हर एक शताब्दी अपनी किसी न किसी चीज के लिए पहचानी जाती है। ऐसे ही 21वीं
शताब्दी 'इंटरनेट और वेब मीडिया' के युग की शताब्दी मानी जा रही है। यह
सर्वविदित है तथा बहस का प्रमुख विषय बन गया है कि बीसवीं सदी की समाप्ति तक
दुनिया में सशक्त मीडिया माध्यमों का तीव्र गति से विस्तार हुआ है। इस विस्तार
का ही परिणाम है मीडिया की शक्ति आम जनता के हाथ में आ गई है। मीडिया के बदलते
आयामों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मौजूदा समय बदलाव का समय है। संप्रेषण
के ऐसे नए तरीके और नए माध्यम सामने आए हैं जो पूरी तरह हमारे जीवन का
हिस्सा बन गए हैं। लोगों को और विभिन्न स्थानों को जोड़ने वाला सोशल मीडिया
ऐसा ही एक माध्यम है जिसे हमने जीवन के एक अटूट हिस्से के रूप में अपनाया
है। यह हमारे जीवन के कई पहलुओं को तय कर रहा है। मसलन हमारा रहन-सहन, कामकाज,
मौजमस्ती और यहाँ तक कि दुखी होना भी। इन भावनाओं को हम तुरंत जाहिर भी कर
देते हैं। वर्तमान संदर्भों में इसकी उपयोगिता को देखकर कहा जा सकता है कि इस
दौर की एक बड़ी जरूरत और हकीकत बन चुका है सोशल मीडिया।
सामाजिक संबंधों का ताना-बाना एक तरह से मानव सभ्यता का अंग रहा है। किट्टी
पार्टी व लेडिज क्लब एक तरह का सामाजिक नेटवर्क ही है जहाँ समान सोच और समान
रूचि वाली महिलाएँ एक मंच पर आती हैं। धीरे-धीरे इन सामाजिक संबंधों का दायरा
बढ़कर एक नेटवर्क का रूप धारण कर लेता है। इसी तरह के नेटवर्क में
प्रौद्योगिकी के समावेश से सोशल मीडिया का जन्म हुआ। आंद्रे कैप्लान और
माइकल हैनलीन के अनुसार, 'सोशल मीडिया इंटरनेट आधारित उपयोगों का एक ऐसा समूह
है जो विचारधाराओं और तकनीकों के आधार पर निर्मित हुआ है और यह उपयोगकर्ताओं
को सामग्री के सृजन और इसके आदान-प्रदान की सहुलियत प्रदान करता है।' हर
आयु-वर्ग के लोगों में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का क्रेज दिनों-ब-दिन बढ़ता जा
रहा है। आज सोशल नेटवर्किंग दुनिया भर में इंटरनेट पर होने वाली नंबर वन
गतिविधि है, इससे पहले यह स्थान पोर्नोग्राफी को हासिल था। सोशल नेटवर्किंग
साइट्स संचार व सूचना का सशक्त का जरिया है, जिनके माध्यम से लोग अपनी बात
बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। यह बात देश और दुनिया के हर कोने तक पहुँच
जाती है। आप खुद के विचार रखने के साथ-साथ दूसरों की बातों पर खुलकर अपनी राय
भी व्यक्त कर पाते हैं। एक परिभाषा के अनुसार, 'सोशल मीडिया को परस्पर संवाद
का वेब आधारित एक ऐसा अत्यधिक गतिशील मंच कहा जा सकता है जिसके माध्यम से लोग
संवाद करते हैं, आपसी जानकारियों का आदान-प्रदान करते हैं और उपयोगकर्ता जनित
सामग्री को सामग्री सृजन की सहयोगात्मक प्रक्रिया के एक अंश के रूप में
संशोधित करते हैं। हम इंटरनेट के माध्यम से निम्न सेवाएं ले सकते हैं -
Ø फेसबुक, टि्वटर जैसे सोशल मीडिया साइट्स
Ø मेसेजिंग या कॉल सर्विस जैसे वॉट्सऐप
Ø स्काइप,गूगल, हैंगआउट से लाइव बातचीत
Ø कई तरह की ईमेल सर्विसेज
Ø न्यूज से जुड़ी साइट्स पर ऐक्सेस
Ø आभासी खेल दुनिया (जैसे - वर्ल्ड ऑफ वॉरक्राफ्ट)
Ø आभासी सामाजिक दुनिया (जैसे सेकंड लाइफ)
दुनिया के भिन्न-भिन्न देशों में लोग अपनी सुविधा व परिवेश के अनुसार इन सोशल
साइट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। नब्बे के दशक में पहली बार सोशल मीडिया की
