एयर फोर्स की वर्दी में एक आदमी सोफे पर सिर झुकाए बैठा हुआ है। सोफा एक बड़े
से कमरे में है। सोफे पर एक पत्रिका पड़ी है। दीवार पर दो अनजाने चित्र लगे हुए
हैं। कमरे के एक ओर कुछ किताबें और सजावट की वस्तुएँ पड़ी हैं।
अचानक पूरे सफेद वस्त्रों में एक व्यक्ति प्रवेश करता है। दोनों किरदारों की
उम्र तकरीबन 40 वर्ष है।
सफेद वस्त्रों वाला व्यक्ति :
राजेश?
सोफे पर बैठा आदमी हड़बड़ाकर सिर उठाकर देखता है। दर्शकों को उसके सोचने की आवाज
सुनाई देती है।
मंच के पीछे से आदमी के सोचने की आवाज :
राजेश? यह आदमी मुझसे बात कर रहा है? शायद मुझसे ही बात कर रहा है, यहाँ कोई
और है ही नहीं।
सफेद वस्त्रों वाला व्यक्ति :
मेरा नाम डॉ. खत्री है।
मंच के पीछे से आदमी के सोचने की आवाज :
डॉ.? यह डॉ. का दवाखाना तो लगता नहीं है। डॉ. के पास मैं कैसे पहुँच गया?
खत्री :
ये चित्र कैसे लगे तुमको?
राजेश उठकर चित्रों की तरफ जाता है और कुछ पलों तक चित्रों को देखता है।
अमूर्त कला से बने चित्र उसे अजीबोगरीब नजर आते हैं।
राजेश :
अपनी ओर ध्यान खींचते हैं।
खत्री भी चित्रों की तरफ मुस्कुराकर देखता है।
कमरे में एक मेज है। मेज के दोनों ओर एक-एक कुर्सी है। खत्री मेज के दूसरी तरफ
की कुर्सी की ओर इशारा करता है।
खत्री :
आओ राजेश, इस कुर्सी पर आराम से बैठ जाओ।
राजेश, खत्री की ओर देखते हुए कुर्सी की तरफ बढ़ता है, और कुर्सी के पास जाकर
खड़ा हो जाता है।
खत्री अपनी मेज पर रखी हुई फाइलों में से राजेश की फाइल ढूँढ़ता है।
खत्री :
(फाइल ढूँढ़ते हुए) राजेश, राजेश, राजेश की फाइल... यहीं पर है... ये रही।
खत्री फाइल निकालकर ऊपर देखता है और राजेश को कुर्सी के पास खड़ा हुआ पाता है।
खत्री :
बैठो बैठो। आराम से बैठो।
राजेश कुर्सी पर बैठता है।
खत्री :
कैसा महसूस कर रहे हो? तुम ठीक हो?
राजेश :
बिलकुल ठीक हूँ।
मंच के पीछे से राजेश के सोचने की आवाज :
राजेश की फाइल??
खत्री, राजेश की फाइल खोलकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है, और राजेश की तरफ हलकी
मुस्कराहट से देखता है।
मंच के पीछे से राजेश के सोचने की आवाज :
घबराना मत। कुछ ही मिनटों में सब समझ में आ जाएगा।
खत्री :
(उसी हल्की मुस्कराहट से) तो अब बताओ राजेश, तुम क्या बात करना चाहते हो।
राजेश खत्री की तरफ आश्चर्य से देखता है।
राजेश :
मुझे तो मालूम भी नहीं है कि मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ।
फिर थोड़ा सँभलकर,
राजेश :
मेरा मतलब है... मुझे पता है... कि मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ... लेकिन...
उह...
खत्री :
आराम से, आराम से।
राजेश कुर्सी पर पीठ टिकाकर आराम से बैठ जाता है।
खत्री :
चलो यहाँ से शुरू करते हैं। आज सुबह नाश्ते में क्या खाया तुमने?
खत्री अपनी पेन लेकर राजेश की फाइल में लिखने के लिए तैयार हो जाता है।
राजेश :
आज सुबह? आज सुबह का नाश्ता?
खत्री :
(हामी भरते हुए) हूँ...।
कुछ पलों के लिए मंच पर शांति रहती है।
खत्री :
कोई बात नहीं।
खत्री कुछ सोचता है।
खत्री :
कुछ और बात करते हैं। कल रात को कैसी नींद आई तुमको?
