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कविता

ब्रह्मांड की रचना

सुरेन्द्र स्निग्ध


कोसी क्षेत्र के एक लोक गीत को सुनकर

कई हजार वर्षों के बाद
माँ को आई है हल्की सी नींद

शांत रहिए
चुप रहिए
बनाए रखिए निस्तब्धता

निस्तब्धता को करिए
और भी निस्तब्ध

एक तिनका भी अगर खिसका
एक हरी घास ने भी अगर ली
हल्की सी साँस
टूट जाएगी माँ की नींद
स्फटिक से भी अधिक पारदर्शी
और आबदार माँ की नींद

सूरज को कहिए
कुछ दिनों के लिए त्याग दें ऊष्मा
कहिए पृथ्वी को
स्थगित रखें कुछ दिन
धुरी पर घूमना
जितनी नई कलियाँ हैं वृंत पर
हल्के से तोड़ लीजिए
चटकेंगी तो चटक जाएगी
माँ की नींद
ओस की बूँदों को कहिए
पत्तों पर गिरने के पल
न करें कोई आवाज

चर-अचर शांत रहिए

हजारों वर्षों के बाद
माँ की पलकों में
उतरी नींद को
कृपया तोड़िए नहीं

ब्रह्मांड को रचते-गढ़ते
थक गई है माँ
थोड़ा विश्राम दीजिए।


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