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कहानी |
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पुरानी कहानी : नया पाठ
कहानियाँ
जन्म 4 मार्च 1921, औराही हिंगना, अररिया, बिहार
कहानी, उपन्यास रिपोर्ताज, संस्मरण उपन्यास : मैला आँचल, परती परिकथा, जुलूस, दीर्घतपा, कितने
चौराहे, पलटू बाबू रोड
निधन
:
11 अप्रैल 1977 बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन - तूफान - उठा! हिमालय की किसी चोटी का बर्फ पिघला और तराई के घनघोर जंगलों के ऊपर
काले-काले बादल मँडराने लगे। दिशाएँ साँस रोके मौन-स्तब्ध! कारी-कोसी के कछार पर चरते हुए पशु - गाय,बैल-भैंस- नदी में पानी पीते समय
कुछ सूँघ कर, आतंकित हुए। एक बूढ़ी गाय पूँछ उठा कर आर्तनाद करती हुई भागी। बूढ़े
चरवाहे ने नदी के जल को गौर से देखा। चुल्लू में लिया - कनकन ठंडा! सूँघा -
सचमुच, गेरुआ पानी! गेरुआ पानी अर्थात पहाड़ का पानी - बाढ़ का पानी? जवान चरवाहों ने उसकी बात को हँसी में उड़ा दिया। किंतु जानवरों की देह की
कँपकँपी बढ़ती गई। वे झुंड बाँध कर कगार पर खड़े नदी की ओर देखते और भड़कते। फिर
धरती पर मुँह नहीं रोपा किसी बछड़े ने भी। कारी-कोसी की शाखा-नदियाँ - पनार, बकरा, लोहंद्रा और महानदी के दोनों कछारों
पर भदई धान, मकई और पटसन के खेतों पर मोटी कूँची से पुता हुआ गहरा-हरा रंग!
गाँवों की अमराइयों और आँगनों में 'मधुश्रावणी' के मोहक गीतों की गूँज! हवा में
नववधुओं की सूखती-लहराती लाल, गुलाबी, पीली चुनरियों की मादक-गंध! मड़ैया में
लेटे, मकई के दूधिया बालों की रखवाली करनेवाले अधेड़ किसान के मन में रह-रह कर
एक मीठा पाप जगता है - पाट के खेतों में साग खोंटनेवाली काली-काली जवान
मुसहरनियों के झुंड को देख कर। वह विरहा अलापने लगता है, ऊँचे सुर में - 'अरे
साँवरी सुरतिया पे चमके टिकुलिया कि छतिया पे जोड़ी अनार गे - छौंड़ी छतिया पे
जोड़ी अ-ना-आ-आ-आ-आ-र!' 'मार मुँहझौंसे बुढ़वा-वानर को। बुढ़ौती में अनार का सौख देखो।' लड़कियाँ खिलखला कर हँसीं। हँसते-हँसते एक-दूसरे पर गिर पड़ीं। ...छौंड़ी माने
तू हमार गे - छौंड़ी माने तू बतिया ह-मा-आ-आ-आ-र! ...अनार नहीं, अन्हार! अर्थात- अंधकार! पाट के खेतों सहित काली-काली जवान मुसहरनी छोकरियाँ आकाश में उड़ गईं? दल
बाँध कर मँडरा रहीं हैं? हँसती हैं तो बिजली चमक उठती है। ...रखवाला सूरज दो
घड़ी पहले ही डूब गया! अं-ध-का-आ-आ-आ-आ-र! साँझ को बूँदाबाँदी शुरु हुई। मन का हुलास, गले में बरसाती गीत 'बारहमासा'
की लय में फूट कर निकल पड़ा - 'एहि प्रीति कारन सेतु बाँधन सिया उदेस सिर-राम