राजेश :
कल रात को? नींद? कल रात को नींद?
मंच पर फिर कुछ पलों के लिए चुप्पी छा जाती है।
खत्री :
कोई बात नहीं।
खत्री फिर कुछ सोचता है।
खत्री :
(कुछ सोचकर) कभी कभी मुझे लगता है कि बहुत पहले से शुरुआत करनी चाहिए। चलो
तुम्हारे बचपन से शुरुआत करते हैं।
राजेश सोच में डूब जाता है। उसे कुछ भी याद नहीं आता है।
खत्री :
राजेश, तुमको मेरी आवाज सुनाई आ रही है?
राजेश :
आ रही है। (फिर थोड़ी देर बाद) मेरी याददाश्त थोड़ी अस्पष्ट हो गई है।
खत्री पेन नीचे रखकर दोनों हाथ मेज पर रख देता है।
खत्री :
कुछ तो याद होगा तुमको। कोई विशेष पल। कुछ खास।
राजेश अपने दोनों हाथ अपने पैरों पर रख देता है।
राजेश :
कुछ याद नहीं है। कोई विशेष पल या कुछ खास याद नहीं आ रहा है।
खत्री दो क्षणों तक राजेश के चेहरे को देखता है।
खत्री :
ठीक है। कोई बात नहीं।
खत्री, राजेश की फाइल को बंद कर देता है, और अपनी कुर्सी से उठ खड़ा होता है।
उसको उठता देखकर राजेश भी अपनी कुर्सी से उठ जाता है।
खत्री :
बैठो-बैठो।
राजेश वापिस कुर्सी पर बैठ जाता है।
खत्री अपना सफेद जैकेट उतारकर कुर्सी पर रख देता है। जैकेट के नीचे भी उसने
पूरी आस्तीन वाली सफेद शर्ट पहन कर रखी है। उसकी पतलून भी सफेद रंग की ही है।
खत्री :
एक काम करते हैं। कुछ और तरीके से कोशिश करते हैं। मैं एक शब्द बोलूँगा। यह
शब्द सुनते ही तुम्हारे दिमाग में जो भी आता है, तुम तुरंत मुझे बोल देना।
खत्री वापिस अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है, राजेश की फाइल खोलता है और पेन हाथ
में ले लेता है।
खत्री :
ज्यादा मत सोचना, ठीक है?
राजेश खत्री की तरफ सपाट चेहरे से देखता है।
खत्री :
जीवन।
राजेश :
(तुरंत जवाब देते हुए) मृत्यु।
खत्री राजेश की तरफ देखता है।
खत्री :
स्त्री।
राजेश :
पुरुष।
खत्री :
प्रेम।
राजेश :
दर्द।
खत्री :
सपना।
राजेश :
डर।
खत्री :
हवाई जहाज।
खत्री के इस प्रश्नोत्तरी में बदलाव से राजेश हड़बड़ा जाता है। उसकी आँखों के
आगे जैसे कुछ गुजर गया हो।
राजेश :
काला रंग?
खत्री :
कंगाल।
राजेश :
भिखारी।
खत्री :
पागल।
राजेश :
(हँसते हुए) मानसिक रोगियों का चिकित्सक। मनोचिकित्सक।
खत्री भी हँसता हैं।
राजेश :
पहचान लिया ना मैंने तुम्हारे को?
खत्री हँसता है और अपनी उँगली से राजेश को संकेत करता है मानो राजेश ने सही
कहा हो।
फिर वह वापिस अपने प्रश्नों पर आ जाता है।
खत्री :
पेड़।
राजेश कुछ सोच में पड जाता है। उसे मानो अपने बीते हुए जीवन में किसी पेड़ से
संबंधित कुछ याद आ गया हो।
राजेश :
(कुछ सोचकर) झूला।
खत्री :
कपटी इनसान।
राजेश :
झूठा।
खत्री :
दिमाग।
राजेश की आँखों के आगे फिर कुछ घूम जाता है। अनायास ही वो जवाब देता है,
राजेश :
चोट। दुर्घटना।
खत्री इन दो शब्दों के जवाब से अनभिज्ञ होकर अपनी कड़ी जारी रखता है।
खत्री :
वास्तविकता।
राजेश :
कल्पना।
खत्री :
घर।
राजेश :
आकाश।
राजेश अपने ही जवाब से चकित होकर दोहराता है,
राजेश :
आकाश? आकाश? आकाश में घर?
