अरे! तुमने सुना कि नहीं। आज भी वो नाटा सा आदमी ताजमहल के सबसे ऊपरी हिस्से
	पर चढ़ा हुआ दिखा। जानते हो वो क्या कर रहा था। उसके हाथ में कपड़ा था, जिसे
	रगड़-रगड़ कर वो ताजमहल को पोंछ रहा था। तापस बाबू ने यह बात अपने बगल में खड़े
	एक व्यक्ति से सुनी जो दूसरे से कह रहा था। दूसरा व्यक्ति शायद पहले व्यक्ति
	का मित्र था। इस तरह की बात तापस बाबू ने कल भी सुनी थी, जब वे झोला लिए यदु
	बाबू बाजार से सब्जी खरीद रहे थे। आज भी सब्जी खरीदते समय यह बात उनके कानों
	में पड़ीं। तापस बाबू ने कल तो इस बात को अपने में नहीं उतारा था पर आज जब और
	कई लोगों के मुँह से फिर वही बात निकली तो वह धीरे-धीरे उनमे उतरने लगी।
	तापस बाबू सोचने लगे लोग इस तरह की बात क्यों कर रहे हैं। क्या यह किसी एक
	आदमी के दिमाग की खुराफात है। हो सकता है सब्जी मंडी के ही किसी आदमी ने यह
	बात फूँकी है और बात पूरे बाजार में आग की तरह फैल गई है। जीवन में सबकुछ
	अतुकांत है। किसी को कुछ सूझा, कुछ कर बैठा। तापस बाबू यह सब सोचते हुए घर
	पहुँचे। घर में सब्जी का झोला रखा ही था कि उनकी पत्नी कमर पर हाथ रख कर उनके
	सामने खड़ी हो गई, धीरे से फुसफुसाकर आश्चर्य से पूछने लगी, बताओ तो क्या यह
	बात सही है कि कोई रोज ताजमहल पर चढ़ा दिखता है, रात के दो बजे से सुबह चार बजे
	एक व्यक्ति नजर आता है - कहाँ से आता है, कहाँ जाता है पता ही नहीं चलता।
	तापस बाबू अपनी पत्नी को ध्यान से देखने लगे। वे सोचने लगे कि इसे यह बात कहाँ
	से मालूम हुई। और इसने तो एक और बात बताई है कि दो से चार के बीच दिखता है।
	कहाँ से आता है कहाँ जाता है, किसी को पता नहीं। तापस बाबू सोचने लगे क्या
	सचमुच कोई आदमी ताजमहल पर चढ़ा दिखता है? वैसे ताजमहल के ऊपर कोई चढ़ जाए, इसमें
	ऐसी क्या खास बात है। हावड़ा पुल के ऊपर साल में दो-तीन लोगों के चढ़ने की खबर
	छपती ही रहती है और उस पर कोई अब ध्यान भी नहीं देता। सरकार ताजमहल की सफाई
	करवा रही होगी। मजदूरों में कोई चढ़ा होगा। लेकिन बात कुछ समझ में नहीं आ रही।
	तापस बाबू शहर के एक कॉलेज में पढ़ाते हैं। आज घर पर उन्हें थोड़ी देर हो गई
	सोचा कि कॉलेज जाकर ही अखबार पढ़ेंगे। कॉलेज पहुँचते ही अँग्रेजी का दैनिक खोला
	तो मुखपृष्ठ पर नीचे सबसे कोने में उसी खबर पर नजर पड़ी। छपा था, 'शाहजहाँ ने
	मुमताज महल की याद में ताजमहल बनवाया था। उसी ताजमहल पर दो दिनों से एक आदमी
	को चढ़ते-उतरते तो नहीं देखा गया है पर एक कपड़े से वहाँ कुछ पोंछते हुए देखा
	गया है। यह भी पता चला है कि वह आदमी रात के साढ़े बारह से एक बजे के बीच गुंबद
	पर चढ़ता है। उसका कद ज्यादा नहीं है, चार फुट आठ इंच के करीब। एक तरह से बौना।
