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चबूतरा
निरूपमा

 

       रसूलपुर के तीस पैंतीस घरों को पीछे छोड़ती तालाब से थोड़ा हटकर भीमकाय नीम की टेढ़ी डाल को छूती हुई छत पर मुण्डेर नहीं बन पाई थी। उसी डाल की छाया में बोरा बिछा कर बिरजू पढ़ाई किया करता जबकि उसका भाई सरजू पतंग उड़ाता रहता। एक दिन पतंग उड़ाता-उड़ाता छत से नीचे गिर पड़ा। जमा पूँजी खेत खलिहान घर सब कुछ बिकवा कर डेढ़ महीने अस्पताल में रहकर दुनिया छोड़ गया। बिरजू की पढ़ाई छूट गई। वह पिता के साथ दूसरे खेतों पर मजदूरी करने लगा। आमदनी ठीक होने लगी तो वह पुनः स्कूल जाने लगा।

       एक दिन उसके पिता खेत में गन्ना काट रहे थे कि सांप ने उन्हें काट लिया। वह तो अपनी पत्नी और सरजू के पास परलोक चले गये बिरजू अकेला रह गया। घरबार तो पहले ही छिन चुका था अब निवाला भी छिन गया। कुछ दिन तो गाँव वालों के सहारे कट गये फिर फाकों के दौर ने उसके कदम शहर की ओर मोड़ दिये। इधर-उधर भटकता जीवन और भी दुश्वार हो चला।

       सड़क के किनारे पीपल के नीचे एक चबूतरा था बिरजू की तरह अकेला। कभी कोई शव यात्रा निकलती तो अन्तिम प्रणाम के उद्देश्य से वहाँ रख कर महाप्रयाण के लिये चल पड़ती कभी बारात निकलती तो आर्शीवाद के लिये कुछ पल रूकती। मोहर्रम के ताजिये निकलते तो उन्हें भी वहीं रखा जाता। वहीं सब एकत्र होकर जुलूस का रूप अख्तियार कर लेते।

       हर दिन की तरह उस दिन भी कैथोलिक चर्च के फादर आॅरनोल्ड सामान खरीद कर चर्च वापस जा रहे थे कि भूखे प्यासे बिरजू ने उनका हाथ पकड़

लिया -

       ‘‘बहुत भूखा हूँ। खाने को कुछ दे दो बदले में जो चाहे काम करा लो’’ फादर की आदत में शुमार था दूसरों का दुःख दर्द सुनना और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करना सो बिरजू को साथ ले वहीं चबूतरे पर आ बैठे। लाये हुए सामानमें से बिस्कुट का पैकेट उसे दे दिया। चबूतरे को अपने नये मेहमान बड़े अच्छे लगे। बिरजू को अपनी तरह अकेला जान उसे अपने साथ रख लिया।

       शमीम मौसमी फल बेचा करता था। करीने से अमरूद केले बेर कैथे डलिया में सजाता। खट्टी-मीठी इमली बीच में रख कर डलिया हरी पत्तियों से सजा कर सिर पर रख निकल पड़ता शाम ढलते-ढलते घर लौट जाता। बिरजू को अकेले बैठे देख परिचय के लिये जो आया तो नियम सा बन गया वहाँ कुछ देर बैठने का। चारखाने की नीली तहमद के फेंटे से रूपये निकालता बिक्री के अलग करता मुनाफे के अलग कर वापस फेंटे में कस कर शिवमंगल की प्रतीक्षा करता। वह अपनी चलती फिरती बिसाती की दुकान कंधे पर लटकाए घर-घर सामान बेचा करता। ढूंढ-ढूंढ कर नगीने जड़े बालों के क्लिप मैच करते कानों के टाॅप्स झुमके और नग जड़ी बिन्दियाँ तो जैसे होड़ रहती कि कौन पहले खरीदे। शमीम और शिवमंगल बचपन के मित्र थे छठी क्लास तक साथ पढ़कर धन्धे पानी से लग गये उसमें भी दोनों साथ ही रहे। निकलते भले ही अलग-अलग थे लेकिन जाते साथ ही थे। शमीम के साथ अब वह भी कुछ देर चबूतरे पर बैठने लगा।