खत्री अपने प्रश्न जारी रखता है।
खत्री :
तेज।
राजेश :
और तेज।
खत्री :
दुर्घटना।
राजेश :
हादसा।
खत्री :
काला।
राजेश :
विमान।
राजेश के आँखों के आगे फिर जैसे कुछ घूम रहा हो। राजेश दोहराता है,
राजेश :
विमान? काला विमान??
खत्री :
परीक्षा।
राजेश :
उड़ान।
खत्री :
पत्थर।
राजेश :
नुकीला।
खत्री :
टक्कर।
राजेश :
मार।
खत्री :
याददाश्त।
राजेश :
स्मृति।
खत्री :
अनंत।
राजेश :
जिसकी कोई सीमा न हो।
खत्री :
मस्तिष्क।
राजेश :
भूल-भुलैया।
खत्री :
दृश्य।
राजेश :
अदृश्य।
खत्री :
साफ।
राजेश :
अस्पष्ट।
खत्री :
दरवाजा।
राजेश :
मार्ग।
खत्री :
परमेश्वर।
राजेश :
मौत।
खत्री रुक जाता है। और अपनी पेन लेकर राजेश की फाइल में कुछ लिखने लगता है।
कुछ लिखने के बाद पेन राजेश की फाइल पर रख देता है और एक साँस खींचकर आराम से
कुर्सी पर पीछे टिक जाता है।
अब राजेश कुछ आराम से बैठा दिखता है।
खत्री अपने दोनों हाथों की उँगलियों को जोड़कर राजेश से पूछता है,
खत्री :
तुम क्या सोचते हो?
राजेश :
कुछ नहीं।
खत्री :
कुछ तो समझ में आता होगा?
राजेश :
कुछ भी नहीं।
खत्री :
कुछ सूझता है? दिमाग में कुछ आता है?
राजेश सिर्फ उसकी तरफ देखता है।
खत्री :
कुछ भी नहीं?
राजेश :
मैं सोच रहा हूँ कि इसका कोई तर्कसंगत स्पष्टीकरण होना चाहिए।
खत्री अपने गालों पर और अपनी दाढ़ी-मूँछ पर हाथ फेरता है।
खत्री :
चलो कोई बात नहीं।
खत्री चुटकियाँ बजाते हुए उठ जाता है।
खत्री :
कोई बात नहीं।
खत्री कमरे के दूसरी ओर जाकर खड्डों पर बनी हुई आकृतियाँ लाता है।
खत्री :
एक काम करते हैं। इन खड्डों पर कुछ चित्र और आकृतियाँ बनीं हुई हैं। इन 10
चित्रों और आकृतियों को देखते हैं। ठीक है? इनमें से 5 रंगीन हैं और 5 सफेद और
काली हैं।
खत्री खड्डे लाकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है।
खत्री :
अब देखते हैं कि ये क्या है। तुम मुझे बताओ कि ये क्या हैं।
खत्री खड्डों में से पहला निकालता है।
खत्री :
लेकिन तुरंत बताना। और जो दिमाग में पहले आता है, वही बताना। ठीक है?
राजेश :
इन चीजों का कुछ मतलब जरूर होगा।
खत्री उसकी बात की तरफ कोई ध्यान नहीं देता है और पहला खड्डा राजेश की ओर बढ़ा
देता है।
खत्री :
ये क्या है?
राजेश चित्र को गौर से देखता है। थोड़ा हिचकिचाते हुए बोलता है,
राजेश :
ये तो काला चमगादड़ लग रहा है।
खत्री :
चमगादड़? ठीक है।
खत्री पहले खड्डे को उठाकर बगल में रख देता है और दूसरे खड्डे को राजेश के
समक्ष रख देता है।
राजेश चित्र को देखता है।
राजेश :
मैं इस चित्र को पलट कर दूसरी तरफ से देख सकता हूँ?
खत्री :
तुम जिस तरफ से चाहो, उस तरफ से देखो।
राजेश गौर से आकृति देखने लगता है। अपनी छोटी उँगली आकृति पर घुमाकर सहसा उसे
एहसास होता है,
राजेश :
ये तो एक झाड की तरह लग रहा है।
खत्री राजेश को गौर से देखता है। राजेश आकृति को और गहरे से देखता है।
राजेश :
यहाँ इस झाड़ की डालें हैं...
