हवा पूरी है
कुछ दिनों से आनन्द को
परेशान देख कर आनन्दी से आखिर रहा न गया और पति से उदासी का कारण पूछ
ही लिया। लेकिन आनन्द बात को टाल गया। सिर्फ इतना कह कर कि कोई खास
बात नही, बिजिनेस की आम परेशानी, टेंशन है। व्यापार में उतार चडाव
आते जाते रहते है। घबराने की जरूरत नही है। आनन्दी को दिलासा दे कर
आनन्द ऑफिस चला गया।
ऑफिस में आनन्द अपने केबिन
में फाईलें देख रहै था और फोन की घंटी बार बार बज कर खामोश हो गई।
क्या करे फोन पर बात कर के। लेनदारों को जवाब भी क्या दे, कि कब तक
और कितनी रकम चुका सकेगा आनन्द। कुछ समझ नही आ रहा था। अकाउन्टेंट
सुरेश से हिसाब लिया, उपर से नीचे कर कागज के उन दो चार टुकडों को कई
बार देख चुका था, जिन पर पिछले एक साल में हुए खर्चो का पूरा विस्तार
से ब्यौरा था। आनन्द समझने की कोशिश में था कि आखिर किस कारण उसकी
आर्थिक स्थिति बिगड गई और फोन सुनने से भी कतराने लगा था। एक वर्ष
में दो विवाह किए। पहले अपनी बिटिया का और छः महीने पहले बेटे का।
दोनों विवाह बडी धूमधाम से संपन्न किए। खर्चो के ब्यौरे में लगभग
अस्सी प्रतिशत विवाह के खर्च थे। खर्च किया कोई गुनाह तो किया नही,
आखिर कमाते किसलिए हैं। भारतीय संस्कृति है विवाह में खर्च करने की।
जैसा दूसरे करते हैं, वही उसने किया है। विवाह समारोह के भव्य आयोजन
से ही समाज में प्रतिष्ठा स्थापित होती है। सभी खुश थे विवाह से।
चारों तरफ से प्रशंसा, तारीफे मिली थी, उसको। कोई कसर नही छोडी थी
दोनों विवाहों में। सारे कार्यक्रम पंचतारा होटलों में किए थे. किसी
भी बाराती, रिश्तेदार, सगे, सम्बन्धी को कोई शिकायत का मौका नही
दिया। सभी को खुशी और तौहफो के साथ बिदा किया था। बडे बूडों का भरपूर
आर्शिवाद और हमउम्र का प्यार था। आज भी कोई मिलता है तो सबसे पहले
विवाह समारोहो की तारीफ के साथ ही वार्तालाप आरम्भ करता है, आखिर
क्यों न करे, एैसा विवाह हररोज थोडे ही देखने को मिलता है।
पिछले बीस वर्षो से आनन्द
व्यापार में है। जीवन के शुरू में पांच सात वर्ष नौकरी की। एक बार जब
व्यापार में कूदा, तो पीछे मुड कर नही देखा। हर वर्ष उन्नती और
तरक्की। आज रहने को कोठी, फार्महाउस, व्यापार के लिए ऑफिस और तीन बडे
बडे शोरूम, स्टाक हेतु गोदाम। आनन्द के तीन बच्चे, दो लडके और एक
लडकी। तीन शौरूम और तीन बच्चे। हर एक का शौरूम। आनन्द को इस बात की
कोई चिन्ता नही थी कि बिक्री में कोई कमी है। शोरूम धडल्ले से चल रहे
थे। बिक्री पहले जैसी थी, मुनाफा भी पहले जैसा था, लेकिन बरकत खत्म
हो गई थी। हकीकत तो यह थी, कि मुनाफे के साथ पूंजी भी कम हो गई। जब
दो शाही विवाह संपन्न हुए तब खुशी ही खुशी थी चारो तरफ, खर्चे को
देखा नही, व्यापार से मुनाफे के साथ पूंजी भी खर्च कर दी और अब नौबत
यहां तक आ गई कि कम पूंजी में व्यापार नही हो रहा है। या तो व्यापार
को कम करे, यह आनन्द को गवारा नही था। कुछ समझ में नही आ रहा था। अगर
पेमेन्ट नही की तो नया स्टाक आने में दिक्कत होगी. उधार भी एक सीमा
तक मिलता है, उसके बाद कंपनियों ने भी हाथ खडे कर दिए। नया स्टाक तो
नई पेमेन्ट के बाद ही मिलेगा। यदि नया स्टाक नहीं आया तो शौरुम खाली
हो जाएगें। सारी प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी। कुछ तो करना ही होगा।
एक विचार आनन्द के मस्तिष्क