चर्चा हुई जब 1994 में सबसे पहला सोशल मीडिया जीओसाइट् के रूप में लोगों के
सामने आया। इसका उद्देश्य एक ऐसी वेबसाइट बनाना था जिसके माध्यम से लोग अपने
विचार और बातचीत आपस में साझा कर सकें। आंरभिक दौर में इसे मात्र 6 शहरों में
इस्तेमाल हेतु बनाया गया था पर आज यह पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो चुका है। आज
फेसबुक, टि्वटर, गूगल प्लस, लिंक्डइन, माय स्पेस, पिंटररेस्ट आरकुट, जैसी तमाम
सोशल नेटवर्किंग साइट्स दुनिया को एक सूत्र में बाँध रही हैं। इंटरनेट आधारित
सोशल नेटवर्किंग की परंपरा वर्ष 2002 में 'फ्रेंडस्टर' से हुई थी। कुछ समय
बाद 'माई स्पेस' व 'लिंक्डन' जैसी साइटें सामने आई। वर्ष 2004 में फेसबुक का
आगमन हुआ जो आज की तारीख में सबसे अधिक लोकप्रिय नेटवर्किंग साइट्स मौजूद हैं।
'ट्विटर' इसके बाद दुनिया की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट है। आँकड़ों
में बात करें तो फेसबुक पर एक अरब, ट्वीटर पर 20 करोड़, गूगल प्लस पर 17.5
करोड़, लिंक्डइन पर 15 करोड़ एवं पिंटररेस्ट पर 11 करोड़ से यादा प्रयोक्ता
सक्रिय हैं। सोशल साइट्स के प्रयोक्ताओं की दीवानगी इसी से समझी जा सकती है कि
औसतन प्रतिमाह वे फेसबुक पर 405 मिनट, पिंटररेस्ट पर 89 मिनट, टि्वटर पर 21
मिनट, लिंक्डइन पर 17 मिनट व गूगल प्लस पर 3 मिनट व्यय करते हैं। भारत में
फेसबुक व गूगल प्लस, ब्राजील में गूगल प्लस, फ्रांस में 'स्काई राक', द.
कोरिया में 'साय वर्ल्ड', चीन में 'क्यू क्यू' तो रूस में 'वेकोनेटाकटे'
साइट्स लोकप्रिय हैं। अब तो भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग भी अपने विचारों को साझा
करने के लिए सोशल साइट्स इजाद करने लगे हैं। मसलन 'मक्सलिम' दुनिया भर के
मुस्लिम समुदाय के बीच तो 'रिसर्चगेट' दुनिया भर के वैज्ञानिकों के बीच
लोकप्रिय है। यही कारण है कि आज फेसबुक पर आम आदमी ही नहीं खास लोग भी सक्रिय
हैं। राजनीति, फिल्म जगत, साहित्य, कला, अर्थ, मीडिया, कारपोरेट जगत से लेकर
सरकारी सेवाओं में पदस्थ एवं सैन्य अधिकारी भी फेसबुक पर अपनी उपस्थिति दर्ज
करा रहे हैं। ऐसे लोग जो अपने मन की बात कहने के लिये उचित मंच नहीं पाते, वे
भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर खूब लिख-पढ़ रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स में
सबसे ज्यादा फेसबुक का है। वर्तमान में इसके 100 करोड़ से भी ज्यादा सदस्य
हैं। वैश्विक स्तर पर लगभग 2.2 अरब लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं और इनमें से
करीब आधे का फेसबुक पर प्रोफाइल है। वर्ष 2004 में अपनी स्थापना के बाद से ही
इसने पता नहीं कितने बिछुड़े हुए लोगों को फिर से मंच पर मिलने का अवसर प्रदान
किया। एक छोटे से प्रयास के रूप में शुरू की गई यह वेबसाइट आज दुनिया की
सिरमौर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट बन चुकी है। जनवरी, 2009 में किए गए इंटरनेट
सर्वे के अनुसार यह दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली सोशल
नेटवर्किंग वेबसाइट है। वेबसाइट का विश्लेषण करने वाली एलेक्सा डॉट काम ने
इसको दुनिया की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण वेबसाइट करार दिया है। गौरतलब है कि
फेसबुक का आरंभ एक दिन में नहीं हुआ, बल्कि इसका भी एक इतिहास है। 04 फरवरी,
