फिर छिड़ी रात बात फूलों
की
फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बारात फूलों की
फूल के हार,
फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की
आपका साथ,
साथ फूलों का
आपकी
बात,
बात फूलों की
नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं
मिल रही है हयात
फूलों की
कौन देता है जान फूलों
पर
कौन करता है बात फूलों की
वो शराफ़त तो दिल के साथ गई
लुट गई
कायनात
फूलों की
अब किसे है दमाग़े
तोहमते इश्क़
कौन सुनता है बात फूलों की
मेरे दिल में सरूर-ए-सुबह
बहार
तेरी आँखों में रात फूलों की
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़
निकलेगी बात फूलों की
ये महकती हुई ग़ज़ल
'मख़दूम'
जैसे सहरा में रात
फूलों की
(शीर्ष पर वापस)
चारागर
इक
चम्बेली के मंडवे तले
मयकदे
से ज़रा दूर उस मोड़ पर
दो बदन
प्यार की आग में जल गए
प्यार हर्फ़े
वफ़ा
प्यार उनका ख़ुदा
प्यार उनकी
चिता
दो बदन
ओस में भीगते,
चाँदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताज़ा
रू ताज़ा दम फूल पिछले पहर
ठंडी-ठंडी सबक रौ
चमन की हवा
सर्फ़े मातम
हुई
काली-काली लटों से लिपट गर्म रुख़सार पर
एक पल के लिए रुक गई
हमने
देखा उन्हें
दिन में और रात में
नूरो जुल्मात में
मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें
मन्दिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें
अज़ अज़ल ता अबद
ये बता चारागर
तेरी जन्बील
में
नुस्ख़-ए-कीमियाए मुहब्बत
भी है
कुछ इलाज व
मदावा-ए-उल्फ़त भी है ?
इक चम्बेली के मड़वे तले
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़
पर
दो बदन
(शीर्ष पर वापस)