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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 49 व्यतिरेक अलंकार पीछे     आगे

लक्षण (हरिगीतिका) :-
उत्क र्ष कुछ उपमेय के या हीनता उपमान के।
दुइ तथ्य‍ ईहे मुख्यक बा व्य तिरेक का पहिचान के॥
 
वीर :-
जब उपमेय बढ़ावल जाला या उपमान घटावल जात।
दुओ दशा में उपमेये के जहवाँ बा उत्क र्ष कहात॥
अलंकार व्यंतिरेक नाम के उहवाँ बाटे सदा सुहात।
कवि मत भेद देखि के एपर मन उबियात माथ चकरात॥
 
उदाहरण (सार) :-
लालू के तुलना में अकबर बादशाह ना अइहें।
चाहे ऊ इतिहासन में बड़का सम्राट कहइहें॥
चार पाँच मंत्रिन से अकबर आपन राज चलौले।
लालू किंतु बहत्तर मंत्री बाड़े इहाँ बनौले॥
 

उपमेय के श्रेष्ठtता
 
चौपई :-
वाणी चरण ध्याeन दे सुक्ति। कमला चरण ध्या न दे भुक्ति॥
हरिहर चरण ध्याrन दे मुक्ति। पगु सम पंकज कवने युक्ति॥
ढाल कवच बिनु सदा शरीर। अस्त्रक शस्त्र बिनु विजयी वीर॥
गाँधी सरिस वीर सम्राट। कहाँ सिकन्द र बोनापार्ट॥
या वियजी विलियम अंग्रेज। अथवा मियाँ खान चंगेज॥
 
चौपाई :-
भानु उगे मुख शोभा पावे। भानु उगे शशि तेज गँवावे॥
मुख पर दुइ बिम्बा फल सोहे। जेपर कीर रात दिन मोहे॥
करिखा पोतल मुख शशि ले के। मुख उपमान कहइहें के के॥
* * * *
यंत्र अनेक चित्र अति सुंदर भवन विशाल भव्यं बिन जात।
बाँहि सूँड़ सम कइसे होई जेसे केतने ग्रंथ लिखात॥
 
दोहा :-
संस्कृसत अस दोसर कहाँ भाषा मिली अनूप।
एक क्रिया के होत जहँ लगभग दुइ सौ रूप॥
फूलन अस वीरांगना दोसर कहाँ देखात।
जेकर यश दुइ बरिस में भइल जगत विख्याित॥
 
व्यgतिरेक तथा तीसरा प्रतीप में अंतर
 
लक्षण (चौपाई) :-
तृतीय प्रतीप तथा व्य)तिरेक। दूनूँ काम सँवारे एक।
जहँ विशेषता हेतु कहात। तहँ व्यितिरेक नाम परि जात॥
 
उपमान के हीनता
 
चौपाई :-
भसुर लोग गुरुहत्थेत जात। मोंछि कुकुर के पोंछि कहात॥
लेकिन गलत कहत सब नारि। कइसे मोंछि पोंछि अनुहारि॥
मोंछि कटाले बारम्बारर। तबो जामि के होत तेयार॥
कुकुर के यदि पोंछि कटात। जिनगी भर बाँड़े रहि जात॥
शूर वीर जन सिंह कहात। ईहो उपमा गलत गुझात॥
सिंह स्वजय ना करते शिकार। सिंहिन ओके देति अहार॥
जे पत्नीज के अर्जन खात। आलसग्रस्तक रहत दिन रात॥
अइसन प्रानी कवने डाल। बनी बीर जन के उपमान॥
 
चौपाई :- फूलन सम कइसे भिंडारा। जेकर मानि रहे गुरूद्वारा॥
पाक करे जेकर गुरुवाई। इहाँ धर्म के देत दुहाई॥
 
रोला छंद :- बाण सरिस कटु बचन लगे सब लोग कहेला।
अंतर लेकिन बहुत दुओ का बीच रहेला।
भरत भरत ले घाव बाण के पीर भुलाला।
भरत कबे ना घाव बात के सदा दुखाला॥
 