हे-ए-ए-ए-ए-ए!' हे-ए-ए-ए-हो-ओ-ओ-ओ-! ...हथिया (हस्ता) नक्षत्र की आगमनी गाती हुई पुरवैया हवा, बाँस के बन में
नाचने लगी। उसके साथ सैकड़ों प्रेतनियाँ, डाल-डाल में झूले डाल कर झूल पड़ीं।
...विकट किलकारियाँ! झमाझम वर्षा में दूर से एक करुण अस्फुट-गुहार आ कर गाँवों को सिहरा गया -
हे-ए-ए-ए-हो-ओ-ओ-ओ! ...कोई औरत राह भूल कर अँधेरे में पुकार रही है? बाँस-बन की प्रेतनियाँ, करोड़ों जुगनुओं से जड़ी चुनरियाँ उड़ाती दौड़ीं, खेतों
की ओर। ...डरे हुए बच्चों को माताओं ने अपनी छातियों से चिपका लिया। दूर नदी के
किनारे खेतों में खड़ी कोई उसी तरह पुकारती-गुहारती रही - हे-ए-ए-ए-हो-ओ-ओ! ...खेत की लछमी आधी रात में रो रही है? ...सर्वनाश! गुहार की पुकार क्रमशः क्षीण होती गई और एक क्रुद्ध गुर्राहट की खौफनाक आवाज
उभरी -'गों-ओं-ओं-ओं!' ...हवाई जहाज? गुर्राहट की पुकार क्रमशः निकट आ रही है। सबसे उत्तरवाले गाँव के सैकड़ों लोग
एक साथ चिल्ला उठे। भयातुर प्राणियों के कंठों से चीखें निकलीं - 'बा-आ-आ-ढ़!
अरे बाप!' 'बाढ़?' 'बकरा नदी का पानी पूरब-पच्छिम दोनों कछार पर 'छहछह' कर रहा है। मेरे खेत की
मड़ैया के पास कमर-भर पानी है।' 'दुहाय कोसका महारानी!' इस इलाके के लोग हर छोटी-बड़ी नदी को कोसी कहते हैं। ...कोसी-बराज बनने के
बाद भी बाढ़? ...कोसका मैया से भला आदमी जीत सकेंगे? ...लो, और बाँधो कोसी को!
'अब क्या होगा?' कड़कड़ा कर खेतों में बिजली गिरी। गाँव के लोगों की आँखों की रोशनी मंद हो
गई।...एक तरल अंधकार में दुनिया डूब रही है। ...प्रलय, प्रलय! निरुपाय, असहाय लोगों ने झाँझ-मृदंग बजा कर कोसी-मैया का वंदना-गीत शुरु
किया! जवानों ने टाँगी-कुदाली से बाँस की बल्लियों, लकड़ियों को काट कर मचान बाँधना
शुरु किया। मृदंग-झाँझ के ताल पर फटे कंठों के भयोत्पादक सुर... 'कि
आहे-मैया-कोसका-आ-आ-आ-हैय-मैया-तोहरे-चरनवाँ-ग मैया अड़हूल-फूलवा
कि-हैय-मैया-हमहु-चढ़ायब-हैय...!' ...धिन-तक-धिन्ना, धिन-तक-धिन्ना! ...छम्मक-कट-छम, छम्मक-कट-छम! उतराही - गाँव का एकमात्र 'पढुआ-पागल' हँसता हुआ इसी ताल पर जन-कवि
नागार्जुन की कविता की आवृत्ति कर रहा है - 'ता-ता थैया, नाचो-नाचो कोसी
मैया...!' और सचमुच इसी ताल पर नाचती हुई कोसी-मैया आई और देखते-ही-देखते
खेत-खलियान-गाँव-घर-पेड़-सभी इसी ताल पर नाचने लगे - ता-ता थैया, ता-ता
थैया...धिन-तक-धिन्ना, छम्मक-कट-छम! - मुँह बाए, विशाल मगरमच्छ की पीठ पर सवार दस-भुजा कोसी नाचती निकलती,