2004 को अमेरिकी युवा कंप्यूटर प्रोग्रामर मार्क जुकरबर्ग ने हार्वर्ड
यूनिवर्सिटी के अपने तीन दोस्तों डस्टिन मोस्कोविट्ज, एडुवर्डो सवेरिन और सि
हगेस के साथ मिलकर इस वेबसाइट की शुरूआत की थी। इस वेबसाइट की शुरूआत का मुख्य
मकसद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के छात्रों को एक-दूसरे से जोड़ना था। धीरे-धीरे इस
मंच से यहाँ के दूसरे विश्वविद्यालयों के छात्र भी जुड़ते चले गये। अपनी पैदाइश
के तकरीबन 10 साल में फेसबुक और 5 साल के अंदर ट्विटर ने इंटरनेट का इस्तेमाल
करनेवाले करोड़ों लोगों के बीच न सिर्फ अपनी खास जगह बनाई है बल्कि उनके लिए
अपनी बात कहने का सबसे बड़ा हथियार बन गया है। न तो फेसबुक को दुनिया में लाने
वाले मार्क ज़ुकेरबर्ग, डस्टिन मोस्कोवित्ज़, एडुआर्डो सवेरिन, एंड्र्यू
मैकोलुम और क्रिस ह्युजेज' और ना ही ट्विटर के संस्थापकों इवान विलियम्स, नोआ
ग्लास, जैक डोर्सी और बिज' स्टोन ने कभी ये सोचा होगा कि इन सोशल साइट्स का
असर इतना व्यापक होगा, जितना अब दिख रहा है, क्योंकि इनके साथ ही या आसपास
शुरु किए गए गूगल के ओरकुट, रीडिफ के कनेक्शन्स जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स
दुनिया में इंटरनेट के उपभोक्ताओं पर वैसा असर नहीं दिखा सके। इसकी एक वजह ये
भी हो सकती है कि फेसबुक और ट्विटर को अत्याधुनिक तकनीक वाले मोबाइल फोन का
सहारा मिला और दूरदर्शी तरीके से इनमें समय के साथ तकनीकी और यूज'र फ्रेंडली
बदलाव भी किए गए। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि 21वीं सदी के पहले दशक के
अंत तक और दूसरे दशक की शुरुआती दौर में फेसबुक और ट्विटर सामाजिक आंदोलनों के
सशक्त हथिय़ार के रूप में उभरे। चाहे वो 2011 के अरब स्प्रिंग से जुड़े आंदोलन
हों या 2013 तक भारत में राजनीतिक जनजागरण से जुड़े मामले हों, फेसबुक और
ट्विटर का बेशुमार इस्तेमाल सर्वत्र देखा गया। ये बात तो साफ है कि इक्कीसवीं
सदी के नए दौर में दुनिया के जिस-जिस कोने में आंदोलन हुए या राजनीतिक बदलाव
हुए, उनकी पृष्ठभूमि वही थी, जो हमेशा रहती है - यानी मौजूदा व्यवस्था से
नाराजगी, सत्तारूढ़ दलों से नाराजगी, बदलाव की आकांक्षा, शोषण के विरूद्ध आवाज
उठाने की कोशिश - चाहे वो मिस्र हो, या भारत की राजधानी दिल्ली - हर जगह
फेसबुक और ट्विटर सूचनाओं और विचारों के त्वरित प्रसार और लोगों को एकजुट करने
के लिए सशक्त माध्यम साबित हुए। सोशल मीडिया के जरिए मिस्र की होस्नी मुबारक
सरकार के खिलाफ जनज्वार पैदा करनेवाले कार्यकर्ता भी मानते हैं कि इंटरनेट पर
मौजूद ये माध्यम उनके लिए सबसे ज्यादा उपयोगी साबित हुए हैं। मिस्र के
कार्यकर्ता वाएल ग्होनिम का तो साफ कहना है कि "अगर आप लोगों को आजाद कराना
चाहते हैं तो उन्हें इंटरनेट दे दीजिए"।
फेसबुक तेजी से बढ़ती लोकप्रियता के कारण देखते ही देखते वेबसाइट की दुनिया में
नए कीर्तिमान स्थापित किए। आज फेसबुक पर आने वाले 70 फीसदी से ज्यादा लोग
अमरीका से बाहर के हैं। फेसबुक आज भले ही मात्र एक क्लिक पर आसानी से उपलब्ध
हो, पर इस मुकाम तक आने में उसे तमाम अहम पड़ावों से भी गुजरना पड़ा। मार्क
जुकरबर्ग ने सबसे पहले 2003 में 'फेसमाश' नाम से वेबसाइट शुरू की लेकिन
हार्वर्ड प्रशासन ने हैकिंग के आरोप लगाकर उसको बंद कर दिया। इसके बाद फेसमाश
