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सादा दिल औरत के जटिल सपने लोग कहते थे वह एक सादा दिल भावुक औरत थी मिजाज - लहजे ढब और चाल से रफ्तार ओ गुफ्तार से उसकी रेल अकसर सपनों में छूट जाया करती थी अकसर वीरान स्टेशनों पर सपनों में वह खुद को अकेला पाती उसके सपनों में कोलाज जैसे कुछ चेहरे थे अजनबी शहरों का रास्ता दिखाते भीतर दबे शहरों का माकूल - सा पता बताते उसके सपनों में सैलाब थे भंवर के बीच खिलते कमल थे एम्फीथियेटरों में भटकती वह उनके गलियारों में नाचती थी न जाने कौनसे अनजाने दृश्य जीती और सम्वाद दोहराया करती थी वह उड़ती थी सपनों में नीली मीनारों की उंचाइयों से कूद कर हवा में ही गुम हो कर घबरा कर रोज सुबह वह पलटा करती थी पन्ने सपनों का अर्थ जानने वाली किताबों के सपने जो उसे बिला नागा हर रात आते सपने जो दुर्लभ थे वे और उनके अर्थ वहां नहीं मिलते थे किसी
ने कहा था लिखना खुल कर
एक औरत की पुकार |
एक
औरत के यकीन
एक औरत के गुनाह मनीषा कुलश्रेष्ठ
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