अट्टहास करती आगे बढ़ रही है। अब मृदंग-झाँझ नहीं, गीत नहीं-सिर्फ हाहाकार! किंतु नौजवान लोग जीवट के साथ जुटे हुए हैं, मचान बाँध रहे हैं, केले के
पौधों को काट कर 'बेड़ा' बना रहे हैं। ...जब तक साँस, तब तक आस! 'ओसरे पर पानी आ गया!' 'बछरू बहा जा रहा है। धरो - पकड़ो-पकड़ो!' 'किसका घर गिरा?' 'मड़ैया में कमर-भर पानी!' 'ताड़ के पेड़ पर कौन चढ़ रहा है?' 'घर में पानी घुस गया है। अरे बाप!' 'छप्पर पर चढ़ जा!' 'माय गे-ए-ए-ए-बाबा हो-ओ-ओ-दुहा-ई-ई-सँभल के-ले-ले गिरा-गिरा-छप्पर चढ़ जा -
ए सुगनी - रे रमललवा-आ-आ दीदी ई-ई-हाय-हाय-माय-गे-बाबा हो-ओ-ओ-हे इस्सर
महादेव-ले ले गया-गया-डूबा-डूबा-आँगन में छाती-भर पानी - यह छप्पर कमजोर है,
यहाँ नहीं-यहाँ जगह नहीं - हे हे ले ले गिरा-भैस का बच्चा बहा रे-ए-ए-ए डोमन-ए
डोमन-साँप-साँप - जै गौरा पारबती - रस्सी कहाँ है - हँसिया दे - बाप रे
बाप-ता-ता थैया, ता-ता-थैया, नाचो-नाचो कोसी-मैया-छम्मक-कट-छम...!' भोर के मटमैले प्रकाश में ताड़ की फुनगी पर बैठे हुए वृद्ध गिद्ध ने देखा -
दूर बहुत दूर तक गेरुआ पानी - पानी-पानी! बीच-बीच में टापुओं जैसे गाँव-घर,
घरों और पेड़ों पर बैठे हुए लोग। वह वहाँ एक भैंस की लाश! डूबे हुए पाट पर मकई
के पौधों की फुनगियों के उस पार...! राजगिद्ध पाँखें तोलता है - उड़ान भरता है! हहास! जंगली बतकों की टोली अपने घोंसलों और अंडों को खोज रही है। टिटही असगुन और
अमंगल-भर बोल रही है। बादल फिर घिर रहे हैं। हवा फिर तेज हुई। ...दुहाई! इस क्षेत्र के पराजित उम्मीदवार, पुराने जनसेवक जी का सपना सच हुआ। कोसका
मैया ने उन्हें फिर जनसेवा का 'औसर' दिया है। ...जै हो, जै हो! इस बार भगवान ने
चाहा तो वे विरोधी को पछाड़ कर दम लेंगे। वे कस्बा रामनगर के एक व्यापारी की
गद्दी से टेलीफोन करके जिला मैजिस्ट्रेट तथा राज्य के मंत्रियों से योगसूत्र
स्थापित कर रहे हैं - 'हैलो! हैलो...!' राजधानी के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक-पत्र के स्थानीय निज संवाददाता को बहुत दिन
के बाद ऐसा महत्वपूर्ण समाचार हाथ लगा है - क्या? प्रेस-टेलीग्राम का फार्म
नहीं है? ...ट्रा-ट्रा-टक्का-ट्रा-ट्रा..! 'हैलो, हैलो! हैलो पुरनियाँ, हैलो कटिहार!' ...ट्रा-ट्रा-टक्का-टक्का...! 'हैलो, मैं जनसेवक शर्मा बोल रहा हूँ। जी? जी करीब पचास गाँव एकदम
जलमग्न-डूब गए। नहीं हूजूर, नाव नहीं, गाँव। गाँव माने विलेज जी? कुछ सुनाई
नहीं पड़ रहा जी! नाव एक भी नहीं है। हूजूर डी.एम.को ताकीद किया जाए जरा। जी? इस
इलाके का एम.एल.ए.? जी, वह तो विरोधी पार्टी का है। जी...जी? हैलो-हैलो-हैलो!'