में बिजली की तेजी की तरह आया। “औहौ, पहले क्यौं नही सोचा, मेरा
दिमाग कहां चला गया था। बैंक में बात करता हूं। लोन तो मिल सकता है।“
आनन्द ने अपने व्यवसाय का नाम आनन्दी, अपनी पत्नी के नाम से रखा था।
हर शौरूम और गोदाम में बडे बडे अछरों से आनन्दी लिखा हुआ दूर से ही
नजर आ जाता था। रात को तो रंग बिरंगी रौशनी की जगमगाहट एक अलग सी छटा
बिखेरती थी। क्या आज आनन्दी की रौशनी फीकी हो जाएगी? प्रिय पत्नी
आनन्दी जो जान से भी अधिक प्रिय, उसके नाम से स्थापित व्यवसाय को
बिखरने नही देगा। यही सोच कर बैंक में कदम रखा।
बैंक मैनेजर से बातचीत
सार्थक रही और दिल से बोझ हलका हुआ कि आनन्दी की जगमगाहट कायम रहेगी।
मनुष्य की आदत कुछ ऐसी ही है, उन्नति ही देखना चाहता है, स्टेटस,
प्रतिष्ठा, रूतबा, शान कम नही होनी चाहिए। कम से कम बरकरार तो अवश्य
रहे।
चेहरे पर से शिकन उतरी। ऑफिस
में आकर टेलिफोन भी अटेंन्ड किए और लेनदारों को भरोसा दिया, कि शीघ्र
सब भुगतान हो जाऐगा। दुनिया आखिर भरोसे पर ही तो चलती है। नया स्टाक
भी भरोसे पर आ गया। काफी हद तक चिन्ता समाप्त हुई। सयाने सदा कहते
है, चिंता चिता समान है। जिन्दा आदमी मुर्दा समान ही हो जाता है, कुछ
भी करने में सझम नही। सयानों की बातें आनन्द को एकदम सटीक लग रही थी।
चिंता ही तो मनुष्य को खा जाती है, क्या बिना चिंता के कोई मनुष्य
जीवित रह सकता है। नही। आनन्द की भी स्थिती कुछ ऐसी ही थी। परेशानी
ने जकड रखा था। दम घुटा घुटा सा लगता था। एक भयानक अजगर की गिरफ्त से
आजाद आनन्द ठीक से सांसें जिस्म के अंदर ले रहा था। आज आनन्द पिछले
एक वर्ष की धटनाऔं का अवलोकन कर रहा है। बेटी के विवाह को बडी शानो
शौकत, धूमधाम से किया। विवाह के सात कार्यक्रम और सभी पंचतारा होटलों
में। सातों कार्यक्रम के लिए सात अलग होटलों में व्यवस्था थी। सगे
संमबंधियों को कीमती उपहारों के साथ विदा किया। पूरे व्यापार जगत से
जुडी हस्तियां सपरिवार समेत सम्मलित थी। विवाह के छः महीने बाद भी
सभी की जुबान पर विवाह की चर्चा थी, कि ऐसा विवाह कभी देखा नही। दिल
खोल कर खर्च किया। आखिर करें क्यों न, कमाई किस लिए की है। शादी और
मकान में ही तो पैसा खर्च होता है। फिर कंजूसी किस बात की। विवाह के
बाद हनीमून के लिए बेटी और दामाद को दो महीने के विश्व भ्रमण को
भेजा। एक शौरूम दहेज में दे दिया। तीन के बदले अब तो दो ही शौरूम हैं
मुनाफे के लिए।
अभी बेटी के विवाह की बात
लोग भूले भी नही थे, कि बेटे का विवाह उससे भी अधिक शानो शौकत और
धूमधान से संपन्न हुआ। ठीक उसी तरह विवाह के सातो कार्यक्रम सात अलग
अलग पंचतारा होटलों मे और विवाह के बाद सभी सगे संमबंधियों को कीमती
उपहारों के साथ विदा किया। बातों का बाजार फिर गर्म हो गया कि ऐसी
शादियां तो राजे, महाराजो या मंत्रियों के यहां ही होती हैं। आनन्द
कौन सा किसी मंत्री से कम है। हर चुनाव में आर्थिक सहायता की है।
एैसी नाजुक स्थिति में मंत्री जी से ही मिल कर कोई मदद हो सके तो
अच्छा है। आनन्द को पूरी उम्मीद थी लेकिन आस बेकार ही रही। नेता
सिर्फ अपना फायदा देखते है। आनन्द की फरियाद को सरकारी प्रोजेक्टो की
तरह लटका कर ठंडे बस्ते में डाल दिया। फिर भी आस नही छोडी आनन्द ने,
सहयता के लिए मंत्रीजी के पास एक बार फिर पहुँचे, लेकिन मिल न सके।
सहायक मंत्रीजी के पास गया। बाहर आनन्द इंतजार कर रहा था कि उसके