       जब घण्टाघर की घड़ी में टन्-टन्-टन्-टन् बारह बजे के घण्टे बज रहे होते तभी वह घंुघराले बालों वाली लड़की कच्चे पक्के फल खाती बेखबर सी खैरूल्ला गली की ओर चली जाती। सांवला रंग, तीखी नाक, हिरनी सी बड़ी-बड़ी भूरी पनीली आँखों में गजब का आकर्षण था। कभी नाप से छोटे कभी बड़े कपड़े बिरजू के मन में उत्सुकता जगाते रहते। वह बात करना चाहता लेकिन वह रुकती ही कब थी अपनी ही धुन में चलती चली जाती। हमेशा अकेली ही आती-जाती। पता नहीं परिवार में कोई और था भी कि नहीं।

       कभी ऐसा भी होता कि वह नहीं भी आती तब बिरजू परेशान हो उठता। कितनी ही बातें सोचता कि बीमार तो नहीं हो गई या घर में तो कुछ नहीं हो गया। चबूतरा भी उसकी राह देखता उसे लगता कि घड़ी ने बारह बजे के घण्टे जल्दी तो नहीं बजा दिये हैं जब सूरज की परछाई दूर तक पसरने लगती तो विचारों को झटका देता सोचता कौनसा मेरे पास आकर बैठती है तो चिन्ता करूं। लाख प्रयत्न करता न याद करने के पर भूल नहीं पाता तब सोचता कि वह भी बिरजू की तरह उसकी प्रतीक्षा करने लगा है।

       इस तरह चबूतरे का परिचय का दायरा बढ़ता गया। वहाँ बैठकर होने वाली चर्चाएँ उसके मन में भी उथल पुथल मचाती रहती। वह भी सबके बारे में अपने बारे में सोचता। कुछ समय पहले तब वह कितना अकेला था इस पीपल के साथ जिसमें ठूंठ ज्यादा पत्ते कम हैं। बिरजू क्या आया यहाँ तो मेला सा लग गया। फादर आॅरनोल्ड के पास कितने काम हैं फिर भी वह सबका कितना ध्यान रखते हैं। बिरजू को मोटी दरी भी लाकर दे दी लेटने बैठने के लिये। तभी विचारों की श्रृंखला तोड़ वह घुंघराले बालों वाली सजीव हो उठी। उसे लगता कि कुछ पल भी वह उसके साथ बैठ जाए तो धन्य हो जाए। फिर उसे बिरजू पर गुस्सा आता कि खूसट शिवमंगल को रोक लेता है शमीम को फादर को भी बस उसे ही नहीं बुलाता कल शिवमंगल के झोले से लाल पीले नगों वाला क्लिप गिर गया था आ जाती तो उसे दे देता कितना सुन्दर लगता उसके बालों में लगकर। तभी अचानक उसका ध्यान विकेन्द्रित हुआ -

       यासीन खाँ और रामपाल दोनों साथ-साथ आ रहेथे ताहिर और रफीक भी साथ थे।

       ‘‘ताजिये निकलने हैं।’’

       ‘‘पीर के दिन निकालेंगे। परेशानी फिर वही है। हिन्दू मुस्लिम साथ चलेंगे।’’

       ‘‘कहो तो न चलने दें’’

       ‘‘रोकोगे भी कैसे?’’

       ‘‘बस देखते जाओ। ताजिये तो उठने दो वैसे भी इन बुतपरस्तों को बीच-बीच में सबक मिलते रहना चाहिए। जहाँ देखो बुत बनाया कुठरिया बनाई और लगे पूजा के नाम पर गंदगी मचाने। तोड़ देते हैं एक आधा मन्दिर। क्यों भई राम पाल मेरी बातें बुरी तो नहीं लगीं?’’

