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मिर्ज़ा ग़ालिब कभी नेकी भी उसके जी में आ जाये है मुझसे कभी
नेकी
भी
उसके
जी
में
आ
जाये
है
मुझसे
आईना
क्यूँ
न
दूँ
के
तमाशा
कहें
जिसे
दिया है दिल अगर उस को, बशर है क्या कहिये
दिया
है
दिल
अगर
उस
को,
बशर
है
क्या
कहिये दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दिल
से
तेरी
निगाह
जिगर
तक
उतर
गई बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल
है
दुनिया
मेरे
आगे
आह
को
चाहिये
इक
उम्र
असर
होने
तक
आह
को
चाहिये
इक
उम्र
असर
होने
तक
|
बे-ऐतदालियों
से
सुबुक
सब
में
हम
हुए
धोता
हूँ
जब
मैं
पीने
को
उस
सीमतन
के
पाँव
धोता
हूँ
जब
मैं
पीने
को
उस
सीमतन
के
पाँव
दी
सादगी
से
जान
पड़ूँ
कोहकन
के
पाँव
भागे
थे
हम
बहुत
सो
उसी
की
सज़ा
है
ये
मरहम
की
जुस्तजू
में
फिरा
हूँ
जो
दूर-दूर
अल्लाह
रे
ज़ौक़-ए-दश्तनवर्दी
के
बादे-मर्ग
है
जोश-ए-गुल
बहार
में
याँ
तक
कि
हर
तरफ़
शब
को
किसी
के
ख़्वाब
में
आया
न
हो
कहीं
'ग़ालिब'
मेरे
कलाम
में
क्यों
कर
मज़ा
न
हो
बहुत सही ग़म-ए-गेती शराब कम क्या है
बहुत
सही
ग़म-ए-गेती
शराब
कम
क्या
है
तुम्हारी
तर्ज़-ओ-रविश
जानते
हैं
हम
क्या
है
सुख़न
में
ख़ामा-ए-ग़ालिब
की
आतशअफ़शानी
ज़ुल्मत-कदे
में
मेरे
शब-ए
ग़म
का
जोश
है
ज़ुल्मत-कदे
में
मेरे
शब-ए
ग़म
का
जोश
है
आ
कि
मेरी
जान
को
क़रार
नहीं
है
आ
कि
मेरी
जान
को
क़रार
नहीं
है
सब कहाँ कुछ
लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
उनके
देखे
से
जो
आ
जाती
है
मुँह
पे
रौनक
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