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लेख

अभिव्यक्ति की आजादी और ब्लॉंगिंग की आचार संहिता

अमित कुमार विश्वास


राष्‍ट्र-राज्‍य की सीमा को लाँघते हुए इंटरनेट दुनिया को वैश्‍विक गाँव में तब्‍दील करने में अपनी अहम भूमिका निभा रही है। नई तकनीक से उपजे वैश्‍विक गाँव की अवधारणा भारत अपने को कहाँ तक समाहित कर पा रहा है, यह एक अलग सोचनीय प्रश्‍न है। नई तकनीक का ब्‍लॉगिंग, मीडिया के एक बडे फार्म, इंटरनेट के माध्‍यम से लोकप्रिय हो गया है।

वर्तमान संदर्भ में ब्‍लॉग एक जनमाध्‍यम है, सबका माध्‍यम है। यह हमें अविवेकवादी परंपराओं का इस्‍तेमाल करवाता है क्‍योंकि अविवेकवादी परंपराएं सहज स्‍वीकार्य होती हैं जो सहज स्‍वीकार है वह ब्‍लॉग का अंग बन सकता है। जटिल और विवेकपूर्ण सहज स्‍वीकार्य नहीं होता है इसीलिए ब्‍लॉग पर हम अविवेकी बातों को पाते हैं। संचार, सूचना, यातायात, गवर्नेंस, सुरक्षा, उद्योग-कारोबार आदि भले ही एक-दूसरे से कितने भी भिन्‍न हों, कंप्यूटर नेटवर्क और इंटरनेट उन सबके बीच समानता का एक तत्‍व है और हमारे अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता का एक अभिन्‍न अंग भी। भारतीय संविधान के भाग 3 अनुच्‍छेद 19 (1) में वाक् एवं अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता का जिक्र किया गया है। साथ ही राज्‍य की सुरक्षा, विदेशी राज्‍यों से मैत्रीपूर्ण संबंध, मानहानि, अपराध के लिए उकसाना, न्‍यायालय की अवमानना, लोक व्‍यवस्‍था, अश्‍लीलता एवं भारत की एकता एवं अखंडता पर किसी प्रकार की बाधा उत्‍पन्‍न्‍ा होने पर अनुच्‍छेद 19(2) के तहत प्रेस की स्‍वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने का भी प्रावधा है।

चूँकि जिस चीज की अहमियत को समाज स्‍वीकार कर लेता है वह पॉपुलर कल्‍चर के रूप में स्‍वीकार कर लिया जाता है ब्‍लॉग को स्‍वीकार करने का सबसे बड़ा मकसद है कि हम अपनी आत्‍मा से अपनी बातें कह देना। मन की स्‍वतंत्रता के लिए ही पत्रकारिता की शुरूआत हुई। अपनी आत्‍मा की बात कहने के लिए ही तो इस्‍ट इंडिया कंपनी के एक असंतुष्‍ट कर्मचारी जेम्‍स अगस्‍टस हिक्‍की ने बंगाल गजट निकालना शुरू किया था। अँग्रेज अधिकारियों ने हिक्‍की को जेल का रास्‍ता दिखाया पर उन्‍होंने मन और आत्‍मा की शांति के लिए जेल का रास्‍ता दिखाया पर उन्‍होंने मन और आत्‍मा की शांति के लिए जेल से भी हिक्‍की गजट निकालता रहा। अभिव्यक्ति की आजादी के लिए हमने पत्रकारिता से सफर शुरू कर आज हम ब्‍लॉग तक आ पहुँचे हैं।

अभिव्यक्ति का नया माध्‍यम ब्‍लॉग हिंदी में अभी अपने शैशव काल में है। अँग्रेजी में जहाँ ब्‍लॉगिंग 1997 से शुरू हो गई थी वहीं हिंदी में पहला ब्‍लॉग 02 मार्च 2003 को लिखा गया। अँग्रेजी और हिंदी ब्‍लॉग के शुरू होने का अंतराल भले ही मात्र 6 वर्षों का है पर ब्‍लॉगों की संख्‍या से दोनों के बीच कई प्रकाश-वर्ष का अंतर है। अँग्रेजी में जहाँ तकरीबन साढे तीन करोड ब्‍लॉग हैं वहीं हिंदी में करीब एक हजार। लेकिन यहाँ यह कहना समीचीन है कि नित दिन हिंदी में ब्‍लॉगों की संख्‍या में गुणात्‍मक बढोत्‍तरी हो रही है। हिंदी का रोमणीकरण कर लोग अपनी अभिव्‍यक्‍ति कर रहे हैं। ब्‍लॉगिंग के संबंध में आखिर क्‍या जरूरत आ पड़ी कि आज इसपर आचार संहिता बनाने के लिए ऐसी चिंता सताने लगी कि क्‍या इस पर अंकुश लगाने के लिए आचारसंहिता बनाई जानी चाहिए।