       ‘‘पत्थर में भी कहीं जान होती है? वैसे भी दोनों धर्मों की एकता हमारे लिये मुश्किल होती जा रही है। दो चार लठैत साथ रख लेना।’’

       क्यों परेशान होते हो? इन बुत परस्तों में इतना दम ही कहाँ है। कायर हैं दब्बू सालें।’’

       जुलूस के साथ दंगे फसाद की रूपरेखा तैयार हो चुकी थी बस क्रि़यान्वन बाकी था। चबूतरे का दिल बुरी तरह घड़क रहा था। काश वह चल सकता बोल सकता कुछ कर सकता यह सब रोकने के लिये शिवमंगल व शमीम दोनों आते होंगे। काश वह मेरे मन की बात जान लेते और खून खराबा रूक जाता। यह सब सोचते-सोचते कई घण्टे बीत गये अचानक उसे कुछ चिपचिपा सा अहसास हुआ - ‘‘यह क्या है? यह तो शमीम है। इसे क्या हुआ? इसके खून क्यों बह रहा है? यहाँ ढेर हो गया है किसी ने अस्पताल क्यों नहीं पहुँचाया? बिरजू भी - बस्स जब देखो पुराने अखबार पढ़ता रहता हैं तलाश रहा होगा कहीं से।’’

       भूरी पनीली आँखों वाली लड़की आज सीधे न जाकर चबूतरे की ओर आ गई। संभवतः बहता रक्त उसे खींच लाया। चारों तरफ निगाह दौड़ाई। थोड़ी दूर पर बिरजू दिखाई दिया -

       ‘‘अरे ओय! सुन तो। इधर को आ।’’

       बिरजू ने देखा उसकी तो बांछे खिल गई। वह घंुघराले बालों वाली लड़की उसे ही बुला रही थी। वह दौड़कर आया आ- -प? आप मुझे बुला रहीं हैं।’’

       ‘‘यह जो जख्मी पड़ा है इसे जानता है?’’

       ‘‘यह तो शमीम चच्चू हैं। क्या हुआ इन्हें?’’

       दौड़कर पानी ला। कोशिश करती हूँ होश में लाने की। तू जानता है इसका घर कहाँ है।’’

       ‘‘नहीं’’

       लड़की ने उसके चेहरे पर पानीके छींटे दिये और सूती चुन्नी पानी में भिगो कर जमीन पर फैला खून साफ किया। बीड़ी के खाली बण्डल के कागजी टुकड़े चोटों पर चिपकाए। कराहते कराहते शमीम ने आखें खोली। दोनों ने उसे सहारा देकर पीपल के ठूंठ से सटा कर बैठा दिया। चोटें गहरी लगी थीं।

       ‘‘शिव मंगल आया था?’’

       हां लेकिन रूका नहीं वापस लौट गया कह रहा था दंगे के आसार हैं।

       ‘‘चच्चू आपको क्या हुआ?’’

       ‘‘तुम्हारे मन्दिर के बुत को बचाने का नतीजा है।’’

       ‘‘क्या मतलब?’’

       ताहिर के मौहल्ले से जो ताजिये निकले थे उसमें हमेशा की तरह हिन्दू मुस्लिम साथ थे। यासीन खाँ और रामपाल तो घाघ किसिम के नेता हैं। न यासीन ने कभी नमाज पढ़ी होगी माफ करना न ही रामपाल ने पूजा की होगी फिर भी अलग-अलग मुसलमानों को उनका इस्लाम औरहिन्दुओं को उनका हिन्दू धर्म समझाते रहते थे। जब किसी पर असर नहीं हुआ तो आ गये इस बार औकात पर एक ओर से पथराव कर शोर मचा दिया-पकड़ लो हिन्दुओं को भागने न पाएं दूसरे छोर पर शिव मन्दिर का त्रिशूल तोड़ कर - तोड़ डालो मन्दिर। रफीक तैश में आकर तोड़फोड़ करने लगा। उसनेे बुत तोड़ कर उछाला ही था कि मैंने उसे हाथ में रोक लिया। बताओ मैंने क्या गलत किया? एक मजहब का मतलब दूसरे को नीचा दिखाना तो नहीं होता न’’ ...........

