लक्षण (दोहा) :- जहाँ बाल के खाल ना हठि के खींचल जात।
भेद एक तब हेतु के काव्यलिंग बनि जात॥
(या) जहाँ कार्य उत्पत्ति के कारण पुष्ट दियात।
हेतु नाम के तब उहाँ अलंकार बनि जात॥
उदाहरण (दोहा) :-
बार बार सरकार बा गिरत और बदलात।
एकर कारन एक गो हमरा साफ बुझात॥1॥
दुइ दल का मिलते मिलत दल दल बा बनि जात।
चलि के दल दल पर गिरलनया न बाटे बात॥ 2॥
बकरा देखि हुँड़ार बिल्कुल जड़ बनि जात।
ना तनिको चिहकत डरत आ ना भागि परात॥3॥
नेता जीति चुनाव में जात क्षेत्र निज भूल।
होइ अमा के चंद्रमा आ गुलर के फूल॥4॥
प्रजातंत्र में ना रहत राजा के कुछ काम।
भूमि छिनाइल मिट गइल राजपाट के नाम॥5॥
जब पटेल जी के चलल लगा पटेला जोर।
समतल कइलस खेत सब बड़का ढेला फोर॥6॥
कर्मचंद्र के नाम के ओहि में रहे प्रभाव।
मिलल सात सौ रात आ लागल कहीं न घाव॥7॥
कर्मचंद्र का सरिस सब शीतल रहे सुहात।
तीखा ना लागल कबे आ न रहे गरमात॥8॥
केतनो होत मनावन समधी सुने न बात।
भोजन के नाँवे सुनत अरुचि अधिक बडि़ जात॥9॥
रुपया आइल देखिके दुओ लुप्त हो जात।
अरुचि और बारा सहित थरिया भर के भात॥10॥
साथी केहु हाकिम भइल केहु बहुते धनिकाह।
नेता बनि सम्मान के केहु का उपजल चाह॥11॥
धन पद आ सम्मान सब हमरा आपन खेत।
जे हमके सम्मान आ अन्न कबे कुछ देत॥12॥
जवन पसेना करत बा पैदा खटमल खाज।
उहे पसेना खेत में पैदा करत अनाज॥13॥
आ खेतन के माटिये चंदन हवे हमार।
आपन रोपल पेड़ सब बा हमार परिवार॥14॥
यदि चिउरा में दे हमें रस आपन कुछ आम।
तब हमरा खातिर उहे करी अमृत के काम॥15॥
लूह लपट जब चलत तब तजि खटिया ततकाल।
लेटल खालीं भूमिपर हमरा नैनीताल॥16॥
पुस्तक के भण्डार बा इष्टदेव साक्षात।
सवर्गीयो विद्वान से करा देत जे बात॥17॥