कुछ दिन पहले तक
	निर्णय लेने में
	उसे तनिक भी देर नहीं लगती थी।
	अब
	सुबह किस दिशा में मुँह करके खड़ी हो?
	शाम किस दिशा में?
	पता नहीं चलता।
	एक सड़क घर ले जाती है
	दूसरी दफ्तर,
	सुबह घर वापस आने को मन करता है
	शाम दफ्तर लौट जाने का
	वैसे
	एक निर्णय विवशता की तरह चिपका है।
	क्योंकि
	शाम : दफ्तर बंद हो जाता है
	सुबह : घर।
	फ्रस्ट्रेशन को
	मुट्ठी में कसकर पकड़े हुए भी
	विपरीत दिशाओं की ओर
	वह भागती रहती है।