       ‘‘मजहब का क्या मतलब होता है चच्चू?’’

       बेटा! मजहब का मतलब दूसरों की भलाई करना होता है न कि जान लेना। मजहब की बुलन्दी से मतलब है एक खुदा एक बिरादरी एक समाज जहाँ सभी के विचार एक से हों सबकी भलाई के लिये। मारकाट तोड़फोड़ तो मजहबी वहशीपन है दीवानापन है। यह भी कोई बात हुई कि मोहम्मद साहब का कार्टून बनाया डेनमार्क के वाशिन्दे ने और मारकाट मचा रहे हैं हम अपने मुल्क में। नुकसान किसका है अपना अपने मुल्क का। यह विरोध शान्ति से भी तो हो सकता था। गांधी बापू भी तो शान्ति से भूखे रह कर बड़े-बड़े काम करवा लेते थे।’’

       ‘‘खुदा और ईश्वर में क्या फर्क है चच्चू?’’ क्या वह भी ऊपर ऐसे ही लड़ते हैं जैसे हम सब? ऐसे ही कितने अनर्गल प्रश्न उसके जहन को मथते रहे।

       सुबह चर्च जाते समय फादर डरे सहमे बिरजू को साथ ले गये। वहां दिन में ढेर सी मोमबत्ती जलते देख वह सोच में पड़ गया डरते-डरते बोला -

       ‘‘आप दिन में इतनी मोमबत्तियाँ जलाते हैं और मैं वहाँ रात में अंधेरे में रहता हूँ। रात में जलाया करिये तो जो बचेंगी उन्हें मैं जला लूगां। इससे दोनों जगह का अंधेरा दूर हो जाएगा।’’

       ‘‘तुम इतने समझदार हो स्कूल क्यों नहीं जाते?’’

       ‘‘खाना भी तो आप सबकी मेहरबानी से मिलता है पढ़ने को पैसे कहाँ से लाऊं?’’

       जहाँ से पढ़ाई छोड़ी थी वहीं से चाहो तो शुरू कर सकते हो। किस कक्षा में थे?

       ‘‘सातवीं में’’

       ‘‘ठीक है। कल से तुम फिर स्कूल जाओेगे मैं करूंगा तुम्हारी मदद लेकिन तुम्हें मेहनत बहुत करनी होगी।’’ बिरजू स्कूल से लौटा तो चबूतरा बड़ा प्रसन्न हुआ उसे लगा कि वह पढ़ लिख कर लोगों को इन्सान बना देगा।

       भूरी पनीली आँखों वाली लड़की भी कभी-कभी बिरजू के पास आ जाती।

       ‘‘तुम बेतुके कपड़े क्यों पहनती हो? तुम्हें नहीं लगता कि सही नाप के कपड़े तुम पर ज्यादा अच्छे लगेंगे?’’

       ‘‘मैं घरों में काम करती हूँ। वहाँ से जो उतरन मिलती है उसे ही तो पहनूगीं।’’

       ‘‘घर में और कोई नहीं है?’’

       ‘‘मैं हूँ और मेरा शौहर।’’

       ‘‘दिखाई नहीं देते कभी।’’

       ‘‘वह हिन्दू है। कैलाश नाम है मेरा अल्ला रखी है। इसीलिए हम छिपकर रहते हैं। यह बात कोई नहीं जानता। बस फादर जानते हैं और अब तुम।’’

       ‘‘तुमने यह बात मुझे क्यों बता दी। मैं तो हिन्दू हूँ। मुझ पर भरोसा बिरादरी पर क्यों नहीं?’’