जनसेवक जी ने संवाददाता को पोस्ट ऑफिस के काउंटर पर पकड़ा और उसे चाय की
दुकान पर अपना बयान लिखाने के लिए ले गए। किंतु चाय की दुकान पर सुविधा नहीं
हुई, तो उसे अपने डेरे पर ले गए। लिखो - 'स्मरण रहे कि ऐसा बाढ़...बाढ़
स्त्रीलिंग है? तब, ऐसी बाढ़ ही लिखो। हाँ, तो स्मरण रहे कि ऐसी बाढ़ इसके पहले
कभी नहीं आई...।' 'किंतु दस साल पहले तो...?' 'अजी, दस साल पहले की बात कौन याद रखता है! तो लिखो कि सूचना मिलते ही आधी
रात को मैं बाढ़ग्रस्त इलाके...। और सुनो, आज ही यह 'स्टेटमेंट' चला जाए।
वक्तव्य सबसे पहले मेरा छपना चाहिए।' संवाददाता अपनी पत्रकारोचित बुद्धि से काम लेता है - 'लेकिन एम.एल.ए. साहब
ने तो पहले ही बयान दे दिया है - 'फर्स्ट प्रेस ऑफ इंडिया' को - सीधे टेलीफोन
से।' जनसेवक शर्मा का चेहरा उतर गया। ...इतने दिन के बाद भगवान ने जनसेवा का औसर
दिया और वक्तव्य चला गया पहले ही विरोधी का? दुश्मन का? चीनी आक्रमण के समय भी
भाषण देने और फंड वसूलने में वह पीछे रह गए। और, इस बार भी? 'सुनो। मैंने कितने बाढ़ग्रस्त गाँवों के बारे में लिखा था? पचास? उसको डेढ़
सौ कर दो। ...ज्यादा गाँव बाढ़ग्रस्त होगा तो रिलीफ भी ज्यादा-ज्यादा मिलेगा, इस
इलाके को। अपने क्षेत्र की भलाई की लिए मैं सब कुछ कर सकता हूँ। और झूठ क्यों?
भगवान ने चाहा तो कल तक दो सौ गाँव जलमग्न हो सकते हैं!' संवाददाता को अपना वक्तव्य देने के बाद उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं की विशेष
'आवश्यक और अरजेंट' बैठक बुलाई। वक्तव्य में उन्होंने जिस बात की चर्चा नहीं
की, उसी पर प्रकाश डालते हुए सुझाया - 'यह जो बरदाहा-बाँध बना है पिछले साल,
इसके कारण इस कस्बा रामपुर पर भी इस बार खतरा है। पानी को निकास नहीं मिला तो
कल सुबह तक ही-हो सकता है - पानी यहाँ के गाड़ीवान टोला तक ठेल दे!' गाड़ीवान टोले के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने एक-दूसरे की ओर देखा। आँखों-ही-आँखों
में गुप्त कार्रवाई करने का प्रस्ताव पास हो गया। दूसरे ही दिन सुबह को संवाददाता ने संवाद भेजा - 'आज रात बरदाहा-बाँध टूट
जाने के कारण करीब डेढ़ सौ गाँव फिर डूबे...। टक्का-टक्का-ट्रा-ट्रा!! जनसेवक जी
'ट्रंक' से पुकारने लगे - 'हैलो-हैलो-हैलो-पटना, हैलो पटना...!!' कस्बा रामपुर के व्यापारियों और बड़े महाजनों ने समझ लिया - 'सुभ-लाभ' का ऐसा
अवसर बार-बार नहीं आता। चीनी आक्रमण के समय वे हाथ मल कर रह गए।...यह अकाल का
हल्ला चल ही रहा था कि भगवान ने बाढ़ भेज दिया। दरवाजे के पास तक आई हुई गंगा
में कौन नहीं हाथ धोएगा भला! उनके गोदाम खाली हो गए, रातों-रात बही-खाते
दुरुस्त! अकाल-पीड़ितों के लिए फंड में पैसे देने की सरकारी-गैर-सरकारी अपील पर,
उन्होंने दिल खोल कर पैसे दिए।... अनाज? अनाज कहाँ? सरकारी कर्मचारियों ने उनके खाली गोदामों पर सरकारी ताले जड़ दिए। 'भाइयो! भाइयो!! आज शाम को। स्थानीय टाउन हॉल यानी 'ठेठरहौल' में। कस्बा
रामपुर की जनता की एक विराट-सभा होगी। इस सभा में बाढ़-पीड़ित-सहायता-कमिटी का
गठन होगा। भाइयो! भाइयो...!' 'प्यारे भाइयो! द अनसारी टूरिंग सिनेमा के रुपहले परदे पर आज रात एक महान
