मुझे मुल्क का नाम ही नहीं पता
	मैं इस मुल्क में रहता ही नहीं
	अब मेरी कोई भाषा ही नहीं
	अब याद नहीं मुझे शब्दों के अर्थ
	उल्लास और रुदन जैसे शब्द
	राष्ट्रवाद और फासीवाद जैसे शब्द
	अब समानार्थी लगते हैं मुझे
	मैं एक सुरंग में रहता हूँ
	मेरी यात्रा यही सुरंग है
	मेरा मुकाम यही सुरंग है
	अब रास आ रही
	इस सुरंग की बंद हवा
	यहाँ मैं
	रौशनी के बारे में नहीं सोचता
	सुरंग में हुआ जाता मैं
	अंधकार
	मैं करता बातचीत इसी
	अंधकार से
	मेरा नया ठिकाना
	अब यही सुरंग है
	अब मैं ठहरा
	इसी अंधकार का नागरिक