को द फेसबुक डॉट काम के नाम से दोबारा लाँच किया गया और बाद में फेसबुक नाम
दिया गया। फेसबुक की बदौलत मार्क जुकरबर्ग रातोंरात इंटरनेट उद्यमी बन गए। 14
मई, 1984 को न्यूयॉर्क में जन्मे मार्क जुकरबर्ग वर्ष 2008 में दुनिया के सबसे
कम उम्र के अरबपति बने। यही नहीं, वर्ष 2010 में प्रसिद्ध टाइम पत्रिका ने
उनको 'पर्सन ऑफ द ईयर' चुना। वर्ष 2011 में उनकी संपति का आकलन 17.5 अरब डॉलर
किया गया। इंटरनेट की दुनिया में इतिहास रचते हुए 2012 में फेसबुक ने पाँच अरब
डॉलर का आई.पी.ओ. लांच किया, जो कि सोशल मीडिया के क्षेत्र में फेसबुक का एक
क्रांतिकारी कदम था। अपने नौ साल के सफर में फेसबुक ने तमाम अहम पड़ाव पार किए
हैं। ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में फेसबुक 'वर्चुअल कंट्री' का रूप ले चुका है।
चीन और भारत को छोड़ दें तो फेसबुक प्रयोक्ताओं की संख्या किसी भी देश की
जनसंख्या से ज्यादा है। आज फेसबुक दुनिया का तीसरा बड़ा देश बन चुका है।
दुनिया भर में हर सात में से एक व्यक्ति फेसबुक से जुड़ा हुआ है। हर व्यक्ति
अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति, क्रिया-प्रतिक्रिया और अपने बारे में लोगों को
रूबरू कराने हेतु इस साइट पर आता है। आज फेसबुक तमाम ऐसी सुविधाएं उपलब्ध
कराता है, जो इसके प्रति लोगों की अभिरुचि बढ़ाने में सहायक है। सिंतबर 2006
में फेसबुक ने विस्तार करते हुए 13 वर्ष से ज्यादा उम्र से ऊपर आयु के लोगों
को इससे जुड़ने की अनुमति प्रदान की। फरवरी, 2009 में फेसबुक लाइक शुरू किया
गया। सितंबर 2011 में फेसबुक पर प्रयोक्तों के लिए टाइमलाइन की सुविधा आरंभ कर
इसे और भी आकर्षक व रोचक बनाया गया। जनवरी 2012 से टाइमलाइन सुविधा को सभी के
लिए अनिवार्य कर दिया गया। सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने लोगों के जीवन में
क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। कभी कम्प्यूटर से घबराने वाले और उसको देखकर
नाक-भौं सिकोड़ने वाले उम्रदराज भी आज सोशल साइट्स पर सक्रिय नजर आते हैं।
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार भारत में
शहरी क्षेत्र में सोशल मीडिया के प्रयोक्ताओं की संख्या दिसम्बर 2012 तक 6.2
करोड़ से यादा थी। स्पष्ट है कि भारत के शहरी इलाकों में 74 प्रतिशत अर्थात्
प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति सोशल मीडिया का किसी न किसी रूप में प्रयोग
करते हैं। वस्तुत: सोशल मीडिया तक पहुँच कायम करने में मोबाइल का बहुत बड़ा
योगदान है और इसमें भी युवाओं की भूमिका प्रमुख है। गौरतलब है कि भारत में 25
साल से अधिक आयु की आबादी 50 प्रतिशत और 35 साल से कम आयु की 65 प्रतिशत है।
वास्तविक जीवन में मुलाकातें भले ही न होती हों पर सोशल साइट्स पर हर किसी के
हजारों मित्र है। इस आभासी दुनिया ने तो कइयों को विवाह के बंधन में भी बाँध
दिया। आप वास्तविक जीवन में जिनसे मिलने की कल्पना भी नहीं कर पाते, वे फेसबुक
व अन्य सोशल साइट्स पर आपकी फ्रेंड लिस्ट में हो सकते हैं। फिल्म और किक्रेट
से जुड़े सितारे सोशल साइट्स पर लोगों के साथ जुड़ रहे हैं और उनसे अपनी बातें
शेयर कर रहे हैं। परंपरागत मीडिया भी अब फेसबुक व टि्वटर जैसे माध्यमों पर न
सिर्फ अपने पेज बनाकर उपस्थिति दर्ज करा रहा है, बल्कि विभिन्न मुददों पर
