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कविता

कम

स्नेहमयी चौधरी


जब मैं कुर्सी, मेज, आइरन, टोस्टर,
फ्रिज
टी.वी. आदि चीजों
और वैसे व्यक्तियों के बीच रहती हूँ
तो जड़ हो जाती हूँ।

जब मैं पेड़ों, पौधों, पत्तियों, फूलों, पक्षियों,
नदियों, जंगलों, खेतों, खलिहानों,
खुले आसमान, पहाड़, दरिया
जैसी चीजों और लोगों के बीच होती हूँ
तो जी उठती हूँ।

मेरे पास जड़ होते जाने के अधिक अवसर हैं,
जीने के कम।


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हिंदी समय में स्नेहमयी चौधरी की रचनाएँ