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लेख

शून्य प्रतिरोध की तलाश

डॉ. भारत खुशालानी


'अति' शब्द का इस्तेमाल हम तब करते हैं जब हमें किसी बहुत शक्तिशाली चीज का जिक्र करना हो। 'चालक' वो धातु या पदार्थ होते हैं जो अपने अंदर से विद्युत धारा को आसानी से प्रवाहित करते हैं। इस हिसाब से 'अतिचालक' वो पदार्थ होते हैं जिनमे विद्युत धारा अति आसान तरीके से प्रवाहित होती है, बिना किसी प्रतिरोध के। किसी भी चालक धातु या पदार्थ में थोडा-बहुत विद्युत प्रतिरोध जरूर मौजूद रहता है। लेकिन कुछ ऐसे पदार्थ पाए गए हैं जो सामान्य तापमान पर अच्छे चालक होते हैं, किंतु यदि उनका तापमान एक विशेष तापमान के नीचे ला लिया जाए तो वे उतनी अच्छी तरह से विद्युत धारा को प्रवाहित करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। कुछ ऐसे पदार्थ भी पाए गए हैं जो सामान्य तापमान पर कुचालक होते हैं, किंतु यदि उनका तापमान एक विशेष तापमान के नीचे ला लिया जाए तो वे बहुत अच्छी तरह से विद्युत धारा को प्रवाहित करने लगते हैं। कुचालक कुछ विशेष चालकता नहीं दिखा पाते हैं और वे विद्युत प्रवाहिता दिखाने में अक्षम होते हैं।

इसीलिए अतिचालक पदार्थ वो पदार्थ होते हैं जिनका विद्युत प्रतिरोध तकरीबन शून्य हो जाता है। इनके अंदर से चुम्बकीय प्रवाह क्षेत्र निकल जाता है। यह खोज 1911 में कैमरलिंग ओंस नामक ओलंदेज ने की थी। ओंस ने किर्चोफ के मार्गदर्शन में भी पढ़ाई की थी। किर्चोफ विश्वविख्यात वैज्ञानिक था जिसके नाम पर विद्युति की में किर्चोफ कानून स्थापित हैं। ओंस मुख्य प्रकार से इस बात की जाँच कर रहे थे कि लगभग पूर्ण शून्य तक ठंडा होने पर विभिन्न पदार्थों में किस प्रकार का परिवर्तन आता है। 1908 में हीलियम गैस को तरल बनाने वाले वे पहले वैज्ञानिक बने। ओंस, तरल हीलियम के तापमान को सिर्फ 1.5 केल्विन तक पहुँचाने में सफल हो गए। उस समय यह धरती पर सबसे ठंडा तापमान था।

लार्ड केल्विन जैसे महान वैज्ञानिकों का मानना था कि पूर्ण शून्य तक पहुँचने पर चालकों में प्रवाह करने वाले विद्युताणु बिलकुल रुक जाएँगे और पदार्थ की प्रतिरोधकता बहुत ज्यादा हो जाएगी। विद्युत प्रतिरोधकता और विद्युत प्रवाह एक-दूसरे के विरोधार्थी हैं। जितना कम विद्युत का प्रवाह होगा, उतनी ज्यादा प्रतिरोधकता होगी। ओंस अपने सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक से बिलकुल उल्टा मानते थे। उनके अनुसार पूर्ण शून्य तक पहुँचते-पहुँचते चालक की प्रतिरोधकता कम होते हुए शून्य हो जाएगी जिससे विद्युत प्रवाह बहुत बढ़ जाएगा। 1911 में ओंस, पारे का तापमान नीचे 4.2 केल्विन तक लाने में सफल हो गए। इस तापमान पर उनको पता लगा कि पारे की प्रतिरोधकता लगभग शून्य हो गई है। इस कम तापमान को प्राप्त करने के लिए उन्होंने पारे को तरल हीलियम में डुबाया था। तरल हीलियम का तापमान वो डेढ़ केल्विन तक लाने में 3 साल पहले ही सफल हो गए थे। उनके 1908 और 1911 के प्रयोगों के कारण उन्हें 1913 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

उनके प्रयोगों के बाद और भी पदार्थों पर ऐसे प्रयोग किए गए। वैज्ञानिक यह जानना चाहते थे कि और भी ऐसे कौन कौन से पदार्थ हैं जिनका तापमान कम करने से उनकी प्रतिरोधकता बिलकुल कम हो जाती है। उन्होंने पाया कि एलुमिनियम, जिस धातु के बर्तन बनते हैं, में भी ऐसा होता है। एलुमिनियम के लिए प्रतिरोधकता के शून्य होने का तापमान 1.2 केल्विन है। टीन, जिसके टीन के डब्बे बनते हैं, उसमें 3.7 केल्विन के नीचे प्रतिरोधकता लगभग शून्य हो जाती है। जस्ता, जिसके पाइप और नट-बोल्ट बनते हैं, 0.9 केल्विन पर अतिप्रवाहन की स्थिति में पहुँच जाता है।

शून्य प्रतिरोधकता के तापमान को बढाने के सर्वथा प्रयास चल रहे हैं। अगर इसका तापमान सामान्य तापमानों जितना लाने में वैज्ञानिक सफल हो गए, तो ऐसी धातुओं के बिजली के तार बनाने में हम सफल हो जाएँगे जिनमें विद्युत धारा हमेशा ही प्रवाहित रहेगी और बिना किसी विद्युत के स्रोत के, बिजली की आपूर्ति हो सकेगी।


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