सहसा राजेश रुक जाता है।
राजेश :
इस झाड़ में झूला नहीं है।
खत्री :
और?
राजेश :
क्या?
खत्री :
और क्या नजर आ रहा है?
राजेश :
शायद एक काला विमान। नहीं, छोड़ो, जाने दो।
राजेश कुछ परेशान हो जाता है।
राजेश :
सिर्फ एक झाड़।
राजेश खड्डे को मेज पर नीचे रख देता है। खत्री उस आकृति को उठाकर बगल में पहली
आकृति के ऊपर रख देता है। फिर तीसरी आकृति उठाकर खत्री राजेश की तरफ बढ़ा देता
है।
खत्री :
और यह?
राजेश :
यह?
राजेश उस आकृति को हाथ में उठा लेता है और दीवार पर लगी तस्वीरों को देखता है।
राजेश :
ये आकृति तो बिलकुल दीवार पर लगी तस्वीरों के जैसी है।
खत्री आश्चर्य में पेन नीचे रखकर राजेश के हाथ से आकृति ले लेता है और दीवार
पर लगी तसवीर और उस आकृति को मेल करते हुए देखता है।
खत्री :
(आकृति की ओर देखते हुए) सही है।
खत्री विस्मय से राजेश को देखता है।
खत्री :
बिलकुल सही बोल रहे हो तुम।
खत्री फिर आकृति को देखता है।
खत्री :
मैंने पहले कभी इस बात की तरफ गौर ही नहीं किया। बड़े ताज्जुब की बात है।
खत्री हँसता है, फिर पेन हाथ में लेकर राजेश की फाइल में कुछ लिखता है। फिर
हँसते-हँसते आकृति को पहली दो आकृतियों के ऊपर रख देता है। फिर उसी प्रकार
विस्मय से अपने दीवार पर लगी तस्वीरों को देखते हुए चौथी आकृति को राजेश की
तरफ बढ़ा देता है।
राजेश चौथी आकृति को उलट-पलट कर देखता है। फिर अपनी कालर को सहलाता है। उसकी
आँखों के आगे फिर कुछ घूमता-सा प्रतीत होता है।
राजेश :
यह मुझे क्या हो रहा है?
खत्री एकाग्रचित होकर राजेश को देखता है।
खत्री :
तुम ठीक हो?
राजेश जैसे किसी खोई हुई दुनिया से वापिस आता है।
राजेश :
हूँ?
खत्री दोहराता है।
खत्री :
तुम ठीक हो?
राजेश को मानो चेतना वापिस लौटी हो।
राजेश :
मैं बिलकुल ठीक हूँ।
फिर राजेश आकृति की तरफ देखता है।
राजेश :
यह मस्तिष्क का चित्र है। मस्तिष्क के बीच के हिस्से का चित्र है।
खत्री आकृति को पहले वाली आकृतियों के साथ रख देता है। और पाँचवी आकृति राजेश
की तरफ बढ़ा देता है।
राजेश :
इसके बीच में पीला गोल बना हुआ है और आस-पास लटाएँ हैं। शायद यह पीला सूरज है
जो बरगद की घनी लटाओं के बीच से दिख रहा है।
खत्री :
पीला सूरज? ठीक है।
खत्री पाँचवी आकृति को बाकी की आकृतियों के साथ रख देता है।
राजेश :
(झल्लाते हुए) तुम ये सब ऊटपटाँग आकृतियाँ मुझे दिखा रहे हो।
खत्री उसकी बात को बिलकुल नजरंदाज कर देता है और छठवीं आकृति उसके सामने रख
देता है।
खत्री :
ये?
राजेश :
यह किसी प्रकार का गणित में जो भूमिति होती है, उसका आकार है।
खत्री पेन से राजेश की फाइल में लिखने की चेष्टा करता है लेकिन उसका पेन काम
करना बंद कर देता है। खत्री पेन को बार-बार झटके देता है। राजेश अपनी बात कहने
का अवसर देखता है।
राजेश :
तुम्हारे आकृति और शब्द विश्लेषण से क्या अब तक यह सिद्ध हो गया है कि मैं
पूर्ण रूप से मानसिक रोगी हूँ?