कानों में मंत्रीजी के बोल पडे, जो अपने सहायक को कह रहे थे, “देखो,
इस आनन्द की हवा निकल चुकी है, यह अब हमारे किसी काम का नही है,
चुनाव नजदीक है, मेरे पास बेकार के फालतू आदमियों के लिए समय नही है,
भगा दो।“ सुन कर आनन्द एक पल भी नही रूका। सहायक के वापिस लौटने से
पहले ही ऑफिस से बाहर आ गया। बात कलेजे में तीर की तरह चुभ गई। आज
आनन्द फालतू हो गया, जो हर समय मंत्रीजी की मदद के लिए तैयार रहता
था। यही तो जगत की रीत है, पैसा ही सब कुछ है, आज आर्थिक संकट से
गुजर रहे आनन्द का कोई साथी नही।
शुक्र है कि बैंक से सहयता
मिल गई, लेकिन कठिन मुशकिल शर्तो का पालन अनिवार्य था। कोई दूसरा
रास्ता नही था। पूंजी शादी ब्याह में लग गई, कुछ तुम चलो, तो कुछ हम
चले की तर्ज पर व्यापार में अतिरिक्त पूंजी डालने के लिए फार्म हाउस
बिक गया। बाकी बैंक ने लोन दे दिया। व्यापार के लिए धन का जुगाड हो
गया। धन में एक विचित्र सी चुम्बकीय शक्ति होती है। धन धन के साथ सभी
जनता को अपनी ओर तूफानी झटके से खींचता है। जो लेनदार सख्त थे, उनके
व्यवहार में नरमी आ गई। आनन्द को वोह दिन याद आ गया, जब बिटिया के
विवाह का निमंत्रण देने हेतु बोस बाबू से मिला था।
ऑफिस पहुंच कर विजिटर रूम
में बैठ कर इंतजार कर रहे थे और विजिटींग कार्ड पर आनन्द का नाम देख
कर बोस अपने केबिन से खुद निकल कर विजिटर रूम कर गए। आनन्द से हाथ
मिलाते हुए कहा, “आनन्द बाबू आप को यहां बैठ कर विजिटींग कार्ड भेजने
की क्या जरूरत पड गई, सीधे केबिन में आ जाते।”
“आप जरूरी मीटिंग में व्यस्त
थे, इसलिए आपके काम में बाधा डालना उचित नही समझा।“ आनन्द ने बोस को
सपष्टीकरण दिया।
“अरे काहे की जरूरी मीटिग।
जब आप आ गए हैं, तो आपके साथ जरूरी मीटिंग के सामने बाकी सब मीटिंगें
कैंसल।” कहते हुए बोस ने आनन्द का हाथ पकडा
और बातें करते हुए केबिन के अंदर प्रवेश किया। कुर्सी पर बैठ कर चाय
का आर्डर किया। और फिर आनन्द से समबोधित होकर बोले, “आप हमें बुला
लेते, यहां आकर क्यों कष्ट किया। इस बहाने आपके ऑफिस के दर्शन ही कर
लेते।”
“यह तो आप का बडप्पन है, जो
इतनी बडी कंपनी के मालिक हो कर हम जैसे छोटे लोगों को आदर सम्मान
देते हैं।”
“यह आप का बडप्पन है, जो एक
नौकर को मालिक कह रहे हैं।” बोस ने सिगरेट
सुलगाते हुए कहा।
“डारेक्टर हैं आप, डारेक्टर
तो कंपनी के मालिक होते हैं।”
“बस आप की मजाक की आदत नही
गई। जापानी कंपनी है, हम तो नाम के डारेक्टर हैं। मालिक तो जापान में
रहते है, काम पसन्द नही आया तो बाहर का रास्ता दिखा देंगें।”
बोस और आनन्द बाते कर रहे
थे, तभी आनन्द का अकाउन्टेंट सुरेश ने कुछ कार्ड हाथ में लिए केबिन
में प्रवेश किया।
“आज तो पूरी टीम के साथ धावा
बोल दिया, ईरादा तो नेक है न।” बोस ने चुटकी
ली।
“आप के धावे का स्वागत करने
का प्रबन्ध किया है। बिटिया का विवाह है। आपको सपरिवार विवाह के सभी
समारोह में उपस्थित रह कर धावा बोलना है।” कह
कर आनन्द ने विवाह का निमंत्रण पत्र बोस के हाथों में थमाया।
“यह भी कोई कहने की बात है,
आनन्द जी, कोई हमारे लायक काम हो तो बिना किसी संकोच के कहिए।”
“बस सपरिवार आप विवाह के सभी
समारोहों में उपस्थित रहे, यही कामना करता हूं।”
इधर आनन्द बोस के साथ बातों में व्यस्त थे, उधर अकाउन्टेंट सुरेश ने