दरअसल देश के विकास हेतु आजादी के नाम पर जिस प्रकार नेता व अफसर वर्ग भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त हैं उसी प्रकार ब्‍लॉगर भी सांस्‍कृतिक अस्‍मिता का क्षिन्‍न-भिन्‍न करने में तुले हैं। स्‍वतंत्रता के नाम पर सारी नैतिकता व आचार संहिता को लाँघते हुए असंसदीय शब्‍दों का प्रयोग ब्‍लॉग में होने लगा है।

ब्‍लॉग की दुनिया असीमित है, अभी इस क्षेत्र में नए-नए चमत्‍कार होने की संभावना है। यह सही है कि मनुष्‍य अपनी सीमाओं से और आगे जाना चाहता है। इसीलिए तो महादेवी वर्मा ने पहले ही कह दिया था कि-तोड दो यह क्षितिज मैं भी देख लूँ उस पार क्‍या है। उस पार की कवायद में हम यह न भूले कि अगर हम अपने पर अंकुश नहीं लगाएंगे तो इसपर भी राज्‍य का नियंत्रण होगा और हम यह जान रहे हैं कि राज्‍य का चेहरा कितना क्रूर होता है। पिछले दिनों ही राज्‍य के चरित्र पर टिप्‍पणी करते हुए स्‍वयं कुलपति विभूति नारायण राय स्‍वीकार चुके हैं कि मीडिया पर राज्‍य का नियंत्रण नहीं होना चाहिए, तो हम यह मानकर चलें कि जिस प्रकार टीआरपी के चक्‍कर में मीडिया वाले नीति-नियमों को ताक पर रखकर बाजारीय व्‍यवस्‍था के दुश्‍चक्र का एक हिस्‍सा बन कर रह गया है। क्‍या ब्‍लॉग भी इन्‍हीं बाजारीय व्‍यवस्‍था के नीचे नतमस्‍तक हो जाएगा। अगर हाँ तो प्रेस काउंसिल की तरह ही ब्‍लॉग को एक वैधानिक संस्‍थान के नीचे लाने की जरूरत होगी। एक शोधार्थी होने के कारण मेरी जहाँ तक दृष्‍टि जाती है गत चार दशक पहले भारतीय प्रेस परिषद का गठन हुआ था तो उस समय इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया का अस्‍तित्‍व न के बराबर था, रेडियो सरकारी नियंत्रण में था। इसलिए टेलीविजन इस कार्य क्षेत्र में नहीं पड़ते थे। उनपर अंकुश नहीं चलता था। अब चूँकि ब्‍लॉग अभिव्‍यक्‍ति का एक सशक्‍त जरिया अन चुका है तो ऐसे में न्‍यू मीडिया के रूप में ब्‍लॉग तथा इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया को एक साथ लाना चाहिए और इसकी निगरानी के लिए प्रेस परिषद की जगह भारतीय मीडिया परिषद गठित की जानी चाहिए तथा इसे वैधानिक शक्‍ति प्रदान किया जाय। साथ ही इस पर अंकुश लगाने के लिए संविधान में संशोधन कर इसे धारा 19 (2) के तहत लाया जाय।

मीडिया समाज को बदलने का एक शक्‍तिशाली औजार है, मगर कुछ ताकतें चाहती हैं कि वह समाज के बजाय उनके हित साधने में लगे। वे ताकतें मीडिया की भूमिका ही बदल देना चाहती है। हमारे देश में कई विकसित पश्‍चिमी देशों के मुकाबले न्‍यू मीडिया का बहुत तेजी से विस्‍तार हो रहा है। ऐसे में हमें यह सुनिश्‍चित करने की जिम्‍मेवारी है कि विकास के सोपान तय करते हुए वे विरासत में मिले उन मूल्‍यों का संरक्षण करें, जिन्‍होंने हमारे देश को दुनिया में अनुपम स्‍थान दिलाया हुआ है। हम अपने दायित्‍व से हट जाएँगे तो संकट और भी गहरा हो जाएगा। विकासशील विश्‍व में मीडिया साम्राज्‍यवाद के आर्थिक मायाजाल को हम जाँचे और यह परखें कि कहीं हम मानसिक गुलामी के साथ-साथ सांस्‍कृतिक गुलामी के वाहक तो बनते ही जा रहे हैं, और यह गुलामी मानव को दानव की प्रवृति की ओर ले जाने में कहीं कोई कसर नहीं छोडेगी। अंत में मैथिलीशरण गुप्‍त के सीधे-साधे शब्‍दों में आप सबको मेरा निमंत्रण है, 'आओ विचारें आज मिलकर समस्‍याएँ सभी।' हमें चाहिए कि अभिव्‍यक्‍ति की जो आजादी मिली है उसका दुरूपयोग न हो। अपने अधिकार और उत्‍तरदायित्‍व के साथ ब्‍लॉग के लिए स्‍व पर नियंत्रण रखकर अपनी अभिव्यक्ति देगे तो निश्‍चित रूप से हम मानव समाज बनाने की ओर अग्रसर हो सकेंगे।


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