खत्री अपनी पेन से इस तरह उलझा है कि राजेश को मानो उसने सुना ही नहीं।
खत्री :
किस प्रकार का भूमितीय आकार है यह?
राजेश :
शायद हवाई जहाज का आकार है।
राजेश आकृति को खत्री के हाथ में सौंप देता है।
राजेश :
शायद मेरी याददाश्त खो गई है।
राजेश एक हाथ कुर्सी के पीछे रखकर खत्री से पूछता है,
राजेश :
क्या मेरी याददाश्त खो गई है?
खत्री चुपचाप से छठवीं आकृति को पहली पाँच आकृतिओं के साथ रख देता है और
सातवीं आकृति राजेश की ओर बढ़ा देता है।
राजेश आकृति को हाथ में तो लेता है लेकिन उसे देखता भी नहीं है। वह आकृति को
हाथों से हिलाकर खत्री से कहता है,
राजेश :
पहले मुझे यह बताओ कि मैं यहाँ पर क्या कर रहा हूँ? मुझे खुद पता नहीं कि...।
इतना बोलते बोलते सहसा राजेश रुक जाता है जब उसकी नजर आकृति की तरफ जाती है।
उसके हाथ जैसे काँपने लगते हैं। आकृति हवाई जहाज के आकार की है।
राजेश :
हे भगवान!
खत्री की आँखें चमक जाती हैं।
खत्री :
तुम क्या कह रहे थे?
राजेश :
यह तो एक हवाई जहाज है!
राजेश आकृति को थोड़ा और देखता है।
राजेश :
यह तो हवाई जहाज ही है!
खत्री :
हवाई जहाज?
राजेश :
हाँ। हवाई जहाज सामने से ऐसा ही तो दिखता है।
खत्री :
(संतोष से) मुझे लगता है कि हम कुछ प्रगति कर रहे हैं।
राजेश अभी भी आकृति को देख रहा है।
खत्री :
इसके पहले तुम क्या कह रहे थे?
राजेश :
इसके पहले मैं यह कह रहा था कि इन सब चीजों का क्या तात्पर्य है?
खत्री :
किन सब चीजों का?
राजेश :
इन आकृतियों और शब्दों के खेल का।
खत्री अपनी पेन को और झटकता है।
खत्री :
माफ करना। मुझे दूसरी पेन लानी पड़ेगी।
खत्री उठकर कमरे की दूसरी तरफ जाकर पेन ढूँढ़ता है।
खत्री :
दूसरी पेन यहीं कहीं पर है।
राजेश सातवीं आकृति को हौले-हौले से मेज पर बजाता है। फिर अचानक आकृति को मेज
पर पटककर कुर्सी से खड़ा हो जाता है।
राजेश :
ये क्या है?
खत्री :
तुमने ही तो कहा कि यह हवाई जहाज है।
राजेश :
नहीं। ये सब क्या चल रहा है?
खत्री :
क्या मतलब? आकृति बराबर नहीं है क्या?
राजेश :
मेरा मतलब आकृति से नहीं है। यह सत्र, यह कार्यालय - यह सब बकवास है।
खत्री :
मिल गई पेन।
खत्री पेन लेकर वापिस अपनी कुर्सी की तरफ आता है।
खत्री :
तुम ऐसा क्यों सोचते हो?
राजेश :
पहली बात तो ये है कि मुझे पता ही नहीं है कि मैं यहाँ कैसे पहुँचा।
खत्री :
कहाँ पर?
राजेश :
(झल्लाकर) यहाँ, इस कार्यालय में, इस ऑफिस में, इस दवाखाने, ...या जो भी है
ये। यहाँ पर।
खत्री :
और?
राजेश :
मैं तुमसे पहले कभी भी नहीं मिला हूँ।
राजेश अभी भी खड़ा हुआ है। वह खत्री को घूरता है।
राजेश :
मुझे पूरा यकीन है कि मैं तुमसे पहले कभी भी कहीं भी नहीं मिला हूँ।
राजेश पलटकर कमरे की दूसरी तरफ जाने लगता है।
राजेश :
मुझे बिलकुल भी पता नहीं है कि तुम कौन हो।
राजेश पलटकर हाथ हिलाते हुए हल्के गुस्से में कहता है,
राजेश :
यहाँ पर हम कौन-सी चर्चा कर रहे हैं? हम यहाँ पर जो भी वार्तालाप कर रहे हैं,
उसका कोई मतलब नहीं है। इन सब बातों का कोई अर्थ नहीं है।
राजेश गुस्से में कमरे के आखिर तक जाकर वापिस आता है।
राजेश :
मुझे बिलकुल भी पता नहीं है कि तुम कौन हो। मुझे तो यह भी नहीं पता कि मैं कौन
हूँ।
खत्री राजेश को सादगी से देखता है।
खत्री :
तुम क्या बोलना चाहते हो?