       ‘‘जात बिरादरी कब भरोसे लायक होती है। पता चल भर जाए जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। जब घर की छत गिरी थी अब्बू दब कर मर गये थे। मुझ यतीम को किसी ने एक निवाला भी नहीं दिया। वह मौलाना रियाज अपने घर ले गया कि बेटी बनाकर रखेगा। वह तो अच्छा हुआ पीछे का दरवाजा खुला था भाग निकली फादर से टकरा गई कम से कम इज्जत से रोटी तो ख रही हूँ। कैलाश पास के होटल में काम करता है उसका भी कोई नहीं है। फादर ने ही तो निकाह कराया था कोरट में।

       मोहर्रम बीत चुका था। धीरे-धीरे गली मौहल्ले अपने ढर्रे पर आने लगे थे। फादर ने ढेर सारे मोमबत्ती के पैकेट बिरजू को लाकर दिये कि अपना ही घर क्यों और घरों का अन्धेरा भी तुम्हारे जैसे लड़के ही दूर कर सकते हैं। शमीम ने बिक्री से बचे फल देकर कहा - ‘‘अंधेरा ही क्यों भूख भी दूर कर सकते हो।’’ शिवमंगल ने दो मोमबत्ती मांगी और पैसे देने लगा।

       ‘‘नहीं चाचा मैं पैसे नहीं ले सकता।’’

       ये अमरूद मुझे दे दो लेकिन पैसे देकर लूंगी।’’

       नहीं अल्ला रखी ऐसे मत करो। सब लोग तो मेरे अपने हो फिर पैसे कैसे?

       फादर खैरूल्ला गली से चर्च लौट रहे थे। मिली जुली आवाजें सुनकर चबूतरे तक आ गये थे।

       ‘‘बेटा फल तो मुझे भी चाहिए लेकिन पैसे देकर’’

       ‘‘यहाँ मैं आप सबकी मेहरबानी से ही तो हूँ।

       ‘‘एक और सही’’ शिवमंगल भी आ चुका था।

       तुम हर जरूरतमन्द ो पैसे लेकर यह सामान दे दो जो पैसे इकट्ठे होंगे उनसे मैं और मोमबत्ती लाऊगां और धीरे-धीरे तुम आत्मनिर्भर हो जाओगे।

       सब कुछ ठीक सा चल रहा कि कैलाश पैर मुड़ने से खड्ड में जा गिरा कोई नुकीला पत्थर चुभ जाने से खून बहने लगा था। उसके चिल्लाने की आवाज सुनकर अल्ला रखी दौड़ी पीछे-पीछे और सब, सामने से ताहिर अपने तांगे में आ रहा था। आवाज सुनीत तो तांगा रोक कर कूद गया। कैलाश को निकालने लगा। अल्लारखी डर से काँप रही थी। सब कुछ खत्म हो जाने के भय से पनीली आँखें बहने लगी थीं।

       ‘‘किसका मिलने वाला है? तू रो रही है तेरा कौन है बोलती क्यों नहीं?

       ‘‘मेरा घरवाला है। इसे बचा ले। मेरा और कोई नहीं है। तुझे खुदा का वास्ता इसे बचा ले।’’

       तांगे में डाल सबको साथ बिठा उसे अस्पताल ले गया।

       रजिस्टर भरते समय नाम पूछा

       ‘‘ म म म मु ..............झे मार डालो इ.....से कुछ मत .............कहना।’’

       ‘‘नाम बता’’

       ‘‘क.......क.......क........कै    कै  कैलाश।’’

       बाजुओं से वह गिरने को हुआ

       तभी अजान सुनाई दी - ‘‘अल्ला हो-अकबर’’ याद आया कल असर की नमाज के समय मौलाना कुरान सुना रहे थे - नेकी की राह पर चलो। खुदा के बन्दों की हिफाजत करो’’

       ताहिर की बाजुओं ने कैलाश को कसकर थाम लिया। रजिस्टर पर नाम लिखवाया।

       कैलाश मार्फत ताहिर हुसैन।

       देगची की चाय उबल चुकी थी। भूरी पनीली आँखों वाली लड़की बारी-बारी से सबको चाय दे रही थी। चबूतरा चाह रहा था उसे भी वह चाय पिला दे। उसके हाथ से प्याली गिरी और चाय चबूतरे में जज़्ब हो गई।

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