पारिवारिक खेल... प्यारे भाइयो... आज रात!' 'मेहरबान, आँख नहीं तो कुछ नहीं। जिन भाइयो की आँखों में लाली हो - आँख से
पानी गिरता हो - मोतियाबिंद और रतौंधी हो - एक बार हमारी कंपनी का मशहूर और
मारूफ अंजन इस्तेमाल करके देखें...।' ...मैं का करुँ राम मुझे बुड्ढा मिल गया! ...छप गया, छप गया। इस इलाके का ताजा समाचार। दो सौ गाँव डूब गए। ...आ गया! आ गया! सस्ता बंबैया चादर! ...आ गई! आ गई! रिलीफ की गाड़ी आ गई! ...आ गई! आ रही है! तीन दर्जन नावें! ...सिंचाई मंत्री जी आ रहे हैं! ...भिक्षा दो भाई भिक्षा दो - चावल-कपड़ा-पैसा दो! ...इन्कलाब जिंदाबाद! कस्बा रामपुर के दोनों स्कूल, मिडिल और उच्च-माध्यमिक विद्यालय के लड़के
जुलूस निकाल कर, गीत गा कर फटे-पुराने कपड़े बटोरते रहे। शाम होते-होते वे दो
दलों में बँट गए। बात गाली-गलौज से शुरू हो कर 'लाठी-लठौवल' और छुरेबाजी तक बढ़
गई।...दिन-भर-जुलूस में गला फाड़ कर नारा लगाया - गाना गाया मिडिल स्कूल के
लड़कों ने और लीडर में नाम लिखा जाए हाइयर सेकेंडरी के लड़के का? मारो सालों को!
किंतु रिलीफ-कमिटी के सभापति श्री जनसेवक शर्मा जी निर्विरोध निर्वाचित हुए।
एम.एल.ए. साहब को लोगों ने खूब फींचा। 'वोट माँगने के समय तो खूब 'लाम काफ'
बघार रहे थे। और अभी सरकारी रिलीफ-बोट की बात तो दूर, एक फूटी नाव तक नहीं जुटा
सकते? ...जवाब दीजिए, क्यों आई यह बाढ़? ...आपकी बात नहीं सुनी जाती तो दे दीजिए
इस्तीफा!' एम.एल.ए. साहब के सभी 'मिलीटेंट-वर्कर' अनुपस्थित थे। नहीं तो बात यहाँ भी
रोड़ेबाजी से शुरू हो कर...! सभी राजनैतिक पार्टियों के प्रमुख नेता अपने-अपने कार्यकर्ताओं के जत्थे के
साथ कस्बा रामपुर पहुँच रहे हैं। उनके अलग-अलग कैंप गड़ रहे हैं। सरकारी डॉक्टरों और नर्सों की टोली अभी-अभी पहुँची है। डाकबँगले के सभी
कमरों में आफिसरों के डेरे हैं। ...अफसरों की 'कोर्डिनेशन मीटिंग' बैठी है। सभी राजनैतिक नेताओं ने अपने प्रतिनिधि का नाम दिया है - विजिलेंस-कमिटी की
सदस्यता के लिए। प्रायः सभी पार्टियों में दो गुट हैं - आफिशियल ग्रुप,
डिसिडेंट...। हर कैंप में एक दबा हुआ असंतोष सुलग रहा है। ...कल मुख्यमंत्री जी 'आसमानी-दौरा' करेंगे। ...केंद्रीय खाद्यमंत्री भी उड़ कर आ रहे हैं। ...नदी-घाट-योजना के मंत्री जी ने बयान दिया है। ...और रिलीफ भेजा जा रहा है। चावल-आटा-तेल-कपड़ा-किरासन
तेल-माचिस-साबूदाना-चीनी से भरे दस सरकारी ट्रक रवाना हो चुके हैं। ...कल सारी रात विजिलेंस कमिटी की बैठक चलती रही। 'भाइयो! आज शाम को। म्युनिसिपल मैदान में। आम सभा होगी। जिसमें सरकार की
वर्तमान 'रिलीफ नीति' के खिलाफ घोर असंतोष प्रकट किया जाएगा। रिलीफ कमिटी का
मनमाना गठन करके...।' 'भाइयो! कल साढ़े दस बजे दिन को। कामरेड चौबे। स्थानीय रिलीफ-आफिसर के सामने।
अनशन करने के लिए...।' ...जा जा जा रे बेईमान तोरा एको न धरम। एको न धरम हाय कछु ना शरम। जा जा जा
रे बेईमान तोरा...! 'भाइयो!' दो दिन से छप्परों, पेड़ों और टीलों पर बैठे पानी से घिरे भूखे-प्यासे और
