ताई तुगुंग द्वारा रचित नाटक 'लप्या' अरुणाचल प्रदेश की निशी जनजाति में प्रचलित क्रूर प्रथा लप्या पर आधारित है। लप्या प्रथा के अंतर्गत किसी लड़की के शादी के लिए राजी न होने पर या शादी करने के बाद भाग जाने पर एक लकड़ी के गट्ठर पर पाँव को फँसाकर लंबी कील से ठोंक दिया जाता है। वह लकड़ी का गट्ठर तब तक उस लड़की के पैरों में बाँधकर रखा जाता है जब तक कि लड़की शादी के लिए राजी न हो जाए। कई बार स्थिति यहाँ तक होती है कि जब तक वह स्त्री गर्भवती न हो जाए तब तक उसे लकड़ी के गट्ठर में बाँधकर रखा जाता है।1 ताई तुगुंग ने इस प्रथा को लेकर इसी नाम से अरुणाचली हिंदी में नाटक की रचना की है।
वैसे इस प्रथा के बारे में ज्यादातर लोगों को पता नहीं है क्योंकि यह अरुणाचल प्रदेश में केवल निशी जनजाति में प्रचलित है। 1973 में अरुणाचल प्रदेश में इस गंभीर विषय को लेकर इसके विरुद्ध मुहिम छेड़ी गई और आज लगभग यह प्रथा खत्म हो चुकी है। परंतु अभी भी कुछ हिस्सों में यह क्रूर प्रथा प्रचलित है जैसे कि कुरुंग कुमे तथा पूर्व कामेंग जिले में। संभवतः यह शिक्षा के अभाव के कारण ही है।
ताई तुगुंग ने शिक्षा के अभाव तथा नारी के प्रति सीमित सोच आदि समस्याओं को उजागर करते हुए इस नाटक की रचना की है। नाटक की नायिका रीमा है तथा उसके पिता ताकुम, उसके ससुर तमर तथा उसके पति तचो द्वारा उस पर किए गए अन्याय की कथा को इसमें व्यक्त किया गया है। नाटक इस तरह से शुरू होता है जहाँ तचो अंडे चुरा कर अपने गुलाम तसी के साथ खाता है। तभी एक औरत आकर उससे तथा तसी से लड़ती है कि क्यों उसने उसकी मुर्गीयों के अंडे चुराए। वह तचो के पिता से अपने अंडों की दाम की माँग करती है।
नाटक के दूसरे दृश्य में तमर और ताकुम दोनों अपोंग पी रहे हैं। ताकुम एक साधारण किसान है तथा तमर से उसकी मित्रता है। तमर तथा ताकुम के बीच आजकल के हालात को लेकर चर्चा हो रही है। वे दोनों अपने पिता के समय को याद कर रहे होते हैं जब एक मिथुन से पूरा पहाड़ खरीदा जा सकता था। ताकुम अपनी परेशानी बताता है फिर तमर भी अपनी परेशानी बताता है। उसे अपने बेटे की फिक्र होती है। तचो बाईस साल का युवक है परंतु उसकी मानसिकता ग्यारह वर्ष के बच्चे जैसी है। एक पिता के दुख को तुगुंग ने संवाद के जरिए कुछ ऐसे दिखाया है - कभी-कभी तो गुस्सा आता है। बाईस साल का हो गया है, बच्चा जैसा काम करता है। मेरा किस्मत ही खराब है। पाँच-पाँच शादी करने का कोई मतलब है! सब मर गया। पत्नी भी मर गया। बच्चा भी मर गया। एक जिंदा है तो वह भी ऐसा है। हम तो सोचते रहता है मेरा वंश कैसे आगे बढ़ेगा? इसलिए तचो को शादी करने के बारे में सोचता है मगर इसके साथ कौन शादी करेगा?2 नाटक की कथा में यहीं से असली मोड़ शुरू होता है। ताकुम उसकी बात सुनकर अपनी बेटी रीमा से ब्याह देने की बात करता है। वह कहता है कि उसकी बेटी पढ़ी-लिखी है, नियम-कानून भी जानती है। ताकुम अपनी बेटी को बारह मिथुन तथा खेती-पानी के बदले में तचो से ब्याह देने की बात पर तैयार हो जाता है। निशी जनजाति में यह प्रथा रही है कि वे विवाह के दौरान लड़की के परिवार वालों को मिथुन देते हैं। जिसकी जितनी क्षमता होती है उसी अनुसार वे विवाह में लड़की के परिवार को मिथुन देते हैं। लड़की के परिवार वाले भी लड़के वालों को बहुमूल्य वस्तुएँ देते हैं।3 इस प्रकार ताकुम तमर से अपनी बेटी की उसके बेटे के साथ शादी की बात पक्की कर अपने घर वापस लौट जाता है।