	रंग उजला। बाल सफेद। उसे पकड़ने की कोशिश की जा रही है। हमारे संवाददाता का
	कहना है कि उसे एक बार पकड़ा भी गया पर वह निकल भागा, लगता है वह कोई
	पाकिस्तानी है।
	तापस बाबू सोच में पड़ गए कि खबर पर यकीन करें या नहीं। जो भी हो उन्हें खबर
	में मजा आने लगा, सोचा क्यों न इस खांटी गप्पे में उड़ान भरी जाए। बड़े सामान्य
	से दिन गुजर रहे थे। रूखे से। चलो, कुछ चटक, करारी बात हुई। क्यों न वे भी कुछ
	जोड़-घटाव करते चलें। समीकरण से मजा आएगा। अब इस बात पर सोचने की जरूरत क्या है
	कि खबर सही है या गलत। खबर है बस। यह देखना है कि किस दिशा से किस वेग से यह
	बह रही है और कितनी तेज हो सकती है।
	तापस बाबू का पढ़ाने में मन नहीं लग रहा था। वे तो चाह रहे थे कि अपने दोस्तों
	के बीच बैठें अड्डेबाजी करें इस खबर को लेकर। आखिर तापस बाबू जैसा चाह रहे थे
	वैसा ही हुआ। कॉलेज से निकले तो देखा टी-स्टाल की बेंच पर मिटटी के भांड़
	(कुल्हड़) में चाय पकड़े चुस्की लेते हुए उनके तीन साथी लेक्चरार बैठे हैं। वे
	भी जाकर बैठ गए। वे बगल में बैठे साथी की आँख में उतरते हुए उन्होंने कहा :
	'पता है उस नाटे आदमी की एक आँख पत्थर की है।" बगल में बैठे साथी ने कहा "यह
	तुम्हें कहाँ से पता चला।" तापस बाबू उसकी बात से घबड़ाए नहीं उल्टे उसे घूरते
	हुए कहने लगे, "क्या अखबार नहीं पढ़ते। बांग्ला अखबार में साफ लिखा हुआ है।
	उसमें तो उसका नाम भी लिखा हुआ है।" मन ही मन बुदबुदाते हुए कहा, "लिखा है
	'फिरोज'।" तापस बाबू ने नाम का उच्चारण जोर से इसलिए नहीं किया था कि ऐसा कोई
	अखबार उन्होंने पढ़ा ही नहीं। अगर ये नाम जो अचानक उनके दिमाग में आ गया और उसे
	उन्होंने इस मंडली के आगे कह दिया तो झट से ये सभी कहेंगे पता ही था,
	पाकिस्तान की साजिश है ताजमहल उड़ाने की। तापस ताजमहल जहाँ 'यान्नी' ने संगीत
	कन्सर्ट दिया था। अभी कुछ महीनों पहले।" इस लड़की की इस बात पर तापस बाबू के
	बगल में बैठे लेक्चरार को गुस्सा आ गया। उसने लड़कियों को घूरते हुए कहा, "क्या
	आप ऐसे नहीं कह सकती - मुमताज महल की याद में बना महल ताजमहल। यान्नी जहाँ
	संगीत दिया था। क्या यही है ताजमहल की पहचानी?" लड़कियाँ ऐसा सुनकर घबड़ा गई। उस
	चुलबुल लड़की ने घबड़ाते हुए हकलाते हुए कहा, "नहीं" सर वो...। वो... यान्नी ने
	बहुत अच्छा संगीत दिया था ना। बस उसी से याद आ गया ताजमहल।" इतना कहकर तीनों
	लड़कियाँ, "अच्छा सर अब चलते हैं" कहकर वहाँ से खिसक गई। जाते-जाते तापस बाबू
	ने उनमें से एक लड़की की आवाज सुनी। कह रही थी "बाप रे। सर लोगों के सामने बहुत
	सोच-समझ कर बोलना चाहिए। अब मुझे तो यान्नी ही याद आएगा। कोई मुमताज-वुमताज
