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अख़्तर शीरानी
ओ देस से आने वाले बता!
 

ओ देस से आने वाले बता

क्‍या अब भी वहां के बाग़ों में मस्‍ताना हवायें आती हैं?

क्‍या अब भी वहां के परबत पर घनघोर घटायें छाती हैं?

क्‍या अब भी वहां की बरखायें वैसे ही दिलों को भाती हैं?

            ओ देस से आने वाले बता!

क्‍या अब भी वतन में वैसे ही सरमस्‍त नज़ारे होते हैं?

क्‍या अब भी सुहानी रातों को वो चांद-सितारे होते हैं?

हम खेल जो खेला करते थे अब भी वो सारे होते हैं?

                        ओ देस से आने वाले बता!

शादाबो-शिगुफ़्ता[1] फूलों से मा मूर[2] हैं गुलज़ार[3] अब कि नहीं?

बाज़ार में मालन लाती है फूलों के गुंधे हार अब कि नहीं?

और शौक से टूटे पड़ते है नौउम्र खरीदार अब कि नहीं?

                        ओ देस से आने वाले बता!

क्‍या शाम पड़े गलियों में वही दिलचस्‍प अंधेरा होता हैं?

और सड़कों की धुँधली शम्‍मओं पर सायों का बसेरा होता हैं?

बाग़ों की घनेरी शाखों पर जिस तरह सवेरा होता हैं?

            ओ देस से आने वाले बता!

क्‍या अब भी वहां वैसी ही जवां और मदभरी रातें होती हैं?

क्‍या रात भर अब भी गीतों की और प्‍यार की बाते होती हैं?

वो हुस्‍न के जादू चलते हैं वो इश्‍क़ की घातें होती हैं?

            ओ देस से आने वाले बता!

[1] प्रफुल्‍ल स्‍फुटित [2] परिपूर्ण [3] बाग़

 

क्‍या अब भी महकते मन्दिर से नाक़ूस की[1] आवाज़ आती है?

क्‍या अब भी मुक़द्दस[2] मस्जिद पर मस्‍ताना अज़ां [3] थर्राती है?

और शाम के रंगी सायों पर अ़ज़्मत की[4] झलक छा जाती है?

            ओ देस से आने वाले बता!

क्‍या अब भी वहाँ के पनघट पर पनहारियाँ पानी भरती हैं?

अँगड़ाई का नक़्शा बन-बन कर सब माथे पे गागर धरती हैं?

और अपने घरों को जाते हुए हँसती हुई चुहलें करती है?

            ओ देस से आने वाले बता!

क्‍या अब भी वहां मेलों में वही बरसात का जोबन होता है?

फैले हुए बड़ की शाखों में झूलों का निशेमन होता है?

उमड़े हुए बादल होते हैं छाया हुआ सावन होता है?

            ओ देस से आने वाले बता!

क्‍या शहर के गिर्द अब भी है रवाँ [5] दरिया-ए-हसीं[6] लहराये हुए?

ज्यूं गोद में अपने मन[7] को लिए नागन हो कोई थर्राये हुए?

या नूर की[8] हँसली हूर की गर्दन में हो अ़याँ [9] बल खाये हुए?

            ओ देस से आने वाले बता!

क्‍या अब भी किसी के सीने में बाक़ी है हमारी चाह ? बता

क्‍या याद हमें भी करता है अब यारों में कोई ? आह बता

ओ देश से आने वाले बता लिल्‍लाह[10] बता, लिल्‍लाह बता

            ओ देस से आने वाले बता!

[1]  शंख की [2]  पवित्र [3]  अज़ान [4]  महानता की [5]  बहती है [6]  सुन्‍दर नदी [7]  मणि [8]  प्रकाश की [9]  प्रकट [10]  भगवान के लिए

क्‍या गांव में अब भी वैसी ही मस्ती भरी रातें आती हैं?

देहात में कमसिन माहवशें तालाब की जानिब जाती हैं?

और चाँद की सादा रोशनी में रंगीन तराने गाती हैं?

            ओ देस से आने वाले बता!

क्‍या अब भी गजर-दम[1]चरवाहे रेवड़ को चराने जाते हैं?

और शाम के धुंदले सायों में हमराह घरों को आते हैं?

और अपनी रंगीली बांसुरियों में इश्‍क़ के नग्‍मे गाते हैं?

            ओ देस से आने वाले बता!

आखिर में ये हसरत है कि बता वो ग़ारते-ईमाँ [2] कैसी है?

बचपन में जो आफ़त ढाती थी वो आफ़ते-दौरां [3] कैसी है?

हम दोनों थे जिसके परवाने वो शम्‍मए-शबिस्‍तां [4] कैसी हैं?

            ओ देस से आने वाले बता!

क्‍या अब भी शहाबी आ़रिज़[5] पर गेसू-ए-सियह[6] बल खाते हैं?

या बहरे-शफ़क़ की[7] मौजों पर[8] दो नाग पड़े लहराते हैं?

और जिनकी झलक से सावन की रातों के से सपने आते हैं?

            ओ देस से आने वाले बता!

अब नामे-खुदा, होगी वो जवाँ मैके में है या ससुराल गई?

दोशीज़ा है या आफ़त में उसे कमबख़्त जवानी डाल गई?

घर पर ही रही या घर से गई, ख़ुशहाल रही ख़ुशहाल गई?

ओ देस से आने वाले बता!

[1]  सुबह-सवेरे [2]  धर्म नष्‍ट करने वाली (अति सुन्‍दरी) [3]  संसार के लिए आफ़त [4]  शयनागार का दीपक [5]  गुलाबी कपोल [6]  काले केश
[7]  ऊषा के सागर की [8]  लहरों पर

 

 

 

 

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