मध्य प्रदेश, उज्जैन (बड़नगर) के मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में जन्मे
कवि प्रदीप (06 फरवरी, 1915 - 11 दिसंबर, 1998) देशभक्ति गीत - अय मेरे वतन के
लोगों, जरा आँख में भर लो पानी... जैसी कालजयी रचना के लिए प्रसिद्ध है।
कैरियर के शुरुआती दौर में सन् 1940 में आई फिल्म 'बंधन' से उनकी पहचान एक
सुप्रसिद्ध गीतकार के रूप में हुई। बात दीगर है कि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट
फिल्म किस्मत के गीत - दूर हटो ये दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है, ने
उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया। गीत के अर्थ से क्रोधित
होकर तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए। कवि प्रदीप को
भूमिगत होना पड़ा। पाँच दशकों के कैरियर में उन्होंने 71 फिल्मों के लिए
लगभग 1700 गीत लिखे। देशभक्ति गीतों ने उन्हें राष्ट्रीय कवि बनाया। उनके
देशभक्ति गीतों में फिल्म बंधन (1940) में 'चल-चल रे नौजवान', फिल्म जागृति
(1954) में 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ', 'दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना
ढ़ाल' और फिल्म जय संतोषी माँ (1975) में 'यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ मत पूछो
कहाँ-कहाँ...' आदि गीतों को उन्होंने फिल्म के लिए स्वयं गाया भी। भारत
सरकार ने उन्हें 1997-98 में सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान 'दादासाहब फाल्के
पुरस्कार' से सम्मानित किया।
कवि प्रदीप (मूल नाम रामचंद्र द्विवेदी) ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद
हुए वीर सैनिकों की श्रद्धांजलि में 'अय मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो
पानी...' गीत लिखा। उनकी लेखनी में जो कशिश थी, उसी ने भारत के पहले
प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आँखें उस समय छलका दीं जब उनका गाना
('अय मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी') को नेहरू ने सुना। इस गीत
को सुनकर आज भी देश भाव विभोर हो उठता है और यह गीत आज भी उतना ही सटीक है,
जितना लिखे जाने के समय, इसी को लेखक की जीवंतता कहा जा सकता है। 1963 के
गणतंत्र दिवस की तैयारियों पर 1962 में चीन के हमले में हुई हार के घाव देश के
मन पर थे। पं. नेहरू के मन पर भी। नेहरू ने गीत में सुना - जय हिंद की सेना।
वे जानते थे कि ऐसा नहीं हुआ। कवि प्रदीप ने बहादुर सैनिक शैतान सिंह भाटी का
किस्सा सुनकर 'अय मेरे वतन के लोगों' गीत लिखा था। मेजर शैतान सिंह भाटी चीन
हमले का मुकाबला करते हुए शहीद हो चुके थे। बाद में उन्हें परमवीर चक्र से
सम्मानित किया गया।
कवि प्रदीप ने 'अय मेरे वतन के लोगों...' गीत की रायल्टी युद्ध विधवा कोष में
जमा करने की अपील की। यह गीत हर राष्ट्रीय उत्सव पर गाया जाता था। राजनीतिक
सभाओं में, सार्वजनिक कार्यक्रमों में बजता था। गीत लिखे जाने के चालीस बरस
बाद भी रायल्टी का पैसा सैनिक के परिवारों को नहीं मिल पाया। राज्यसभा
सदस्य डॉ. श्रीकांत जिचकार ने पहल की, सरकार से जानना चाहा कि सैनिक परिवारों
के कल्याण कोष में गीत से कितनी निधि मिली और कितने परिवारों के हित में
खर्च हुई। उत्तर मिला-शून्य। कारण। कंपनी ने न भेजी, न रक्षा मंत्रालय ने
पड़ताल की। दिल्ली से प्रकाशित समाचार पत्र में खबर छपने के बाद बात चर्चा
में आई। इसके बावजूद रिकार्ड तैयार करने वाली कंपनी ने मौन नहीं तोड़ा। मुंबई
उच्च न्यायालय ने 25 अगस्त, 2005 को संगीत कंपनी एचएमवी को इस कोष में
अग्रिम रूप से रु.10 लाख जमा करने का आदेश दिया। हालाँकि कंपनी का उत्तर था
कि 1988 से पहले का हिसाब आग के हवाले हो चुका है। दस लाख रुपये उस समय रक्षा
मंत्रालय को भेजे जाने की बात हुई। गीत की लोकप्रियता का अंदाज है। प्रदीप जी
के गीतों के बिना हमारा हर राष्ट्रीय पर्व अधूरा लगता है। अपनों के बीच बापू
के स्नेह भरे संबोधन से पुकारे जाने वाले प्रदीप के अमर गीत को सरकार ने
सम्मान नहीं दिया। कवि प्रदीप पहले ही 1954 में जागृति फिल्म में लिख गए -
'देख तेरे संसार की हालत क्या, हो गई भगवान,कितना बदल गया इंसान...।' कवि
प्रदीप की रचनाधर्मिता को शत-शत नमन।
प्रसिद्धि सरहद के पार भी
- कविता, गीत या फिर लेखन की कोई और विधा हो, वह तभी मुकम्मल होती है जब वो
सभी सरहदें लाँघकर एक देश से दूसरे देश और दूसरे से तीसरे देश तक जा पहुँचे।
हालाँकि ऐसे रचनाकारों की संख्या कम ही हैं लेकिन उनमें एक नाम कवि प्रदीप का
भी आता है। उनके लिखे गीत भारत में ही नहीं, वरन् अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका
में भी सुने जाते हैं। वे कमर्शियल लाइन में रहते हुए, कभी भी अपने गीतों से
कोई समझौता नहीं किया। दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढ़ाल, ये गीत
पाकिस्तान को इतना भाया कि पाकिस्तान की फिल्मों में ये ऐसे आया 'यूँ दी
आजादी कि दुनिया हुई हैरान, ए कायदे आजम तेरा एहसान है एहसान'। 'आओ बच्चों
तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिंदुस्तान की...', इस तर्ज पर पाकिस्तान में गाया
गया - 'आओ बच्चो सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की'।
गीतों में स्वतंत्रता की चिंगारी भर देते थे प्रदीप
: वर्ष 1940 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र
कराने के लिए छिड़ी मुहिम में कवि प्रदीप भी शामिल हो गए। अपने गीतों को
प्रदीप ने ग़ुलामी के खिलाफ आवाज बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल
किया और उनके गीतों ने अंग्रेज़ों के विरूद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नई
दिशा दी। चालीस के दशक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अँग्रेज सरकार के
विरूद्ध 'भारत छोड़ो आंदोलन' अपने चरम पर था। 1940 में फिल्म 'बंधन' की 'चल
चल रे नौजवान...'के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानों में एक नया जोश भरने का
काम किया। वर्ष 1943 में प्रदर्शित फ़िल्म 'किस्मत' में प्रदीप के लिखे गीत
'आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनियाँ वालों
हिंदुस्तान हमारा है' जैसे गीतों ने जहाँ एक ओर स्वतंत्रता सेनानियों को
झकझोरा, वहीं अँग्रेजों की तिरछी नजर के भी वह शिकार हुए। प्रदीप का रचित यह
गीत 'दूर हटो ए दुनिया वालों' एक तरह से अँग्रेजी सरकार के पर सीधा प्रहार था।