लोगों द्वारा व्यक्त की गई राय को इस्तेमाल भी कर रहा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया
तो अब विशेषज्ञों की राय के समांतर सोशल मीडिया के माध्यम से तुरंत आमजन की
राय भी ले रहा है। इस आभासी दुनिया के सहारे न सिर्फ मित्र बनाए जा रहे हैं,
बल्कि उन्हें वोट बैंक से लेकर व्यवसाय में धनार्जन हेतु भी इस्तेमाल किया जा
रहा है। अकादमिक बहसों का विस्तार अब फेसबुक व अन्य सोशल साइट्स पर भी होने
लगा है। नारी विमर्श, बाल विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श, विकलांग
विमर्श, सब कुछ तो यहाँ है। आप इन्हें शेयर कर सकते हैं, लाइक कर सकते हैं,
कमेंट कर सकते हैं, वाद-प्रतिवाद कर सकते हैं और आवश्यकतानुसार नई बहसों को भी
जन्म दे सकते हैं। विचारों की दुनिया में क्रांति लाने वाला सोशल मीडिया एक
ऐसा माध्यम है जिसकी न तो कोई सीमाएँ हैं, न कोई बंधन। भारत सहित दुनिया के
विभिन्न देशों में न सिर्फ वैयक्तिक स्तर पर बल्कि राजनैतिक दलों के साथ-साथ
कई सामाजिक और गैरसरकारी संगठन भी अपने अभियानों को मजबूती देने के लिए सोशल
मीडिया का बखूबी उपयोग कर रहे हैं। सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का
माध्यम नहीं है बल्कि इसने कई पंक्तियों व वैचारिक बहसों को भी रोचक मोड़ दिये
हैं। जिन देशों में लोकतत्र का गला घोंटा जा रहा है वहाँ अपनी बात कहने के लिए
लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है। हाल के वर्षों में अरब जगत
में हुई क्रांतियों में सोशल मीडिया की अहम भूमिका रही। लोग इसके माध्यम से
एक-दूसरे से जुड़े रहे और क्रांति का बिगुल बजाते रहे। इसके चलते राजसत्ताओं को
यह पसंद नहीं आया। इसकी वजह से ईरान, चीन, बांग्लादेश, उज्बेकिस्तान, और
सीरिया में इस पर प्रतिबंध भी लगाया गया। भारत में भी अन्ना आंदोलन को चरम तक
ले जाने में सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
भारत में भी समय-समय पर गूगल, टि्वटर, फेसबुक पर निगरानी की बात की जाती रही
है। ऐसा नहीं है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स का विवादों से पाला नहीं पड़ा है।
समय-समय पर यह चारों तरफ आलोचना का शिकार भी बना है। फेसबुक कईयों में एक नशा
बनकर भी उभरा है। फेसबुक पर नित्य प्रोफाइल फोटो बदलना, दिन में कई बार
स्टेट्स अपडेट करना, घंटों फेसबुक मित्रों के साथ चैटिंग करना जैसी आदतों ने
युवा पीढ़ी को काफी हद तक प्रभावित किया है। घंटों तक फेसबुक पर चिपके रहने से
न केवल उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है बल्कि कुछ नया करने की रचनात्मकता भी
खत्म हो रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से तमाम अश्लील सामग्री और
भड़काऊ बातें भी लोगों तक प्रसारित की जा रही है, जो कि लोगों के मनोमस्तिष्क
पर बुरा प्रभाव डालती हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने लोगों को वास्तविक जीवन
की बजाय आभासी जीवन में रहने को मजबूर कर दिया है। यह एक ऐसा खेल बन चुका है,
जहाँ एक-दूसरे के साथ लाइक और शेयर के साथ सुख-दुख और सपने बांटे जाते हैं और
अगले ही क्षण रिश्तों को ब्लाक भी कर दिया जाता है। इसी प्रकार फेसबुक ने अपनी
नीति में घोषित किया हुआ है कि 13 साल से ऊपर के लोग ही इस वेबसाइट से जुड़
सकते हैं, लेकिन मई 2012 में किए गए एक इंटरनेट सर्वे में 13 साल से कम आयु के