असहाय लोगों ने देखा - नावें आ रही हैं। अगली नाव पर झंडा है। कांग्रेसी झंडा! पिछली नाव पर भी। मगर दूसरे रंग का। ...जै हो! महात्मा गाँधी की जै! ...ए ए !! इसमें महात्मा गाँधी की जय की क्या बात है? ...हड़बड़ाओ मत। नहीं तो डाली टूट जाएगी। ...तीसरी नाव! अरे-रे! वह नाव नहीं। मवेशी की लाश है और उस पर दो गिद्ध बैठे
हैं। ...हवाई जहाज! हवाई जहाज! नावें करीब आती गई। अगली नाव पर जनसेवक जी स्वयं सवार हैं। उनकी नाव पर
'माइक' फिट हैं। वे दूर से ही अपनी भूमिका बाँध रहे हैं - 'भाइयो, हालाँकि
पिछले चुनाव में आप लोगों ने मुझे वोट नहीं दिया। फिर भी आप लोगों के संकट की
सूचना पाते ही मैने मुख्यमंत्री, सिंचाईमंत्री, खाद्यमंत्री...!' पिछली नाव पर विरोधी दल के कार्यकर्ता थे। उन्होंने एक स्वर से विरोध किया -
'यह अन्याय है। आप सरकारी नाव और सरकारी सहायता का इस्तेमाल गलत तरीके से
पार्टी के प्रचार में...।' जनसेवक जी रिलीफ-कमिटी के सभापति हैं। उन्हें विरोध की परवाह नहीं। वे जारी
रखते हैं - 'भाइयो, आप लोग हमारे कार्यकर्ताओं को अपनी संख्या नाम-ब-नाम लिखा
दें। आप लोग एक ही साथ हड़बड़ा कर नाव पर मत चढ़ें। भाइयो, स्टाक अभी थोड़ा है। नाव
की भी कमी है। इसलिए जितना भी है आपस में सलाह करके बाँट-बटवारा...!' रिलीफ-कमिटी के सभापति की नाव जलमग्न क्षेत्र में भाषण बोती हुई चली गई।
साथवाली नाव पर बैठे लोग लगातार विरोध करते हुए साथ चले। दोनों नाव से कुछ
कार्यकर्ता उतरे - बही-खाता ले कर। 'बड़ी नाव आ रही है!' 'भैया, खाली नाव ही आ रही है या और भी कुछ? बच्चे भूख से बेहोश हैं। मेरी
बेटी लबेजान है।' 'दो दर्जन नावें शाम तक लोगों को बटोरती रहीं। रात को विजिलेंस-कमिटी की
बैठक में रिलीफ-आफिसर ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया, 'नावों पर किसी पार्टी का
झंडा नहीं लगेगा! ...बगैर अँगूठा-टीप लिए या बिना दस्तखत कराए किसी को कोई चीज
नहीं दी जाए। ...हमें दुख है कि हम बीड़ी नहीं सप्लाई कर सकते। ...रिलीफ बाँटते
समय किसी पार्टी का प्रचार या निंदा करना गैरवाजिब है। ऐसा करनेवालों को कमिटी
का किसी प्रकार का काम नहीं सौंपा जाएगा।' डॉक्टरों और नर्सों को अभी कोई काम नहीं। वे 'इनडोर' और 'आउटडोर' खेलों में
मस्त हैं -गेम बॉल!...टू स्पेड!...की मिस बनर्जी...की होलो?...नो ट्रंप! रेलवे लाइन के ऊँचे बाँध पर - कस्बा रामपुर के हाट पर पेड़ों के नीचे -
स्कूलों में बाढ़-पीडितों के रहने की व्यवस्था की गई है। जिन गाँवों में पानी
नहीं घुसा है, मगर पानी से घिरे हैं, ऐसे गाँवों में भी लोगों के रहने की
व्यवस्था की गई है। उनके लिए रोज राशन ले कर नावें जाती हैं। डॉक्टरों और
नर्सों के कई जत्थे गाँवों में सेंटर चलाने के लिए भेजे गई हैं। पानी धीरे-धीरे घट रहा है। मुसहर तथा बहरदारों का दम, कैंप के घेरे में कई दिन से फूल रहा था। इन घुटते
हुए लोगों ने पानी घटने की खबर सुनते ही डेरा-डंडा तोड़ दिया। वे पानी के जानवर
हैं। पानी-कीचड़ में वे महीनों रह सकते हैं ...टीप देते-देते अँगूठे की चमड़ी भी
काली हो गई। ...भीख माँग कर खाना अच्छा, मगर रिलीफ या हलवा-पूड़ी नहीं छूना।
छिःछिः!! - वह 'कुर्र-अक्खा' भोलटियर मेरी सुगनी को फुसला रहा था, जानते हो?
