हिंदी का रचना संसार | ||||||||||||||||||||||||||
मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क |
|
||||||||||||||||||||||||||
कामायनी
कर्मसूत्र-संकेत सदृश थी सोम लता तब मनु को चढ़ी शिज़नी सी, खींचा फिर उसने जीवन धनु को।
छुटे-तीर-से-फिर वे, यज्ञ-यज्ञ की कटु पुकार से रह न सके अब थिर वे।
मन में नव अभिलाषा, लगे सोचने मनु-अतिरंज़ित उमड़ रही थी आशा।
सोमपान की प्यासी, जीवन के उस दीन विभव में जैसे बनी उदासी।
भर उत्साह खड़ी थी, ज्यों प्रतिकूल पवन में तरणी गहरे लौट पड़ी थी।
फिर काम प्रेरणा-मिल के भ्रांत अर्थ बन आगे आये बने ताड़ थे तिल के।
फिर पुष्टि हुआ करती है, बुद्धि उसी ऋण को सबसे ले सदा भरा करती है।
कोई मत है अपना, बुद्धि दैव-बल से प्रमाण का सतत निरखता सपना।
वही तरलता जल में। वही प्रतिध्वनि अंतर तम की छा जाती नभ थल में।
तर्कशास्त्र की पीढ़ी "ठीक यही है सत्य! यही है उन्नति सुख की सीढ़ी।
तू कितना गहन हुआ है? मेघा के क्रीड़ा-पंज़र का पाला हुआ सुआ है।
रट-सी लगी हुई है, किन्तु स्पर्श से तर्क-करो कि बनता 'छुईमुई' है।
बचकर भटक रहे थे, वे किलात-आकुलि थे जिसने कष्ट अनेक सहे थे।
जो व्याकुल चंचल रहती- उनकी आमिष-लोलुप-रसना आँखों से कुछ कहती।
और कहाँ तक जीऊँ, कब तक मैं देखूँ जीवित पशु घूँट लहू का पीऊँ ?
ही नहीं कि इसको खाऊँ? बहुत दिनों पर एक बार तो सुख की बीन बज़ाऊँ।'
'देखते नहीं साथ में उसके एक मृदुलता की, ममता की छाया रहती हँस के।
आलोक किरण-सी, मेरी माया बिंध जाती है जिससे हलके घन-सी।
करके तब मैं स्वस्थ रहूँगा, या जो भी आवेंगे सुख-दुख उनको सहज़ सहूँगा।'
उस कुंज़ द्वार पर आये, जहाँ सोचते थे मनु बैठे मन से ध्यान लगाये।
सपनों का स्वर्ग मिलेगा, इसी विपिन में मानस की आशा का कुसुम खिलेगा।
अब यह प्रश्न नया है, किस विधान से करूँ यज्ञ यह पथ किस ओर गया है?
वह अनंत अभिलाषा, फिर इस निर्ज़न में खोज़े अब किसको मेरी आशा।
मुख गंभीर बनाये- जिनके लिये यज्ञ होगा हम उनके भेजे आये।
फिर यह किसको खोज़ रहे हो? अरे पुरोहित की आशा में कितने कष्ट सहे हो।
जिनसे प्रकट निशीथ सवेरा- "मित्र-वरुण जिनकी छाया है यह आलोक-अँधेरा।
विधि पूरी होगी मेरी, चलो आज़ फिर से वेदी पर हो ज्वाला की फेरी।"
कितनी सुंदर लड़ियाँ, जिनमें-साधन की उलझी हैं जिसमें सुख की घड़ियाँ,
संचित कितनी कृतियाँ, पुलकभरी सुख देने वाली बन कर मादक स्मृतियाँ।
गति में मधुर त्वरा-सी उत्सव-लीला, निर्ज़नता की जिससे कटे उदासी।
होगा श्रद्धा को भी।" प्रसन्नता से नाच उठा मन नूतनता का लोभी।
धधक रही थी ज्वाला, दारुण-दृश्य रुधिर के छींटे अस्थि खंड की माला।
वेदी की निर्मम-प्रसन्नता, पशु की कातर वाणी, सोम-पात्र भी भरा, धरा था पुरोडाश भी आगे।
वही अलग जा बैठी, यह सब क्यों फिर दृप्त वासना लगी गरज़ने ऐंठी।
सुख सुंदर मूर्त बना है, हृदय खोलकर कैसे उसको कहूँ कि वह अपना है।
इसमें सुनिहित होगा, आज़ वही पशु मर कर भी क्या सुख में बाधक होगा।
क्या उसे मनाना होगा, या वह स्वंय मान जायेगी, किस पथ जाना होगा।"
पुरोडाश के साथ सोम का पान लगे मनु करने, लगे प्राण के रिक्त अंश को मादकता से भरने।
शैल श्रृंग की रेखा, अंकित थी दिगंत अंबर में लिये मलिन शशि-लेखा।
दुखी लौट कर आयी, एक विरक्ति-बोझ सी ढोती मन ही मन बिलखायी।
अनल शिखा जलती थी, उस धुँधले गुह में आभा से, तामस को छलती सी।
शीत पवन के झोंके, कभी उसी से जल उठती तब कौन उसे फिर रोके?
कोमल चर्म बिछा के, श्रम मानो विश्राम कर रहा मृदु आलस को पा के।
अपने उस ऋज़ुपथ में, धीरे-धीर खिलते तारे मृग जुतते विधुरथ में।
अपना ज्योत्स्ना-शाली, जिसकी छाया में सुख पावे सृष्टि वेदना वाली।
प्रकृति चंचल बाला, धवल हँसी बिखराती अपना फैला मधुर उजाला।
उलझी जिसमें व्रीड़ा, एक तीव्र उन्माद और मन मथने वाली पीड़ा।
घिरती हृदय- गगन में, अंतर्दाह स्नेह का तब भी होता था उस मन में।
खुलते-मुँदते भीषणता में, आज़ स्नेह का पात्र खड़ा था स्पष्ट कुटिल कटुता में।
वह कुछ और बना हो, मेरा मानस-चित्र खींचना सुंदर सा सपना हो।
इस अनंत मधुबन में, कैसे बुझे कौन कह देगा इस नीरव निर्ज़न में?
जिसका व्यथित बसेरा, वही वेदना सज़ग पलक में भर कर अलस सवेरा।
विस्तृत नीरवता सी- धुली जा रही है दिशि-दिशि की नभ में मलिन उदासी।
विकलता से लिपटी बढ़ती है, युग-युग की असफलता का अवलंबन ले चढ़ती है।
अपने ताप विषम से, फैल रही है घनी नीलिमा अंतर्दाह परम-से।
लहरियाँ लौट रहीं व्याकुल सी चक्रवाल की धुँधली रेखा मानों जाती झुलसी।
कैसी नाच रही ये ज्वाला, तिमिर फणी पहने है मानों अपने मणि की माला।
जगती तल का सारा क्रदंन यह विषमयी विषमता, चुभने वाला अंतरग छल अति दारुण निर्ममता। |
मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क |
Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved. |