़ा दही इहाँ जमा करि जात॥
इहाँ जमा करि देत तवन सगरे चलि जाता।
सरगे ओकर पितर और देवता सब खाता॥
डाका जहाँ न परत न चोरी के कुछ डर बा।
अतिप्रसिद्ध द्विज उदर डाकघर इहाँ अपर बा।
सवैया :-
हाकिम नेता बा हाकिम से बढि़ के जेकरा अवकाश न आवत।
नेता गिरी हवे नौकरी और कबे जेहि में न रिटायरी आवत।
जाँच न योग्यरता के कबे होत अपाहिज अज्ञ भी राज चलावत।
जे जवने जब चाहे बके मुँह में केहुवे न लगाम लगावत॥
छोट से छोट भी नेता बड़े-बड़े हाकिम लोग पै रोब दिखावत।
लाठी का जोर से जीति चुनाव के गाँधी जी के जयकार मनावत।
सेवा करे बदे माँगत वोट परन्तुग न सेवा कबे करि पावत।
ज्या दे से ज्यारदे ले भाई भतीजा दमाद के सार के कार बनावत॥
 


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