	नहीं। पुराने ख्यालात हैं सर के। क्या डैशिंग लगता है यान्नी।"
	तापस बाबू की इस खबर में दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी। जिसे देखो वही एक बार इस
	खबर की खबर जरूर ले लेता था। टेलीविजन पर रहिए न बेखबर, कहकर 'आँखों-देखी' में
	इस खबर को दोहराया। 'आजतक' में कहा गया अभी और खबरें बाकी हैं 'ताजमहल पर चढ़ा
	आदमी' पर इसके बाद। स्टारन्यूज, बी.बी.सी दो-दो लाइनों में इस खबर को
	टेलिकास्ट कर चुके थे। सभी खबरें यह कह रही थीं कि जब उस आदमी को पकड़ने कुछ
	लोग गए तो वह अदृश्य हो गया। छानबीन की जा रही है कि वह किस देश का आदमी है।
	कौन है कहाँ से आया है क्या मकसद है उसका। क्यों वह वहाँ चढ़ा। और पोंछने का
	क्या मतलब है।
	तापस बाबू इस खबर पर जितना सोचते उतना ही उनका मन इसमें रमने लगा। जैसे कोई
	धुन हो जो हल्के से गुदगुदा रही हो। तापस बाबू जिसे भी देखते उससे इस बात के
	बारे में जानना चाहते। वे जानना चाह रहे थे कि आखिर यह बात है क्या? उन्होंने
	सोचा क्यों न सबसे पहले सारे अखबारों को देख लिया जाए। उन अखबारों को बटोरने
	लगे जिनमे यह खबर कहीं बहुत सामान्य रूप से तो कहीं कहानी बनाकर छपी गई थी।
	हिंदी, अँग्रेजी और बांग्ला के दैनिकों से कटिंग इकट्ठी कर एक-एक शब्दों को
	ध्यान से पढ़ने लगे। उनकी पत्नी को ऐसा लग रहा था कि तापस बाबू किसी गंभीर
	कार्य में लगे हैं। उन्होंने उन्हें सोचने और पढ़ने के लिए अकेला छोड़ दिया।
	बीच-बीच में तापस बाबू अपनी एक छोटी लाल डायरी में कुछ नोट भी करे चलते। उनकी
	पत्नी ने उन्हें इस तरह लिखते देखा तो अदरक की चाय बनाकर सामने रख दी।
	दो-तीन दिन तक सारे अखबारों को देखने के बाद भी तापस बाबू अपने किसी सवाल का
	जवाब नहीं प् रहे थे। सारी कटिंगों को पढ़ लेने के बाद भी उन्हें ऐसा लग रहा है
	कहीं कोई बात लिखी हुई नहीं है।
	अब उन्होंने दूसरी तरह से अपनी खोज शुरू की। वे सोचने लगे कि क्यों न कुछ
	लोगों से बातचीत की जाए। पूछा जाए कि आखिर वे लोग इस खबर के बारे में क्या
	सोचते हैं। बात उन्होंने अपने पड़ोसी से ही शुरू की जो पढ़ने-लिखने वाला आदमी
	है। वह साड़ी की दुकान पर बैठता है। तापस बाबू ने उससे पूछा, 'रमेश जी आपको
	क्या लगता है कौन होगा वो।" रमेश जी कहने लगे, 'अगर आप मुझसे पूछ रहे हैं तो
	मैं तो यही कहूँगा कोई दूसरा चार्ल्स शोभराज है।' "क्या?" तापस बाबू ने
	आश्चर्य से देखा। वे कहने लगे, "देखिए, चार्ल्स शोभराज ने पहले तो जी भर कर
	डकैतियाँ कीं तब उसका नाम हुआ। अब डकैतियाँ का इतिहास लिखा जाएगा तो भी उसका
	नाम होगा। दोनों कामों में नाम भी है और पैसे भी। ये आदमी भी इसी तरह का
