अयाँ है हर तरफ़ आलम मे
अयाँ है हर तरफ़ आलम में हुस्न-ए-बे-हिजाब उसका
बग़ैर अज़ दीदा-ए-हैराँ नहीं जग में निक़ाब उसका
हुआ है मुझ पे शम्अ-ए-बज़्म-ए-यकरंगी सूँ यूँ रौशन
के हर ज़र्रे उपर ताबाँ है दायम आफ़ताब उसका
सजन ने यक नज़र देखा निगाह-ए-मस्त सूँ जिसकूँ
ख़राबात-ए-दो आलम में सदा है वोह ख़राब उसका
मेरा दिल पाक है अज़ बस, ’वली’ जंग-ए-कदूरत सूँ
हुआ ज्यूँ जौहर-ए-आईना मख़्फ़ी पेच-ओ-ताब उसका
(शीर्ष पर वापस)
गफ़लत में वक़्त
अपना न खो होशियार हो
गफ़लत में वक़्त अपना न खो होशियार हो,
होशियार हो कब लग रहेगा ख़्वाब में, बेदार हो, बेदार हो
ज्यों छ्तर दाग़-ए-इश्क़ कूँ रख सर पर अपने अव्वलाँ
तब फ़ौज-ए-अहल-ए-दर्द का सरदार हो, सरदार हो
वो नौ बहार-ए-आशिक़ाँ, है ज्यूँ सहर जग में अयाँ
अय दीदा वक़्त-ए-ख़्वाब नईं बेदार हो, बेदार हो
मतला का मिसरा अय ‘वली’ विर्दए-ज़बाँ कर रात-दिन
गफ़लत में वक़्त अपना न खो, होशियार हो, होशियार हो
(शीर्ष पर वापस)
जिसे इश्क़ का तीर कारी
लगे
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िन्दगी क्यूँ न भारी लगे
न छोड़े महब्बत दम-ए-मर्ग लग
जिसे यार-ए-जानीं सूँ यारी लगे
न होए उसे जग में हरगिज़ क़रार
जिसे इश्क़ की बेक़रारी लगे
हर इक वक़्त मुझ आशिक़-ए-पाक कूँ
पियारे तेरी बात प्यारी लगे
‘वली’ कूँ कहे तू अगर एक बचन
रक़ीबाँ के दिल में कटारी लगे
(शीर्ष पर वापस)
फ़िराके-गुजरात
गुजरात के फ़िराके सों है खा़र-खा़र दिल
बेताब है सूनेमन आतिलबहार दिल
मरहम नहीं है इसके जखम़ का जहाँमने
शम्शेरे-हिज्र सों जो हुआ है फिगा़र दिल
इस सैरके नशे सों अवल तर दिमाग था
आखिऱकूँ इस फिराक़ में खींचा खुमार दिल
मेरे सुनेमें आके चमन देख इश्क का
है जोशे-खूँ सों तनमें मेरे लालाजार दिल
हासिल किया हूँ जगमें सरापा शिकस्तगी
देखा है मुझ शकीबे हों सुब्हेबहार दिल
हिजरत सों दोस्ताँके हुआ जी मेरा गुजर
इश्रत के पैरहन कुँ दिया तार-तार दिल
हर आशना की याद की गर्मीसों तनमने
हरदममें बेक़रार है मिस्ले-शरार दिल
सब आशिक़ाँ हजूर अछे पाक सुर्खऱू
अपना अपस लहूसों किया है फ़िगार दिल
हासिल हुआ है मुजकूँ समर मुज शिकस्त सों
पाया है चाक-चाक़ हो शकले-अनार दिल
अफसोस है तमाम कि आखिऱकुँ दोस्ताँ
इस मैक़दे सों उसके चला सुध बिसार दिल
लेकिन हजार शुक्र वली हक़के फैज़ सों
फिर उसके देखनेका है उम्मेदवार दिल
(शीर्ष पर वापस)
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
मर्द का ऐतबार खोती है
क्योंके हासिल हो मुझको जमइय्यत*1
ज़ुल्फ़ तेरी क़रार खोती है
हर सहर शोख़ की निगह की शराब
मुझ अंखाँ का ख़ुमार खोती है
क्योंके मिलना सनम का तर्क**2
करूँ
दिलबरी इख़्तियार खोती है
ऐ वली आब उस परीरू की
मुझ सिने का ग़ुबार खोती है
*1.
सुकून, क़रार
**2.
छोड़ना
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मुद्दत हुई सजन ने
दिखाया नहीं जमाल
मुद्दत हुई सजन ने दिखाया नहीं जमाल
दिखला अपस के क़द कूँ किया नईं मुझे निहाल
यक बार देख मुझ तरफ़ अय ईद-ए-आशिक़ाँ
तुझ अब्रुआँ की याद सूँ लाग़िर हूँ ज्यूँ हिलाल
वोह दिल के था जो सोखता-ए-आतिश-ए-फ़िराक़
पहुँचा है जा के रुख़ कूँ सनम के बरंग-ए-ख़ाल
मुम्किन नहीं कि बदर हूँ नुक़्साँ सूँ आशना
लावे अगर ख्याल में तुझ हुस्न का कमाल
गर मुज़्तरिब है आशिक़-ए-बेदिल अजब नहीं
वहशी हुए हैं तेरी अँखाँ देख कर ग़ज़ाल
फ़ैज़-ए-नसीम-ए-मेह्र-ओ-वफ़ा सूँ जहान में
गुलज़ार तुझ बहार का है अब तलक बहाल
(शीर्ष पर वापस)
उसकूँ हासिल क्योंकर
होए जग में
उसकूँ हासिल क्योंकर होए जग में फ़राग़-ए-ज़िन्दगी
गर्दिश-ए-अफ़लाक है जिस कूँ अयाग-ए-ज़िन्दगी
अय अज़ीज़ाँ सैर-ए-गुलशन है गुल-ए-दाग-ए-अलम
सुहबत-ए-अहबाब है मआनी में बाग़-ए-ज़िन्दगी
लब हैं तेरे फ़िलहक़ीक़त चश्म-ए-आब-ए-हयात
ख़िज़्र-ए-ख़त ने उस सूँ पाया है सुराग़-ए-ज़िन्दगी
जब सूँ देखा नईं नज़र भर काकुल-ए-मुश्कीं-ए-यार
तबसे ज्यूँ सुम्बल*1
-ए-परीशाँ है दिमाग़-ए-ज़िन्दगी
आसमाँ मेरी नज़र में कूबा-ए-तारीक है
गर न देखूँ तुझ कूँ अय चश्म-ए-चराग़-ए-ज़िन्दगी
लाला-ए-ख़ूनीं कफ़न के हाल से ज़ाहिर हुआ
बस्तगी है ख़ाल सूँ खूबाँ के दाग़-ए-ज़िन्दगी
क्यूँ न होवे अय ‘वली’ रौशन शब-ए-क़दर-ए-हयात
है निगाह-ए-गर्म-ए-गुलरू याँ चराग़-ए-ज़िन्दगी
*1.
केश
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