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आज़ादी
शेरों
को आज़ादी है आज़ादी के पाबंद रहें शाहीं
को आज़ादी है आज़ादी से परवाज़ करे सांपों
को आज़ादी है हर बस्ते घर में बसने की पानी
में आज़ादी है घड़ियालों और नहंगों को इंसां
ने भी शोखी सीखी वहशत के इन रंगों से इंसान
भी कुछ शेर हैं बाक़ी भेड़ों की आबादी है शेर के
आगे भेड़ें क्या हैं इक मनभाता खाजा है भेड़ें
लातादाद हैं लेकिन सबको जान के लाले हैं मास भी
खायें खाल भी नोचें हरदम लागू जानों के
भेडि़यों से गोया क़ायम अमन है इस आबादी का इंसानों
में सांप बहुत हैं क़ातिल भी ज़हरीले भी सांप तो
बनना मुश्किल है इस ख़स्लत से माज़ूर हैं हम शाहीं
भी हैं चिड़ियाँ भी हैं इंसानों की बस्ती में शाहीं
को तादीब करो या चिड़ियों को शाहीन करो
बहरे-जहां में ज़ाहिर-ओ-पिनहां इंसानी घड़ियाल भी हैं यह
इंसानी हस्ती को सोने की मछली जानते हैं सरमाये
का जि़क्र करो मज़दूरों की इनको फ़िक्र नहीं आज यह
किसका मुंह है आये मुंह सरमायादारों के खा जाने
का कौन सा गुर है जो इन सबको याद नहीं ज़र का
बंदा अक़्ल-ओ-ख़िरद पर जितना चाहे नाज़ करे इसकी
आज़ादी की बातें सारी झूठी बातें हैं जब तक
चोरों-राहज़नों का डर दुनिया पर ग़ालिब है
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