तीसरे दृश्य में ताकुम अपनी पत्नी यामी से रीमा की शादी की बात पक्की करने तथा रीमा को शादी के लिए तैयार करने की बात करता है। उसकी पत्नी भी इसमें सहमति देती है। रीमा जब ईटानगर से घर लौटती है तो यामी उससे शादी की बात छेड़ती है। रीमा शादी की बात सुनकर तैयार नहीं होती। वह आगे पढ़ना चाहती है लेकिन उसके अभिभावक उसे कहते हैं कि इतना पढ़कर क्या करना, शादी करके घर में बैठो। रीमा अपनी माँ को समझाने की कोशिश करती है। उसे इस बात का भी दुख होता है कि बिना सोचे-समझे उसके माता-पिता ने कैसे एक मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के साथ उसकी शादी तय कर दी। रीमा बार-बार उसकी माँ को समझाने का प्रयास करती है तो उसकी माँ ही उसे आरोपित करती है कि वह एक सुलुंग लड़के से प्यार करती है इसलिए शादी के लिए तैयार नहीं हो रही है। रीमा को इस बात से आश्चर्य होता है। वह कहती है कि वह सुलुंग लड़का केवल उसका दोस्त है। परंतु उसकी माँ विश्वास नहीं करती। बिडंबना यही है कि हमारे समाज में लड़के-लड़की के बीच मित्रता को भी गलत दृष्टि से देखा जाता है। रीमा की माँ को बस्ती वालों ने रीमा और सुलुंग लड़के की दोस्ती को प्यार का नाम देकर भड़का दिया था। रीमा अपनी माँ को समझाती है कि वह दोस्ती और प्यार में फर्क करना जानती है लेकिन उसकी माँ उसकी हर बात को नकारती रहती है। जब रीमा उसकी माँ से यह पूछती है कि क्या सुलुंग आदमी नहीं है तो उसकी माँ उसे जवाब कुछ इस प्रकार देती है - आदमी है, सुलुंग आदमी है। लेकिन वो हम लोग का बाजी है, गुलाम है। हमारा नौकर है। हम लोग से छोटा जात का है। तुमको निशी लड़का दोस्ती करने के लिए नहीं मिला है। तुम चुपचाप तचो से शादी करेगा। हम लोग पूरा दाम ले चुका है।4 दाम ले चुके हैं माता-पिता इसलिए शादी को टाला नहीं जा सकता। लड़की जैसे कोई वस्तु हो, उसका सौदा कर दिया गया। निशी जाति में एक बार दाम लेने के बाद वापस नहीं किया जा सकता है। रीमा की माँ उसके जन्म से पहले ही घटी एक घटना का सहारा लेकर उसे शादी के लिए राजी करने की कोशिश करती है। अंत में ताकुम जब घर वापस लौटता है तब रीमा को डरा-धमका कर शादी के लिए राजी कर लेता है।
चौथे दृश्य में तचो और रीमा घर के चूल्हे के पास बैठे हैं। तचो रीमा से शादी में आए लोग तथा रस्मों की बात करता है। जबकि उसे पता भी नहीं है कि शादी करने का क्या मतलब है। रीमा परेशान है लेकिन वह करे भी क्या। रीमा अपने तेवर बदलते हुए तचो को पटाने की कोशिश करती है। तचो से बातों-बातों में वह उसको बुद्धिमान बनने का राज बताती है जो कि उसकी एक तरकीब है। वह तचो से कहती है कि खेत में आलू होता है जिसे खाने से आदमी ताकतवर और बुद्धिमान हो जाता है। वह किसी तरह तचो को स्वयं ही अपना हाथ बाँधने तथा आँखे बंद करके बैठे रहने के लिए पटा लेती है। वह