ऑफिस में सभी को शादी के कार्ड वितरित किए।
आनन्द कंपनी के सबसे बडे
डीलर थे, जिस कारण रूतबा था, और एक अलग किस्म की धौस रहती थी। आज वह
धौस खत्म हो चुकी थी। दुबारा व्यापार तो शुरू हो गया, लेकिन वोह
रुतबा नही रहा। वोही बोस बाबू आज मीटिंग बीच में छोड कर आनन्द से
मिलने नही आए। आधा दिन इंतजार में कट गया। आनन्द की मजबूरी। बाद में
आए लोग मिल कर कब के जा चुके थे। आनन्द शाम तक सिर्फ इंतजार करता
रहा। ऑॅफिस से निकलते हुए बोस बाबू ने चंद मिन्टों में औपचाकिरता
पूरी कर ली। बोस के केबिन से बाहर आते समय आनन्द के कानों में बोस के
शब्द पड गए, जो बोस ने अपने सहायक को कहे थे। “आनन्द को उधार मत
देना, नकद पेमेंट वसूलते रहना, इसकी हवा निकल चुकी है। ज्यादा उधार
हो गया और यदि पेमेंट डूब गई तो अपनी नौकरी भी डूबी समझना।”
एक बार फिर तीर कलेजे का आर पार कर गया।
बैंक से लोन मिलने के बाद
व्यापार फिर से पटरी पर आ गया। आदमी का स्वाभाव सिर्फ भूलने का है।
पिछली दिक्कत आनन्द भूल गया। अब छोटे बेटे का विवाह होना है।ष
पंचतारा होटल बुकिंग के लिए अकाउन्टेंट सुरेश को फोन कर चैक बुक होटल
में लाने को कहा। एडवांस बुकिंग जो करवानी है। आखिर इजज्त धूल में तो
मिलवानी नही है।
“बडे बेटे और बेटी का विवाह
जिस धूमधाम से हुआ था, सुरेश उस तरह छोटे बेटे का विवाह होना है।
रूपये पैसों की ओर नहीं देखना है। आखिर कमाया किस लिए है, खर्च करने
के लिए। यही तो टाइम है, खर्च का। आनन्दी सब परिजनों को न्यौता दे
दो. जितनी रकम चाहिए, अकाउन्टेंट सुरेश से मांग लेना। मैं कतई
बर्दास्त नहीं करूंगा, कि कोई कसर रह गई।”
आनन्दी विवाह की तैयारी में
जुट गई. सुरेश सोचने लगा. पहले फार्म हाउस बिका था, अब...
कोई सबक नही लेता आदमी अपने
अनुभवों से। सिर्फ प्रतिष्ठा का ख्याल सताता है। आज आनन्द फिर विवाह
का निमंत्रण पत्र देने बोस के ऑफिस पहुंचा। काफी इंतजार के बाद
औपचारिकता के लिए बोस ने आनन्द को केबिन में बुलाया। बिना कुछ कहे एक
कुटिल मुस्कान के साथ खडे खडे आनन्द ने शादी का कार्ड बोस की टेबुल
पर रख दिया। शादी का कार्ङ खोल कर देखा, और फिर बोस के चेहरे की रंगत
ही बदल गई, उठ कर आनन्द से हाथ मिलाया, चाय, नाश्ते का आर्डर दिया।
“बैठिए आनन्द बाबू, बहुत दिनों के बाद आए हैं। पुराने मित्रों को
लगते है भूल गए।”
आनन्द मन ही मन सोच रहा था,
कार्ड देखने से पहले बैठने को भी नही कहा, अब पुराना मित्र बन रहा
है। फाइवस्टार होटल में शादी देखकर बोलने का ठंग ही बदल गया। दुनिया
की रीत ही यही है, पैसे पर सब झुकते है। पैसा ही मां है, पैसा ही बाप
है। लेकिन चेहरे पर कोई हाव भाव आए बिना आनन्द ने मुस्कुराते हुए
कहा, “शादी के इंतजाम में व्यस्त था, इसलिए आपसे मुलाकात नही हो सकी,
आप से गुजारिश है, सपरिवार सभी समारोहों में सम्मलित होना है।”
आनन्द के जाने के बाद बोस ने
अपने सहयक से कहा, “दुबारा से हवा भर ली है, आनन्द ने, उम्मीद नही
थी, इतनी जल्दी तरक्की कर लेगा।”
ऑफिस से बाहर आ कर आनन्द ने
सुरेश से कहा, “देखा था न बोस के चेहरे को, कार्ड देखकर हवाईयां उड
गई थी। साला कहता था मेरी हवा निकल गई है, आनन्द की हवा पूरी है, अब
मंत्रीजी के ऑफिस चलते है। उसको भी हवा दिखानी है। हवा अभी पूरी है।”
(शीर्ष पर वापस)
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