75 लाख बच्चे इससे जुड़े पाए गए। दुर्भाग्यवश, कई बार ये बच्चे फेसबुक पर साइबर
बुलिंग का भी शिकार हो जाते है। सोशल नेटवर्किंग को दुनिया में बढ़ रहे तलाक के
मामलों में भी कसूरवार ठहराया गया है। सर्वे हर पाँच में से एक तलाक के लिए
फेसबुक को जिम्मेदार बताते हैं। कार्यालय समय में फेसबुक के ज्यादा इस्तेमाल
के चलते तमाम संस्थानों ने अपने यहाँ इसे बैन कर रखा है। भारत में एसोचैम की
एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर कंपनियाँ ऑफिस के अंदर सोशल साइट्स के इस्तेमाल
को अच्छे रूप में नहीं लेती हैं।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स आज एक स्टे्टस सिंबल का प्रतीक बन चुका है, जिनकी
अच्छाईयाँ हैं और बुराईयाँ भी। यह आप पर निर्भर करता है कि आप सोशल मीडिया से
क्या अपेक्षा रखते हैं? सोशल मीडिया आपको सोशल भी बना सकता है और एकाकी भी।
सोशल मीडिया पर आप अपने पुराने मित्रों के साथ तरोताजा हो सकते हैं तो अनजाने
लोगों के साथ धोखा भी खा सकते हैं। सोशल मीडिया पर आप दुनिया को अपनी
अच्छाईयों व रचनात्मकता से रूबरू करा सकते हैं तो दूसरों की बुराईयों को सीख
भी सकते हैं। कोई भी माध्यम अच्छा या बुरा नहीं होता बल्कि इसका प्रयोग करने
वाले उसे अच्छा या बुरा बनाते हैं और यही बात सोशल मीडिया पर भी लागू होती है।
सूचना-प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ सैम पित्रोदा के अनुसार, सूचना के आदान-प्रदान,
जनमत तैयार करने, विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों के लोगों को आपस में
जोड़ने, भागीदार बनाने और सबसे महत्वपूर्ण यह कि नये ढंग से संपर्क करने में
सोशल मीडिया एक सशक्त और बेजोड़ उपकरण के रूप में तेजी से उभर रहा है। यदि
सरकारें सर्वोत्कृष्ट ढंग से लाभ उठाना सीख लें तो सोशल मीडिया उनके लिए
अत्यंत प्रभावकारी नीति उपकरण बन सकता है। स्पष्ट है कि सोशल मीडिया सिर्फ
चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं बल्कि लोगों को जोड़ने, यादों को सहेजने संवाद के
माध्यम से प्रतिसंवाद, उनमें चेतना फैलाने व विमर्श पैदा करने एवं विभिन्न
सरोकारों पर जीवंत एवं अनंत बहस का उत्कृष्ट माध्यम है। सोशल मीडिया ने नए
नागरिकों को जन्म दिया है। ये नागरिक स्वयं तो जागरूक हैं ही, दूसरों को भी
जागरूक कर रहे हैं। इससे एक नये प्रकार की सामाजिक एकजुटता जन्मी है। सोशल
मीडिया द्वारा उत्पन्न आभासिक समुदाय (वर्चुअल कम्यूनिटी) में जाति, रंग या
वर्ग का कोई बंधन नहीं है। यह एक प्रकार की सामाजिक क्रांति है जो आभासिक है
और आप इसमें अपने घर की चाहारदीवारी में बैठकर हिस्सा ले रहे हैं। कई बार
आभासिक आंदोलन वास्तविक आंदोलन का रूप ले लेता है जैसा कि अन्ना हजारे के
आंदोलन के दौरान देखा गया। उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से आभासिक समर्थन
माँगा लेकिन वर्चुअल दुनिया में पैदा की गई जागरूकता के कारण लाखों लोग उनके
समर्थन में सड़कों पर उतर आए। दिलचस्प बात तो यह है कि सोशल मीडिया धीरे-धीरे
समाचारों का एक प्रमुख माध्यम भी बन रहा है। वे सभी मुद्दे जिन्हें
मुख्यधारा की पत्रकारिता में जगह नहीं मिल पाती थीं कई बार सोशल मीडिया
द्वारा समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।