...सब चोरों का ठठ्ठ! 'भाइयो, कैंप से जाने के पहले। अपने इंचार्ज को अवश्य सूचित करें। जिन
गाँवों से पानी हट गया है वहाँ के लोग अब जा सकते हैं। उनके पुनर्वास के लिए
रिलीफ-कमिटी की ओर से बाँस-खड़-सूतली तथा और जरुरी सामान...!' 'भाइयो, आपको मालूम होना चाहिए। कि आपकी सहायता के लिए। आए हुए सामान के
वितरण में। घोर धाँधली हो रही है। आप खुद अपनी आवाज बुलंद करके। मौजूदा कमिटी
को...!' 'भाइयो। भाइयो! सुनिए। दोस्तो!!' भाइयो-भाइयो पुकारते हुए दोनों घोषणा करनेवालों ने एक-दूसरे को झूठा और
बेईमान कहना शुरु किया। फिर मारपीट शुरु हुई। पुलिस ने शांति स्थापित करने के
लिए लाठी-चार्ज किया। कई बाढ़-पीड़ित रात-भर हिरासत में रहे। ...राजधानी के प्रमुख अंग्रेजी पत्र ने परदा-फाश करते हुए लिखा - 'छोटी-छोटी
नदियों, खासकर किसी की पुरानी धाराओं में, छोटे-बड़े बाँध बाँधने में
पी.डब्ल्यू.डी.के इंजीनियरों ने अदूरदर्शिता से काम लिया। यही कारण है जिन
क्षेत्रों में कभी बाढ़ नहीं आई। वे जलमग्न हैं इस बार। सरकार के अकर्मण्य
कर्मचारियों...। ...दूसरे दैनिक ने इस बाढ़ की जिम्मेदारी पड़ोसी राज्य के अधिकारियों के सिर
थोपते हुए लिखा - 'पड़ोसी राज्य ने हमारे राज्य की सीमा से सटे हुए क्षेत्र में
बराज बाँध कर सारे उत्तर-पूर्वी बिहार की तमाम छोटी नदियों का निकास अवरुद्ध कर
दिया। बराज बनाने के पहले यदि हमारे राज्य-अधिकारियों से सलाह-परामर्श किया
जाता तो ऐसी बाढ़ नहीं आती।' स्थानीय, अर्थात जिला से निकलनेवाली साप्ताहिक पत्रिका ने इस बाढ़ को
'मैनमेड' बाढ़ करार देते हुए प्रमाणित किया - 'पड़ोसी राज्य नहीं, पड़ोसी राष्ट्र
के कर्णधारों ने ही हमें डुबाया है।' बरदाहा-बाँध टूटने की जिम्मेदारी चूहों पर पड़ी। चूहों ने बाँध में असंख्य
'माँद' खोल कर जर्जर कर दिया था - एक ही साल में। ...पढ़िए, पढ़िए...ताजा समाचार! सारे राज्य में हाहाकार! राज्य की मौजूदा
सरकार के खिलाफ अविश्वास के प्रस्ताव की तैयारी! मुख्यमंत्री के निवास पर अनशन!
