1.
तो बिग-बैंग से पहले क्या था ?
यह एक ऐसा प्रश्न है जो वैज्ञानिकों को कई दशकों से असहज करता आ रहा है। इस
विषय में अलग-अलग विचार, अलग-अलग धारणाएँ, अलग-अलग सिद्धांत प्रचलन में हैं।
इनके पक्ष-प्रतिपक्ष में अपनी-अपनी बातें हैं।
एक मत है कि ब्रह्मांड का आरंभ बिग बैंग पर नहीं हुआ था। अर्थात् उसके पहले भी
समय का अस्तित्व था। (और अगर समय उसके पहले था ही, तो आप बिग बैंग की घटना को
'आरंभ' नहीं कह सकते !) ऐसा मानने वाले कई विद्वान यह मत रखते हैं कि हमारा
ब्रह्मांड किसी अन्य ब्रह्मांड के संकुचन से जन्मा है। यानी कोई अन्य
ब्रह्मांड था, जिसका फैलाव सिकुड़ा और सिकुड़ते-सिकुड़ते एक बिंदु में जा सिमटा।
इस बिंदु को सैद्धांतिक भौतिकी सिंग्युलैरिटी के नाम से पुकारती है।
सिंग्युलैरिटी पर जाकर हमारे सारे भौतिकी के नियम ध्वस्त हो जाते हैं। वह एक
न्यूनतम आकार का यूनिडाइमेंशल किंतु असीम घनत्व का स्थान है। वहाँ न न्यूटन
चलते हैं, न आइंस्टाइन। वहाँ प्लैंक का क्वांटम भी नहीं चलता। या शायद सभी
नियमों को एकीकृत करने पर जो एकीकृत सिद्धांत भौतिकी गढ़ने के प्रयास में है,
वह चलता हो। हम नहीं जानते। नहीं जानते, इसलिए दावा नहीं कर सकते।
या शायद पूर्व का वह ब्रह्मांड सिकुड़ा हो, लेकिन एक बिंदु तक न सिमटा हो। पहले
ही बढ़ने लगा हो और बढ़ते-बढ़ते आज सा हो गया हो। या फिर यह एक अनवरत चलता क्रम
हो जिसमें एक ब्रह्मांड सिकुड़ता हो और फिर उससे दूसरा जन्म ले लेता हो।
संकुचन-विस्तार, विस्तार-संकुचन, संकुचन-विस्तार, लगातार।
क्या ब्लैकहोल अपने भीतर कोई ब्रह्मांड समेटे हैं ? हम नहीं जानते। क्या
ब्लैकहोल के भीतर जाना किसी दूसरे ब्रह्मांड में जाना है ? पता नहीं। क्या इसी
तरह से किंतु इससे विपरीत प्रकृति के ह्वाइट होल भी हैं ? जहाँ एक ओर ब्लैक
होल अपने पर पड़ने वाली लगभग सारी विकिरण सोख लेता है, ह्वाइट होल लगभग सारी
लौटा देता हो ?
क्या एक नहीं अनेक ब्रह्मांड हैं जिनके अलग-अलग भौतिकी के नियम हैं ? क्या एक
ब्रह्मांड के भीतर या उससे दूसरे शिशु-ब्रह्मांड जन्मते हैं, जैसे एक कोशिका
दो में बँट जाती है ? या फिर छोटे ब्रह्मांड बड़े ब्रह्मांडों में बुलबुलों से
मिल जाते हैं ?
या फिर बिग बैंग से पहले टू-डाइमेंशल वाली ब्रेनें थीं ? (मस्तिष्क का
अँगरेजी-रूप 'ब्रेन (Brain)' नहीं, यह अलग ही शब्द है - Brane !) सतहें जो
परस्पर टकराईं और वर्तमान द्रव्य-ऊर्जा वाली परिस्थितियों का बिंग बैंग के रूप
में जन्म हुआ ?