राजेश उसकी तरफ गुस्से से हाथ हिलाता है।
राजेश :
देखा। यही मैं कहना चाहता हूँ। किस प्रकार का बेतुका उत्तर दे रहे हो तुम।
खत्री :
चलो माफ करो।
राजेश :
तुम माफी नहीं माँग रहे हो। ये तुम्हारा एक और बेतुका उत्तर है। तुम मेरे साथ
खेल खेल रहे हो। तुम मुझे खिलौने की तरह इस्तेमाल कर रहे हो।
राजेश खत्री के एकदम नजदीक आ जाता है।
राजेश :
तुमको लग रहा है कि मैं एकदम मूर्ख आदमी हूँ।
राजेश खत्री के कंधे को थपथपाकर कहता है,
राजेश :
मैं बेवकूफ नहीं हूँ।
खत्री :
मैंने कहाँ कहा कि तुम बेवकूफ हो?
राजेश :
मैं पागल भी नहीं हूँ।
खत्री मेज की ओर नीचे देखता है। राजेश फिर कमरे के दूसरी ओर चला जाता है और
कुछ क्षणों तक वहीं रहता है।
सहसा राजेश अपने दोनों हाथ ऊपर की उठाता है और पहले मुस्कुराता है, बाद में
हँसता है।
राजेश :
(जैसे उसे अचानक कुछ समझ में आ गया हो) मुझे समझ गया। मुझे सब समझ गया।
खत्री :
क्या समझ गया?
राजेश पलटकर खत्री की तरफ मुड़ता है।
राजेश :
यह एक सपना है!!
राजेश हँसते-हँसते चैन की साँस लेता है।
राजेश :
यह पूरा नाटक एक सपना है।
खत्री :
सपना?
राजेश :
(हँसते हुए) हाँ। सपना! सपना है ये!
खत्री :
तुम्हारा मतलब है 'बुरा सपना'।
राजेश खत्री को देखता है, फिर दूसरी ओर पलट जाता है।
खत्री :
तुम्हारा मतलब है कि यह सब कुछ भी वास्तविकता में नहीं हो रहा है।
राजेश फिर खत्री की तरफ ध्यान से देखता है।
राजेश :
नहीं। बिलकुल नहीं।
खत्री :
तुम्हारे हिसाब से यह सब एक भ्रम है।
राजेश :
बिलकुल सही।
खत्री
: यह सब कुछ मायाजाल है?
राजेश :
बराबर।
खत्री :
तुमको यह कब से लगने लगा कि यह माया है? जबसे तुमने यहाँ प्रवेश किया तबसे?
राजेश चुटकी बजाकर पलटता है। फिर सोफे पर रखी पत्रिका की तरफ इशारा करता है।
राजेश :
पत्रिका। यह पत्रिका।
खत्री पत्रिका की तरफ देखता है।
राजेश :
यह सब इस पत्रिका से शुरू हुआ।
खत्री :
पत्रिका से?
राजेश :
हाँ! इस पत्रिका से!
राजेश :
जब तुमने मुझे पहली बार आवाज दी और मैंने तुमको सिर उठाकर देखा, उस समय मैं
तुमको पहचानता तक नहीं था। उसके पहले मेरा सिर झुका हुआ था। और मैं यह पत्रिका
देख रहा था।
राजेश धीरे-धीरे खत्री के पास आता है।
राजेश :
और तुमने मुझे ऐसे आवाज दी जैसे तुम अच्छी तरह से जानते थे कि मैं कौन हूँ।
खत्री :
तुम पत्रिका देख रहे थे?
राजेश सोफे पर रखी पत्रिका की तरफ जाता है और पत्रिका उठाकर उसके पन्ने पलटने
लगता है।
खत्री :
कुछ दिख रहा है तुमको पत्रिका में?