तचो को बुद्धू बनाकर घर से भाग जाती है। कुछ देर बाद तचो का पिता तमर घर वापस आकर जब यह देखता है तो वह समझ जाता है कि रीमा घर से भाग गई है। वह तुरंत तसी को बुलाता है तथा तचो और तसी दोनों को रीमा को ढूँढ़ लाने के लिए कहता है। पाँचवें दृश्य में रीमा के माता-पिता को पता चलता है कि रीमा घर से भाग गई है। इसके बाद यामी और ताकुम में बहस होने लगती है। ताकुम अपनी बेटी की इस हरकत पर यामी को दोषी ठहराता है। पति-पत्नी में बहस होती है।
छठे दृश्य में तचो और तसी रीमा को ढूँढ़कर बेरहमी से खींचकर वापस घर लेकर चलते है। रीमा तसी और तचो को पटाने की कोशिश करती है लेकिन दोनों ही उसकी बात नहीं सुनते हैं। सातवें दृश्य में तमर अपने घर पर उन सब के घर लौटने की प्रतीक्षा कर रहा है। वह एक लकड़ी का गट्ठर लेकर लप्या बनाने की तैयारी कर रहा है। तमर रीमा को लकड़ी के गट्ठर में उसके पैर को एक छेद में फँसाकर ऊपर से लंबी कील ठोक देता है। रीमा अब तक सब कुछ सहन कर रही होती है। फिर तमर, तचो और तसी चले जाने के बाद फूट-फूट कर रोती है तथा अपने माता पिता को याद करती है। वह बार-बार अपने पैर को लप्या से छुड़ाने की कोशिश करती है लेकिन कोशिश सफल नहीं हो पाती है। अंत में वह बेहोश हो जाती है। कुछ देर बाद तचो उसके पास आता है और प्यार से उसे जगाकर खाना खिलाने की कोशिश करता है। लेकिन रीमा को अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के लिए इतना क्रोध और घृणा होने लगती है कि वह खाना खाने से मना कर देती है। तचो उसे कहता है कि वह अबू की बात मान ले क्योंकि उसका दाम दे दिया गया है। रीमा गुस्से में कहती है - दाम दे चुका है... दाम दे चुका है, बार-बार मत बोलो।5 तचो फिर भी उसे खिलाने की कोशिश करता है लेकिन रीमा खाना नहीं खाती और तचो के मुँह पर थूक देती है। रीमा के लिए सबसे बड़ा दुख का कारण यही होता है कि उसके सपनों को कुचल कर मार कर उसे जबरदस्ती इस रिश्ते से बांधा गया है। तचो रोने लगता है और अपने पिता तमर को बताता है। तमर को ये सब देखकर क्रोध आने लगता है और वह रीमा को कहता है कि उसके पिता को उसने बारह मिथुन, मीट, अपुंग तथा दो साल तक अपनी खेती में खाना दिया है। वह पढ़ी-लिखी है इसलिए उससे अपने बेटे के साथ शादी करवाने को राजी हुआ। रीमा से वह पूछता है कि क्या वह उसके बेटे के साथ रहेगी या नहीं? रीमा उससे कहती है कि तचो पागल है और उसके साथ रहना संभव नहीं है। जिसके बाद तमर फिर से उसे समझाता है कि यदि रीमा उसके साथ नहीं रहेगी तो फिर उसका वंश खत्म हो जाएगा। रीमा फिर भी इस बात के लिए राजी नहीं होती और अंत में तमर क्रोध में आकर उसका गला काट देता है। रीमा को मारने के बाद अंत में उसके शरीर को तमर खींच कर ले जा रहा होता है। अंतिम दृश्य में तमर रीमा को मारने के बाद रोता भी है। कभी वह हँसता है कभी रोता है और कहता है कि उसका वंश खत्म हो गया है, वह खत्म हो गया है।