अलग-अलग मान्यताएँ हैं। लेकिन ये मान्यताएँ ऐरे-गैरे लोगों की नहीं हैं। ये सब
वे हैं, जो रात-दिन, सोते-जगते कागज या वेधशाला में ब्रह्मांड-बोध में लगे
हैं। ऐसे में मैं या आप कपोलकल्पन को इनके साथ नहीं खड़ा कर सकते। कल्पन का
वृक्ष उगाने के लिए भी मृदा चाहिए। वह मृदा या तो विज्ञान देगा या फिर गणित।
या फिर दोनों।
तब तक यह समझिए कि ब्रह्मांड का जन्म बिग बैंग से स्थापित सत्य है। पीछे का
सत्य हमें पता नहीं। बकौल स्टीफन हॉकिंग जानने से बहुत अंतर नहीं पड़ेगा
क्योंकि हमारा ब्रह्मांड बिग बैंग से ही शुरू होता है।
2.
मित्र बिग बैंग से परिचित हैं। वे विज्ञान पढ़कर उसे धर्मशास्त्रों में खोजते
हैं। यह आधुनिक सूचनाओं के बारे में प्राचीन संस्तुति पाने जैसा है। प्राचीनता
कहेगी, तो ही आधुनिकता महान होगी। प्राचीनता अगर मौन रहेगी, तो आधुनिकता को
खारिज नहीं करेंगे। लेकिन और गहन प्राचीन जाँच-पड़ताल करेंगे। करते रहेंगे। तब
तक, जब तक प्राचीनता किसी तरह आधुनिकता को महान बतलाने न लगे। और अगर एकदम बात
नहीं बनी, तो भी प्राचीनता के साथ जाएँगे। आधुनिकता और प्राचीनता में अंतिम
चुनाव पहले से हो चुका है।
बिग बैंग का जन्म किसी ध्वनि-स्वर-आवाज से मानने वाले मित्र पहले सज्जन नहीं
हैं। संसार के तमाम प्राचीनवादी ध्वनिहीन जगत्-जन्म को स्वीकार कर ही नहीं
पाते। ऐसा न कर पाने के पीछे उनका ध्वनि और जगत्-जन्म, दोनों को ठीक से न
समझना है। इसलिए मित्र भी भ्रमित हैं। वे विज्ञान की शब्दरूढ़ि को अभिधा में
समझ बैठे हैं। बिग यानी बड़ा, बैंग यानी विस्फोट। जो लिखा है, वही उन्होंने पढ़ा
है। उसे पढ़कर प्राचीन शास्त्रों से उसे जोड़ लिया है।
वस्तुतः बिग बैंग कोई बैंग नहीं था। वह ध्वनिहीन घटना थी। कारण कि ध्वनि ऊर्जा
का एक प्रारूप है। ध्वनि की तरंगें होती हैं। तरंगें जो किसी माध्यम में चलती
हैं। बिना माध्यम के ध्वनि-तरंगें चल नहीं सकतीं। सो जब ब्रह्मांड ही नहीं है
और अभी उसका जन्म हुआ है, तो उससे ध्वनि निकलकर चलेगी कहाँ !
बिग बैंग किसी माध्यम में नहीं हुआ था। बिग बैंग हुआ तो माध्यम (यानी अंतराल)
और समय दोनों का जन्म हुआ।
लेकिन फिर ज्यों-ज्यों ब्रह्मांड फैलने लगा, ध्वनि भी पैदा होने लगी। अलबत्ता
यह इतनी मद्धिम थी कि उसे कोई जीव-जंतु सुन नहीं सकता था (यद्यपि तब दूर-दूर
तक कोई जीव-जंतु रहा भी न होगा क्योंकि यह जीवन से बहुत पहले के ब्रह्मांड की
बात है !)
यह ध्वनि क्या थी, कैसी थी और क्यों थी - एक रहस्य है। वैज्ञानिक यह भी सोच
रहे हैं कि किंचित् बिग बैंग से पहले भी 'कुछ' रहा हो और बिग बैंग काल का आरंभ
न रहा हो। जो हो, अभी इन बातों पर कोई ठोस आम राय नहीं है।
सो आप बिग बैंग का सत्य समझिए। जितना विज्ञान जानता है, उतना जानिए। जैसे-जैसे
और पता चलेगा, आप अपनी समझ में जोड़ते जाइएगा। साहित्य का भी आस्वादन करिए।
लेकिन यह ध्यान में जरूर रखिएगा कि साहित्य कदाचित बिग बैंग को उस रूप में समझ
न पाया हो, जिस रूप में विज्ञान ने समझा हो। समझ और स्वाद का यह दोहरा क्रम
जरूरी है, ताकि आगे हम इसका प्रयोग बेहतर साहित्य-सर्जना में कर सकें।