राजेश एक बार फिर पत्रिका के पन्ने पलटता है। फिर निराशा से पत्रिका को सोफे
पर ही फेंक देता है।
राजेश :
एक मिनट। एक मिनट।
राजेश अपना सिर पकड़ लेता है।
राजेश :
मुझे सब समझ गया था।
खत्री :
और अब?
राजेश :
पता नहीं मेरे सिर को क्या हो गया है।
खत्री :
मुझे माफ करना। मैं तुम्हारी लय नहीं तोड़ना चाहता था।
राजेश अपनी हथेलियों से अपने माथे पर तीन-चार बार वार करता है।
राजेश :
मैं क्या कह रहा था?! मैं क्या सोच रहा था?!
खत्री :
तुम एक निष्कर्ष पर पहुँच गए थे। तुमको लग रहा था कि यह सब सपना है।
राजेश :
(अपना सिर पकड़ते हुए) हे भगवान! ये क्या हो रहा है? मेरे सिर के अंदर क्या चल
रहा है?
खत्री :
(हौले से) मैं भी यह जानना चाहता हूँ।
राजेश :
(तीव्रता से और परेशानी से) तुम जानना चाहते हो कि मेरे सिर के अंदर क्या चल
रहा है? मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि मेरे सिर के अंदर क्या चल रहा है।
राजेश व्याकुल होकर पूरे कमरे की तरफ दोनों हाथों से इशारा करता है।
राजेश :
यह पूरा कमरा... यह बेवकूफी भरा वार्तालाप जो तुम मेरे साथ कर रहे हो... यह सब
मेरी कल्पना है।
खत्री :
यानी माया।
खत्री कुछ सोचते हुए,
खत्री :
जो रेगिस्तान में दिखता है... क्या बोलते हैं उसको... हाँ... मृगतृष्णा।
तुम्हारे हिसाब से यह सब मृगतृष्णा है, है ना?
राजेश कमरे की उस ओर जाता है जहाँ कुछ किताबें और सजावट की वस्तुएँ पड़ी हैं।
राजेश :
अगर यह मेरी कल्पना नहीं होती, तो क्या तुम मुझे यह करने देते?
यह कहकर राजेश एक पुस्तक उठाकर उसको फाड़ने लगता है।
खत्री अपने मुँह पर निराशा से अपना हाथ रखकर राजेश को देखता है। राजेश तीन-चार
किताबें और नीचे फेंक देता है। फिर एक किताब उठाकर खत्री की तरफ फेंकता है।
राजेश :
अगर यह सब हकीकत होती तो क्या तुम वाकई में मुझे यह करने देते?
खत्री एकटक राजेश को देखते रहता है। राजेश सजावट की वस्तुओं में से एक वस्तु
उठाता है और उसे जमीन पर फेंक देता है। वस्तु टूटती नहीं है पर खत्री को जैसे
आघात पहुँचता है। राजेश गुस्से और परेशानी में और वस्तुओं को और किताबों को
नीचे फेंकता है।
राजेश :
वास्तविकता में तुम मुझे अपने ऑफिस को नष्ट करने देते?
खत्री निराशा से अपनी आँखों पर हाथ रखकर आँखें बंद कर लेता है। राजेश गुस्से
से कमरे की दूसरी ओर से खत्री की तरफ आता है। उसके हाथों में पाँच-छह और
किताबें हैं, जिनको वो एक-एक करके जमीन पर फेंकते हुए आता है।
राजेश :
हकीकत में क्या तुम मुझे ऐसा करने देते?
किताबें फेंककर राजेश खत्री की मेज पर आता है और फाइलों का बंडल उठाकर फेंक
देता है। फाईलें बिखर जाती हैं। खत्री अपनी कुर्सी पर ही बैठा रहता है और
निराश भाव से राजेश को देखता है।
राजेश अपने दाएँ हाथ की उँगली खत्री के सीने पर रखकर बोलता है,
राजेश :
तुम अस्तित्व में नहीं हो। तुम हकीकत में नहीं हो।
यह कहकर राजेश कमरे की दूसरी ओर जाने लगता है।
खत्री :
मुझे लगता है कि तुम गुस्से में हो।
राजेश पलटता है और गुस्सेभरी हँसी से खत्री के नजदीक आता है।
राजेश :
किस बात से गुस्सा हो सकता है मुझे? मोह-माया से गुस्सा?