	होशियार है।" तापस बाबू ने रमेश को टोकते हुए कहा "पर ये आदमी तो गायब है। अगर
	इसे पैसे ही चाहिए होते तो सामने तो आता।" रमेश जी ने कहा "आप बहुत भोले हैं
	तापस बाबू। वह अभी गायब है पर अचानक उदय होगा इसका। तब देखिएगा नाम और पैसे
	दोनों से धनी हो जाएगा।"
	तापस बाबू अब भोला बाबू के सामने बैठे हैं, जो साठ वर्ष के हैं। आजकल के
	अखबारों और टी.वी. कार्यक्रम से बहुत रुष्ट। ये कह रहे हैं "हो न हो तापस बाबू
	ये सारी चाल इन मीडिया-वालों की है। देखिए ना आप जैसा अध्यापक जो बहुत सोचता
	है, आ गया इनके झाँसे में। घूम रहे हैं आप खबर को लेकर। किसी भी काम में आपका
	मन नहीं लग रहा होगा।" तापस बाबू का चेहरा पीला पड़ गया। सचमुच इन दिनों
	सोते-जागते उठते-बैठते वे एक बात पर सोच रहे हैं।
	तापस बाबू अपने कमरे में गद्दे पर लेटे कमरे की छत को देखते हुए अपने से कहने
	लगे। भोला बाबू बात नहीं समझते। वैसे उनकी बात सही पर मैं बहकावे में या झाँसे
	में थोड़े ही आया हूँ। मैं तो 'रिसर्च' कर रहा हूँ। खोज। हाँ बोलने वाले बोल
	सकते हैं कि किसी निठल्ले ने खबर उड़ाई, तापस बाबू ने ताल मिलाई। कोई बोले तो
	बोले मुझे तो जो समझ में आएगा वही तो करूँगा न।
	तापस बाबू सोचने लगे कुछ दिनों बाद कॉलेज में गर्मियों की छुट्टी होने वाली
	है। क्यों न आगरा हो आए। शिप्रा भी कई बार आगरा घुमा लाने को कह चुकी हैं
	आगरा की सड़क पर तापस बाबू अपनी पत्नी का पकड़े चल रहे हैं। एक छोटी सी चाय की
	दुकान के सामने लकड़ी की बेंच रखी है। उस पर तापस बाबू और उनकी पत्नी दोनों बैठ
	गए। एक कप स्पेशल चाय का आर्डर देकर वे चाय वाले से बात करने लगे, "क्यों
	भइया, तुमने देखा उस आदमी को, जो ताजमहल पर चढ़ा देखा गया।" चाय वाला चाय बनाना
	छोड़ तापस बाबू के पास आ गया। किसी बच्चे को चाय बनाने को कह वह तापस बाबू से
	बात करने लगा। कहने लगा, "देखिए, बाबू हमने पहली रात जब ये सुनी तो हम तो सकते
	में आ गए। कोई लौंडा-लपाड़ा होगा, जो चढ़ा होगा उस ऊँचाई पर। पर हमने भी ठाना कि
	पकड़ेंगे बच्चू को। दूसरी रात।" दूसरी रात कह कर चाय वाला खड़ा हो गया और रास्ते
	की तरफ देखने लगा। "क्या देख रहे हो भैया" कहकर तापस बाबू ने पूछा क्या कोई
	आने वाला है।
	"आप तो जर्नलिस्ट हैं। है ना?" तापस बाबू ने कहा, "नहीं, नहीं मैं...।" चाय
	वाले ने पूरी बात सुनी ही नहीं। बेंच से उठकर चाय बनाने चला गया। वहाँ जाकर
	चुपचाप बैठ गया और छोटे लड़के से कहने लगा, "बाबू को चाय दो।" तापस बाबू ने चाय
	वाले से पूछा, "तुम कुछ बोल रहे थे। बात अधूरी रह गई।" चाय वाला गोर रंग का
	युवक था। उसके बाल अच्छी तरह काढ़े हुए और नए फैशन में कटे हुए थे। उसने एक