सार :-
मछरी का शरीर का भीतर काँट अनेक रहेला।
कोमल आँखि मीन सम झूठे कवि सब लोग कहेला॥
दशरथ सुवन भरत के महिमा यदि केहु सुकबि बखानी।
कइसे ऊ उपमान रूप में कृष्ण चंद्र के आनी।
मातृ-पिता गुरू अग्रज सबके बात भरत जी टरलें।
आपन राजतिलक होखे के बात न कबे सकरलें॥
कृष्णा चंद्र अपना अग्रज के पूजा बन्दt करौलें।
रण में बिजयी बने बदे ऊ छल भी धर्म बतौलें॥
पत्नीं के रुख राखे खातिर देवलोक में गइलें।
देवतन के तरु पारिजात के बल से छीनि ले अइलें॥
कइसे दीनबंधु का उपमा में भगवान धरालें।
जे छप्पनन प्रकार के भोजन नित्यइ बइठले खालें॥
लेकिन दीन परिश्रम करि के जहिया जौन कमाला।
तहिया तवने रुखा सूखा खाकर के रहि जाला॥
 
सवैया :-
लाखन लोगन आ पशु के निज बाढि़ में कष्ट॥ असीम सहावे।
खेत हजारन हेक्ट र अन्नं समेत जे काटि के माटी मिलावे।
लाखन लोग सदा निज देहि के गन्दषगी धोइ के जेमें गिरावे।
देव नदी कइसे नल और इनार समान पवित्र कहावे॥
फूलन के उपमान बने बदे योग्यनता ना कबे ताडूका पौली।
यज्ञ विध्वंासक हो के निरस्त्र मुनीन पै आपन जोर जनौली।
पूतना आन का बालक के विषपान करावत में मुँह बौली।
मन्थ रा राम का राज्यर में बाधक हो के बड़ा बदनाम उठौली॥
अंत में फूटल कूबर टूटल दाँत त बैठि के नाक बजौली।
सूपनखा छले राम के जाइ के नाम तथा दुओ कान कटौली।
कूबरी कृष्ण वियोग में डारि हजारन गोपिन के डँहकौली।
सिंहिका लंकिनी दूओ जनी कपि का कर से सुरधाम सिधौली॥
फूलन ऐसन एको जनी कबे बीरता ना रण बीच देखौली।
ताडुका ताड़ न रोपि सकें अरु होलिका भी हलुका परि गैली।
मन्थ रा मंद परे सब भाँति से कूबरी हो बरी भागि परैली।
लंकिनी सिंहिका सूपनखा इरिषावश ना कबें सामने भैली॥
* * *
जब कोदो के फसिल धान आ गोहूँ से अति सुगम बुझाला।
बिना खाद पानी पवले भी यथा शक्ति बढि़ के फरि जाला॥
 
उपमान के हीनता
(उपमेय के उत्कभर्ष)
 
उर्दू भाषा के धनिकाई अंग्रेजी में भी न देखात।
चारि सकार मिलत उर्दू में छव जकार भी पावल जात॥
 
सवैया :-
रति रूपवती रहली जिनके अब के दुनियाँ न निहारति बा।
अब फूलन मार के फूलन के सर से ही न प्रान निकारति बा।
गन लोडेड हाथ में राखति बा क्षण एक न ओके बिसारति बा।
करे कालपी वाली पु‍लीस भी का जब फूलन काल पी डारति बा॥
 
ध्या>न देवे वाला
 
हरिगीतिका :-
व्यकतिरेक में हो जात तीसर का प्रतीप बिलीन बा।
अलंकार प्रतीप मानल जात ना स्वातधीन बा।
 
कुछ अन्य> भेद प्रतीप के चलि जात बा आक्षेप में।
ई कथन पण्डित राज के बाटे लिखल संक्षेप में॥
 
अन्य> मतानुसार
 
चौपई :-
तृतीय प्रतीप तथा व्यrतिरेक। दूनूँ काम सँवारे एक॥
यदि विशेषता हेतु कहात। तब व्यततिरेक नाम परि जात॥


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