राजेश खत्री के चेहरे की तरफ हाथ बढाता है, मानो यह जानना चाहता हो की वह
खत्री के चेहरे को छू भी सकता है या नहीं।
खत्री उसके बढ़ते हाथ को पकड़ लेता है।
खत्री :
मेरे चेहरे को हाथ लगाने की इजाजत नहीं दी है मैंने तुमको।
खत्री राजेश का हाथ छोड़ता है। राजेश अपना हाथ वापिस ले लेता है।
राजेश :
(विस्मय से) वाह! क्या बात है! "मेरे चेहरे को हाथ लगाने की इजाजत नहीं दी है
मैंने तुमको।"
राजेश थोड़ा दूर हो जाता है।
राजेश :
(हँसते हुए) तुमने तो मुझे डरा ही दिया था।
खत्री नीचे पड़े पेन को वापिस अपने हाथ में ले लेता है।
खत्री :
तुमको क्या लगता है, कि क्या करना चाहिए?
राजेश को इस बात का मतलब न समझता देख खत्री दोहराता है,
खत्री :
अगर तुमको ऐसा लगता है कि यह एक सपना है, तो तुम्हारे हिसाब से क्या करना
चाहिए?
राजेश मुस्कुराता है जैसे सब समझ गया हो।
राजेश :
मुझे कुछ भी नहीं करना है। मैं किसी भी समय अपनी नींद से उठ जाऊँगा।
खत्री :
ठीक है। कोई बात नहीं। हम दोनों साथ में उस पल का इंतजार करें जब तुम अपनी
नींद से उठोगे?
राजेश :
तुमको जो करना है, तुम वो करो। मैं यहाँ से जा रहा हूँ।
राजेश कमरे के दूसरी ओर जाने की तरफ बढ़ता है जहाँ से खत्री अंदर आया था।
राजेश के इस रवैय्ये से खत्री पर कोई असर नहीं पड़ता है। अपनी कुर्सी पर
बैठे-बैठे ही खत्री राजेश से कहता है,
खत्री :
जब तक तुम नींद से उठ नहीं जाते, तब तक हम और थोड़ी बात कर लें?
राजेश रुक जाता है और अपने ऊपर ही हँसते हुए पलटता है।
राजेश :
क्या बात है। क्या आदमी हूँ मैं! क्या सपना बुना है मैंने! कितने विस्तार से
बुना है!
राजेश चारों तरफ कमरे को प्रशंतापूर्वक निहारता है।
राजेश :
(प्रशंसा से) कितना बारीकी का विवरण है।
राजेश मुस्कुराते हुए खत्री को देखता है।
राजेश :
और तुम तो इतने असली प्रतीत हो रहे हो कि क्या कहना! मेरे तो हाथ के रोंगटे
खड़े हो रहे हैं तुमको देखकर।
खत्री :
(और निराश होकर) वाकई।
राजेश :
मैं तो पहले सोफे पर बैठना भी नहीं चाहता था।
राजेश हँसते हुए सोफे तक जाता है।
राजेश :
(हँसते हुए) मुझे लगा कि तुम मेरे बारे में पता नहीं क्या सोचोगे।
खत्री :
अच्छा?
राजेश आराम से सोफे पर लेट जाता है अपने दोनों हाथ अपने सिर के पीछे रखकर।
राजेश :
(सोफे पर लेटे-लेटे ही) आदमी का दिमाग भी क्या कमाल की चीज है। हमारा दिमाग
हमको क्या क्या कमाल दिखा सकता है।
खत्री :
(गहरी साँस लेते हुए) बिलकुल।
राजेश मुस्कुराते हुए साँस लेता है।
राजेश :
बस अब मुझे आँखें बंद करना है और आराम से लेट जाना है।
राजेश आँखें बंद कर देता है।
राजेश :
इस सपने से लड़ने की जरूरत नहीं है मुझे।
खत्री :
(आवाज लगाते हुए) राजेश?
राजेश :
चले जाओ यहाँ से।
खत्री :
राजेश, तुमको नहीं लगता है कि तुम थोड़ा बचकाना व्यवहार कर रहे हो?
राजेश :
(आँखें बंद करके मुस्कुराते हुए) बिलकुल बचकाना व्यवहार है। अब मुझे अकेला छोड़
दो।
खत्री :
बच्चों की तरह जिद कर रहे हो तुम।
राजेश :
(मानों नींद में जाते हुए) यह सपना है...