	अच्छी कमीज और घुटनों तक का प्रिंटेड पेंट पहन रखा था। तापस बाबू की बात को
	अनसुनी करते हुए रेडियो का स्टेशन बदलने लगा। कहा, "दूसरी रात मैं वहाँ गया ही
	नहीं। तापस बाबू चाय पीने के बाद उठ कर जाने लगे। जाते-जाते उन्होंने सुना चाय
	वाला बच्चे से कह रहा था "यूँ ही मुफ्त में खबर लेने चले आए।"
	अपनी पत्नी के साथ-साथ तापस बाबू ताजमहल घूम आए। उन्हें कहीं भी कोई वैसी बात
	नहीं मिल रही थी जिसे वे सुनना चाहते थे। कोई भी उस खबर पर बात करने में रुचि
	नहीं लेता था। 15 दिनों में खबर क्या बसी हो गई? कोई कुछ बोलता तो भी वही
	जानी-सुनी, पढ़ी बात। तापस बाबू अपनी पत्नी से कहने लगे कोरी गप्प है। तापस
	बाबू की पत्नी ताजमहल को देखने के बाद अपने में खोई थी। तापस बाबू ने उसे
	हिलाया और पूछा "क्या लगता है तुम्हें। कौन होगा वह आदमी? तापस बाबू की पत्नी
	कुछ सोचते हुए कहने लगी, मुझे तो पूरा यकीन है। तापस बाबू चौंक कर उसे देखने
	लगे। मन ही मन सोचा तो क्या ये कुछ जानती है। तापस बाबू की पत्नी धीरे से
	बोली, 'हो न हो वो और कोई नहीं शाहजहाँ की आत्मा है। जानते हो हजारीबाग में
	हमारे घर के सामने ताड़ का पेड़ था। वहाँ एक आत्मा...।' तापस बाबू जोर-जोर से
	हँसने लगे। उनकी पत्नी नाराज हो गई। झुँझलाकर कहने लगी पहले पूछते हो फिर मजाक
	बनाते हो। मैं तो तंग आ गई हूँ तुम्हारी इस बात से। अब तुम्हें क्या पड़ी कोई
	ताजमहल को पोंछे या कुतुबमीनार को।
	तापस बाबू सोचने लगे, ठीक ही तो कहती है। मैं भी क्या बात लेकर बैठ गया हूँ।
	ये दुनिया तो मूर्ख है ही और मैं सबसे बड़ा मूर्ख। पर पता नहीं क्यों मूर्खों
	के से काम में कभी-कभी बहुत आनंद आता है। तापस बाबू मन ही मन अपने को कोसने
	लगे। क्या खाक आनंद आता है। इतनी गर्मी में चला आया आगरा। आगरा आने का
	प्रोग्राम ठीक नहीं रहा।
	तापस बाबू कलकत्ता जाने वाली ट्रेन में बैठे हैं। बगल में बैठे एक सज्जन से
	हँस-हँस कर बात कर रहे हैं। ये सज्जन उनके एक पुराने मित्र के करीबी रिश्तेदार
	हैं। ट्रेन में संयोग से मिल गए। तापस बाबू ने सोचा, चलो, रास्ता बात
	करते-करते कट जाएगा। इनका नाम सुनील साहा है। ये तापस बाबू को बता रहे हैं कि
	अब अकेले ही रहते हैं। कह रहे हैं कि कोई भी मुझे अच्छा नहीं लगता। हो सकता है
	सच यह भी हो कि मैं ही किसी को अच्छा नहीं लगता। सुनील साहा तापस बाबू से
	पूछते हैं, "अच्छा, तापस बाबू आपने ये तो बताया ही नहीं कि आपका आगरा कैसे
	जाना हुआ। तापस बाबू कहने लगे "बस कुछ पूछिए मत। मेरी पत्नी आगरा घूमना चाहती
	थी। हम दोनों ने ही ताजमहल नहीं देखा था आजतक।" आजतक कहकर तापस बाबू सुनील
