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कविता

हरियाली मत हरो

राधेश्याम बंधु


हरियाली मत हरो
गंध की  कविता रुक जाएगी
फूलों के सुरभित
आँचल  की  ममता  चुक जाएगी ।

नीम तले की कथा कहानी
बाबा को  कहने  दो,
अमरार्इ  झूले  की  कजरी
बहना  को  गाने  दो ।

हरसिंगार  का प्यार  न  छीनो,
          बगिया  लुट जाएगी ।

भैया  से  वृक्षों   की   बाँहें,
किसने काट दिए हैं ?
बस्ती  में  पत्थर  के जंगल
किसने उगा दिए हैं ?

ममता की टहनी मत छाँटो,
       छाया  मिट  जाएगी ।

द्वारे   से   तुलसीचौरा  तक
रेगिस्तान न आने पाए,
भाभी  के  जूड़े  का  गजरा
कभी नहीं मुरझाने पाए  ।

पंचवटी की छाँव न छीनो,
              सीता पछतायँगी ।


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