सोशल मीडिया के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने हटाई आईटी की धारा 66-ए
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखने वाले अपने एक ऐतिहासिक फैसले में
उच्चतम कोर्ट ने हाल ही में साइबर कानून के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया जो
वेबसाइटों पर कथित 'अपमानजनक' सामग्री डालने पर पुलिस को किसी व्यक्ति को
गिरफ्तार करने की शक्ति देता था। सोच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को
'आधारभूत' बताते हुए न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की
पीठ ने कहा, 'सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66-ए से लोगों के जानने का
अधिकार सीधे तौर पर प्रभावित होता है।' यानि अब सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक
कमेंट करने वाले लोग अपराधी की श्रेणी में नहीं आएँगे। और कहा गया कि सोशल
नेटवर्किंग साइटों पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ पोस्ट करने के आरोपी किसी व्यक्ति
को पुलिस आईजी या डीसीपी जैसे वरिष्ठ अधिकारियों से अनुमति हासिल किए बिना
गिरफ्तार नहीं कर सकती। पहले धारा 66-ए के तहत सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट
के खिलाफ 3 साल की जेल हो सकती थी। सोशल मीडिया में बाल ठाकरे पर शाहीन ढाडा
द्वारा कमेंट करने तथा रीनू श्रीनिवासन द्वारा लाइक करने के एवज में दोनों को
जेल जानी पड़ी। इसके उपरांत कानून की छात्रा श्रेया सिंघल ने 2012 में सुप्रीम
कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर माँग की थी कि आईटी एक्ट की धारा 66-ए
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, इस कानून के तहत तुरंत गिरफ्तारी के
प्रावधान को खत्म किया जाए।
अब तक हो चुकी हैं कई गिरफ्तारियाँ
आईटी एक्ट की धारा 66 ए के तहत पिछले कुछ सालों में देश के कई राज्यों में
सोशल साइटों पर नेताओं के खिलाफ बयान देने पर अब तक कई लोगों की गिरफ्तारी हो
चुकी है। इनमें कई लोगों को व्यवस्था को लेकर सवाल उठाने तो कई लोगों को अभद्र
टिप्पणी के मामले में गिरफ्तार किया गया।
आजम खान पर कमेंट पर छात्र की गिरफ्तारी
18 मार्च 2015 : उत्तर प्रदेश के मंत्री आजम खान के नाम पर विवादास्पद कमेंट
करने पर बरेली में 11वीं के एक छात्र को गिरफ्तार कर लिया गया था। न्यायिक
हिरासत के बाद कोर्ट ने आरोपी छात्र विक्की खान को जमानत दे दी थी।
देवु को किया गिरफ्तार
23 मई 2014 : गोवा पुलिस ने 33 साल के इंजीनियर देवु चोदांकर को गिरफ्तार किया
था। उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक फेसबुक फोरम गोवा प्लस पर
अभद्र कमेंट किया था। इस फोरम से 47 हजार लोग जुड़े थे।
सीपीएम कार्यकर्ता गिरफ्तार
05 अगस्त 2014 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट लिखने की
वजह से केरल के कोल्लम जिले में सीपीआईएम कार्यकर्ता राजेश कुमार को गिरफ्तार
कर लिया गया था। उसके खिलाफ आरएसएस के लोगों ने रिपोर्ट लिखवाई थी।
दलित लेखक कंवल भारती हुए गिरफ्तार
6 अगस्त 2013 : कवि और दलित लेखक कंवल भारती को फेसबुक पर एक मेसेज डालने के
बाद गिरफ्तार कर लिया था। कंवल ने रेत माफिया पर नकेल कसने वाली आईएएस दुर्गा
शक्ति नागपाल को सस्पेंड करने के लिए यूपी में सपा सरकार की आलोचना की थी।
मुंबई में गिरफ्तार हुई थीं शाहीन और रीनू