	साहा को गौर से देखने लगे। कहने लगे, "वैसे बात कुछ और है। आपको बताने में कोई
	हर्ज नहीं। वह जो एक खबर थी न कुछ दिन पहले। वही ताजमहल वाली। यही कि वहाँ कोई
	आदमी कुछ पोंछते देखा गया। बस पता नहीं क्या सनक सवार हुई कि उसी कारण आगरा
	चला आया।"
	"अच्छा।" आश्चर्य से सुनील साहा ने कहा और वे गंभीर हो गए। वे ट्रेन की खिड़की
	से बाहर कहीं देखने लगे।
	तापस बाबू कलकत्ते लौट आए हैं। कॉलेज की छुट्टियाँ खत्म हो चुकी हैं। वे रोज
	कॉलेज जाते हैं और उसी तरह एक दिन छोड़ झोला लिए यदु बाबू बाजार सब्जी खरीदने।
	तापस बाबू उस खबर को भुला चुके हैं। कभी-कभी जब बात याद आ जाती है तो
	मुस्कुराने लगते हैं तो कभी गहरे डूब जाते हैं। कक्षा में अपना विषय बहुत रुचि
	के साथ पढ़ाते हैं। आज पढ़ाना शुरू ही किया कि एक लड़की खड़ी हुई और कहने लगी, "सर
	वह पकड़ा गया। तापस बाबू ने गंभीर चेहरा बनाए अत्यंत गंभीर होकर कहा, "विषयांतर
	बातें क्लास पूरी हो जाने पर। अभी विषय पर ध्यान दें।" लड़की रुआँसी हो वापस
	अपनी जगह पर बैठ गई। अचानक तापस बाबू को कुछ समझ में आया झट से उन्होंने उस
	लड़की से पूछा, "क्या कह रही थीं आप? कौन पकड़ा गया।" लड़की चहक कर कहने लगी,
	"वही जो ताजमहल तक पहुँच गया था।" "क्या?" तापस बाबू का मुँह आश्चर्य से खुल
	गया। लड़की जल्दी से अपनी फाइल में से उस दिन का हिंदी दैनिक निकाल तापस बाबू
	के सामने रख गई।
	तापस बाबू गौर से अखबार देखने लगे। मुखपृष्ठ पर कोने में खबर थी, लिखा था -
	उसे पकड़ लिया गया है। सीमा सुरक्षा बल के सूत्रों ने संवाददाता को बताया कि
	सीमा पर गश्त कर रहे जवानों ने उस आदमी को भारत और पाकिस्तान की सीमा पर देखा।
	इस शक पर उसे पकड़ लिया गया कि पकिस्तान ने उसे भारत, ताजमहल उड़ाने भेजा है।
	उससे कड़ी पूछताछ की गई। पता चला कि मोतिहारी में उसका परिवार रहता था। एक दिन
	जब वह रात की ड्यूटी पर था तो डाकू गिरोह ने उसकी पत्नी और उसके इकलौते बेटे
	को मार डाला और उसका सारा माल असबाब लूट लिया। तब से वह पागल हो गया है।
	बार-बार वह एक ही बात की रट लगाए जा रहा है कि वह राकेश शर्मा के साथ अंतरिक्ष
	में गया था। वह राकेश शर्मा की बगल में बैठा था। जब इंदिरा गांधी ने पूछा कैसे
	लगता है वहाँ से हमारा हिंदुस्तान तो राकेश शर्मा ने कहा था - सारे जहाँ से
	अच्छा। उस समय उसका राकेश से झगड़ा हो गया था। उस समय से वह चिल्ला रहा है बहुत
	मैल पसर गया है हिंदुस्तान में। ...मैल ही मैल। पहले तो ताजमहल को पोंछना
	होगा।
	सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों को पूरा विश्वास हो गया है कि वह बेगुनाह है।
	राज्य पुलिस ने उसे पागलखाने में डाल दिया है।