पचास टिन किरासन, दस बोरा आटा और चावल के साथ रिलीफ की नाव पनार नदी के बीच
धारा में डूब गई! ...लापता हो गई। जनसेवक जी के विरोधियों ने मुकदमा दायर किया है। करें। जनसेवक जी का काम बन
चुका है। सारे इलाके में उनका जय-जयकार हो रहा है। ...चुनाव में हारने और चीनी
आक्रमण के समय पिछड़ जाने की सारी ग्लानि दूर हो गई है। उन्होंने सूद-सहित वसूल
लिया है। ...भगवान जरुर है, कहीं-न-कहीं! ...भाइयो! ...ओ मेरे वतन के लोगो! जरा आँख में भर लो पानी...। आकाश में गिद्धों की टोली भाँवरी ले रही है। सैकड़ों काले-काले पंख-मँडराते
हुए बादलों जैसे। धरती पर मरे हुए पशुओं की लाशें-कंकाल! हरी-भरी फसलों के सड़ते हुए पौधे! ...दुर्गंध-दुर्गंध-गंध! ...कीचड़-केंचुए-कीड़े - धरती की सड़ी हुई लाश! सर्वहारा लोगों की टोली, सिर झुकाए बचे-खुचे पशुओं को हाँकते, बाल-बच्चों,
मुर्गे-मुर्गियों, बकरे-बकरियों को गाड़ियों, बहँगियों और पीठ पर लाद कर
अपने-अपने गाँव की ओर जा रही है, जहाँ न उनकी मड़ैया साबित है और न खेतों में एक
चुटकी फसल। किंतु उनके पैर तेजी से बढ़ रहे हैं। तीस-बत्तीस दिन के रौरववास के
बाद उनके दिलों में अपने बेघर के गाँव और कीचड़ से भरे खेतों के लिए प्यार की
बाढ़ आ गई है।...कीचड़ पर उनके पैरों के छाप दूर-दूर तक अंकित हो रहे हैं। गाँव फिर से बस रहे हैं। सरकारी रिलीफ, कर्ज और सहायता के बोझ से दबी हुई आत्माओं में फिर देवता आ कर
बसने लगे। तीस-बत्तीस दिन तक अपनी-अपनी जान के लिए वे आपस में लड़ते रहे, रिलीफ
के कार्यकर्ताओं की खुशामद करते रहे। स्वार्थ-सिद्धि के लिए उन्होंने एक-दूसरे
की गरदन पर हाथ रखे, दूसरे का हिस्सा हड़पा, चोरी की, झगड़ा किया।...सभी के दिल
में शैतान का डेरा था। आसिन का सूरज रोज धरती को जगाता है। सूखते हुए कीचड़ों पर दूब के अँखुए हरे
हुए। जंगली बतकों की पाँती 'पैंक-पैंक' करती हुई चक्कर मार रही है। चील, काग,
गिद्ध-सभी प्यारे लगते हैं। गड्ढों में 'कोका' के फूल हैं या बगुले?...हरसिंगार
की डाली फूलों से लद गई। हवा में आगमनी का सुर - माँ आ रही है! भिखारिनी -
अन्नपूर्णा माँ? मिटटी-कीचड़ की प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठान का मंत्र फूँक कर मिट्टी की
संतान ने पुकारा-माँ-आँ-आँ! हमें क्षमा करो...! पूजा के ढोल बजने लगे, सभी ओर! कारी कोसी की निर्मल धारा में अष्टमी का चाँद हँसा। शरणार्थी बंगाली
मल्लाहों के गीत की एक कड़ी रजनीगंधा के तुनुक-कोमल डंठलों की तरह टूट-टूट कर
बिखर रही है - औ रे भा-य-य-य!! तोमारि लागिया-बधुआ-आ-आ-काँदे हाय हाय - उगो
पिरित करिया बधुआ मने पस्ताय...! इलाके का 'पढ़वा पागल' आज कल 'निराला' की एक ही पंक्ति को बार-बार दुहराता है
- 'मिट्टी का ढेला शकरपाला हुआ।' |
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