19 नवंबर 2012 : आईटी एक्ट की इस धारा के तहत गिरफ्तारी पर महाराष्ट्र में खूब
विवाद हुआ था, जब पालघर इलाके में रहने वाली शाहीन ढाडा नाम की एक फेसबुक यूजर
ने बाला साहेब ठाकरे की अंतिम यात्रा पर मुंबई बंद को लेकर कमेंट किया था और
उसे उसकी सहेली रीनू श्रीनिवासन ने लाइक किया था। दोनों को इस मामले में
गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि कुछ दिनों के बाद दोनों को जमानत मिल गई।
कार्ती चिदंबरम के खिलाफ ट्वीट करने पर गिरफ्तारी
01 नवंबर 2012 : यूपीए सरकार में मंत्री रहे पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति
चिदंबरम के खिलाफ ट्वीट करने पर बिजनेसमैन रवि श्रीनिवासन की गिरफ्तार किया
गया। रवि पुडुचेरी में एक फैक्टरी के मालिक हैं। कार्ति चिदंबरम द्वारा पुलिस
से शिकायत किए जाने के बाद श्रीनिवासन को उनके घर से गिरफ्तार किया गया था।
हालांकि अदालत ने उन्हें जमानत दे दी थी।
किश्तवाड़ समूह
06 नवंबर 2012 : जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ में किशोरी शर्मा, बंसी लाल और
कीर्ती शर्मा को फेसबुक पर एक आपत्तिजनक धार्मिक वीडियो को टैग करने के कारण
गिरफ्तार किया गया था। जिसके कारण उन्हें 40 दिनों तक सलाखों के पीछे गुजारना
पड़ा था। इस घटना के बाद किश्तवाड़ में तनाव फैल गया था।
कार्टून बनाने पर हुई थी असीम को जेल
10 सितंबर 2012 : अन्ना आंदोलन से जुड़े कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को फेसबुक
पर यूपीए सरकार के घोटालों को लेकर एक कार्टून पोस्ट करने के बाद गिरफ्तार कर
लिया गया था। 'भ्रष्टमेव जयते' शीर्षक वाले इस कार्टून में संसद और राष्ट्रीय
प्रतीक का मजाक उड़ाया गया था। असीम के खिलाफ पुलिस ने देशद्रोह का मामला भी
दर्ज किया था। इस गिरफ्तारी के बाद असीम काफी चर्चा में आ गए थे। उन्होंने बाद
में टीवी के रियल्टी शो बिग बॉस में भी काम किया।
एयर इंडिया के कर्मचारी हुए गिरफ्तार
11 मई 2012 : मुंबई में पुलिस ने एक राजनेता के खिलाफ फेसबुक पर पोस्ट के कारण
एयर इंडिया के दो कर्मचारी मयंक शर्मा और केवीजे राव को गिरफ्तार कर लिया था।
एयर इंडिया में क्रू मेंबर के तौर पर तैनात दोनों ने एक मजदूर नेता पर टिप्पणी
की थी।
बंगाल में कार्टून पर प्रोफेसर की गिरफ्तारी
13 अप्रैल 2012 : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ एक
कार्टून बनाने पर पुलिस ने जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश
महापात्रा को गिरफ्तार कर लिया था। बाद में अलीपुर कोर्ट ने उन्हें पांच-पांच
सौ के निजी मुचलके पर जमानत दी थी। अंबिकेश और उनके पड़ोसी सुब्रत सेनगुप्ता ने
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, रेलमंत्री मुकुल रॉय और पूर्व रेलमंत्री दिनेश
त्रिवेदी का व्यंग्यात्मक कार्टून बनाकर और उसे सोशल नेटवर्किंग साइट और ई-मेल
पर डाला था। प्रोफेसर ने यह कार्टून उस वक्त फेसबुक पर पोस्ट किया था, जब
रेलमंत्री और अपनी पार्टी के सांसद दिनेश त्रिवेदी को ममता बनर्जी ने पद से
हटा दिया था।
बैठा को किया था निलंबित
सितंबर 2011 : बिहार में विधान परिषद के कर्मचारी और लोकप्रिय कवि मुसाफिर
बैठा को नौकरी से निलंबित कर दिया गया था। उन्होंने फेसबुक पर सरकार के कामकाज
की आलोचना की थी। तब सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर सवाल उठे थे।