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राही मासूम रजा (01.09.1927-15.03.1992)
गंगा और महादेव मेरा नाम मुसलमानों जैसा है मुझको कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो मेरे उस कमरे को लूटो जिसमें मेरी बयाने जाग रही हैं और मैं जिसमें तुलसी की रामायण से सरगोशी करके कालीदास के मेघदूत से यह कहता हूँ मेरा भी एक संदेश है। मेरा नाम मुसलमानों जैसा है मुझको कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो लेकिन मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है मेरे लहू से चुल्लू भर महादेव के मुँह पर फेंको और उस योगी से कह दो- महादेव अब इस गंगा को वापस ले लो यह जलील तुर्कों के बदन में गढ़ा गया लहू बनकर दौड़ रही है।
अजनबी शहर के अजनबी रास्ते अजनबी शहर के अजनबी
रास्ते,
मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते
रहे,
ज़हर
मिलता
रहा
ज़हर
पीते
रहे,
रोज़
मरते
रहे
रोज़
जीते
रहे,
गोया
हम
भी
किसी
साज़
के
तार
हैं,
चोट
खाते
रहे
गुन
गुनाते
रहे। |
मस्जिद तो अल्लाह की
ठहरी
जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ
कैसे हैं
ऐ सबा तू तो उधर से ही
गुज़रती होगी
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं
अंगारों के फूल
मैं तो पत्थर था मुझे फेंक
दिया ठीक किया |