नाटक का यह कारुणिक अंत हमारे सामने कई सारे सवाल रख देता है कि क्या एक लड़की का अस्तित्व केवल इतना ही है कि वह शादी करके दूसरे के घर जाकर उसके वंश को आगे बढ़ाए? दूसरा सवाल कैसी प्रथा है यह कि जिस लड़की से अपना वंश बढ़ाना है, जिस लड़की के हाथ में पूरा घर सौपना है, उसे दाम देकर खरीदना क्या उचित है? शादी एक पवित्र बंधन है लेकिन जोर-जबरदस्ती से जोड़ा गया बंधन क्या सच में रिश्ते को कायम रख सकता है? नाटक के छटे दृश्य में रीमा के माता-पिता में जब बहस होती है तो उसमें भी रीमा की ही माँ अपनी बेटी का पक्ष लेकर कहती है कि रीमा भी इस बंधन को स्वीकार कर लेगी जैसे उसने किया था। वह भी अपने रिश्ते से खुश नहीं थी, वह भी घर से भाग गई थी लेकिन न जाने कैसे उसने अपने मन से समझौता कर लिया और अपने पति के साथ वह बैठ गई। लेकिन रीमा नहीं बैठना चाहती थी क्योंकि उसके कुछ और सपने थे। वह आगे पढ़ना चाहती थी। उससे भी ज्यादा यह कि जिस व्यक्ति के साथ उसकी शादी होती है वह मानसिक रूप से बच्चा और शरीर से बड़ा है। ऐसे व्यक्ति को समाज में पागल ही समझा जाता है और पागल के साथ वैवाहिक बंधन में रहना किसी भी लड़की के लिए बहुत ही कष्टदायक है। समाज की भी अजीब सी चाल-चलन है। लड़का जब लड़की देखने जाता है तो उसे सुंदर लड़की चाहिए, शारीरिक-मानसिक हर प्रकार से सुंदर हो। परंतु लड़के की कमाई तथा उसके परिवार का नाम ही काफी है शादी जैसी बात को चलाने के लिए। लड़के का चरित्र, लड़के की सोच, उसका भावनाएँ, चाल-चलन आदि पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। सबसे बड़ा विरोधाभास तब दिखता है जब शादी के लिए लड़की पढ़ी-लिखी चाहिए होती है लेकिन सैकड़ों पुरानी दकियानूसी परंपरा को न मानने पर लोग उसे ताने मारते हैं कि क्या माँ-बाप ने कुछ नहीं सिखाया? वही बात लड़कों पर भी लागू होती है कि लड़के पढ़े-लिखे होते हुए भी दहेज तथा अन्य पुरानी बेकार रूढ़ियों को मानते रहते हैं जो कि समाज के विकास के लिए बहुत बड़ी बाधा है।
निशी समाज का यह एक सत्य है जिसके अभी भी कई जीते-जागते उदाहरण मौजूद है। 1973 में एक छात्र आंदोलन से इस कुप्रथा के विरुद्ध मुहिम शुरू हुई तथा शिक्षा के माध्यम से इसे लगभग खत्म कर दिया गया है। 70 के दशक में छात्रों द्वारा इस विषय पर गाँव-गाँव में नाटक तथा लोक गीतों के जरिए लोगों को इस कुप्रथा तथा इससे समाज को होने वाली हानि के बारे में जागरूक किया जाने लगा। जिन महिलाओं के साथ उनके अपने जीवन काल में उनके साथ यह सब हुआ है उनकी मानसिकता पर गहरा असर पड़ा है, उनके दुख एवं कष्टों को नाटककार ताई तुगुंग ने बहुत करीब से समझा है। जिस कारण उन्होंने इस नाटक की रचना की।
संदर्भ
1. नाटक - लप्या, ताई तुगुंग, समकालीन भारतीय साहित्य, पूर्वोत्तर भारत विशेषांक, अंक 164, नवंबर-दिसंबर 2012. साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित द्वैमासिक पत्रिका, पृ.सं. - 117
2. वही, पृ.सं. -121
3. दृष्टव्य - Marriage and Culture - Reflections from tribal societies of Arunachal Pradesh, Exchange in Nyishi Marriage - Bride price or balanced reciprocity of marriage gifts? - N T Rikam, Edited by Tamo Mibang, MC Behera, Mittal Publication, New Delhi, 2006, page no - 346.
4. वही, पृ.सं. - 124
5. वही, पृ.सं. - 131