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कविता

धुँधलाई किरन

प्रेमशंकर मिश्र


जब दोनों के ही बाएँ पैर नाकाबिल हों
तो हाथों के सहारे उठो चाहे जितना -
अंत में गिरोगे ही - ।


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हिंदी समय में प्रेमशंकर मिश्र की रचनाएँ