विश्व मंच पर भारत जितना मजबूत होगा, भारत की भाषाएं भी उतनी ही मुखरता
से वैश्विक कार्यव्यवहार और व्यापार की भाषा के रूप में उभरेंगी
बारहवां विश्व हिंदी सम्मेलन फिजी के नांदी शहर में आयोजित हो रहा है। पहला विश्व हिंदी सम्मेलन नागपुर में 1975 में आयोजित किया गया था, जिसमें 30 देशों के प्रतिनिधि जुड़े थे। जहाँ तक विश्व भाषा के रूप में हिंदी की बात है तो 10 जून, 2022 हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के लिए एक ऐतिहासिक दिन सबित हुआ। इस दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित बहुभाषावाद संबंधी एक प्रस्ताव में पहली बार हिंदी भाषा का उल्लेख हुआ। प्रस्ताव में बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं के अतिरिक्त हिंदी, बांग्ला, उर्दू, पुर्तगाली, स्वाहिली और फारसी को संयुक्त राष्ट्र की सहकारी कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार किया गया। यह संयुक्त राष्ट्र के कामकाज के तरीके में बड़े परिवर्तन का संकेत है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की छह आधिकारिक भाषाएं हैं। इनमें अरबी, चीनी (मंदारिन), अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश शामिल हैं, किंतु संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के कामकाज की दो ही भाषाएं हैं- अंग्रेजी और फ्रेंच। बहुभाषावाद को संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी मूल्यों में गिना जाता है। इस संदर्भ में एक फरवरी, 1946 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के पहले सत्र में अपनाए गए सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 13 (1) का उल्लेख आवश्यक है। इसमें कहा गया था कि संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों को तब तक प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक कि दुनिया के लोगों को इसके उद्देश्यों और गतिविधियों के बारे में पूरी जानकारी न हो।
भारत इस उद्देश्य की प्राप्ति की राह में संयुक्त राष्ट्र के साथ खड़ा है। 2018 से ही भारत संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग के साथ साझेदारी कर रहा है, जिसका लक्ष्य हिंदी भाषा में संयुक्त राष्ट्र की पहुँच को बढ़ाना और दुनिया भर में हिंदी बोलने वाले लोगों को जोड़ना है। संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट और इसके इंटरनेट मीडिया खातों के माध्यम से हिंदी में संयुक्त राष्ट्र के समाचार पहले से ही प्रसारित किए जा रहे हैं। यह भी एक तथ्य हैं कि हिंदी, बांग्ला और उर्दू बोलने वालों की कुल संख्या मंदारिन बोलने वालों से अधिक हैं। इन भारतीय भाषाओं को स्वीकार करने से संयुक्त राष्ट्र की पहुँच एक अरब आबादी तक सीधे बन गई है, लेकिन ध्यान रहे कि केवल संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा होने से भारतीय भाषाओं का प्रश्न हल नहीं होता है।
हाल में संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबूधाबी ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अरबी और अंग्रेजी के बाद हिंदी को अपनी अदालतों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में शामिल किया है। यह विश्व में हिंदी को मिल रहे सम्मान की एक और मिसाल है। हिंदी दुनिया में तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। फिजी में भी हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। नेपाल, मारीशस, त्रिनिदाद एवं टोबैगो और सूरीनाम जैसे देशों में भी हिंदी प्रमुखता से बोली जाती है। हिंदी को विश्व भर में लोकप्रिय बनाने और उसे संयुक्त राष्ट्र की एक आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किए जाने की दिशा में प्रयास भी जारी हैं। इस संबंध में पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का एक वक्तव्य महत्वपूर्ण है। संसद में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को एक आधिकारिक भाषा बनाने में सबसे बड़ी समस्या संयुक्त राष्ट्र के नियम हैं। संयुक्त राष्ट्र के नियम के अनुसार संगठन के 193 सदस्य देश के दो तिहाई सदस्यों यानी 129 देशों को हिंदी के लिए वोट करना होगा और इसकी प्रक्रिया के लिए वित्तीय लागत भी साझा करनी होगी।
इस वजह से हिंदी को समर्थन करने वाले आर्थिक रूप से कमजोर देश इस प्रक्रिया से दूर भागते हैं। भारत सरकार इस संबंध में फिजी, मारीशस और सूरीनाम जैसे देशों से समर्थन लेने की कोशिश कर रही है, जहाँ बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। जब भारत को इस तरह का समर्थन मिलेगा और समर्थन करने वाले देश वित्तीय बोझ को भी सहने के लिए तैयार हो जाएंगे, तब हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बन जाएगी।
इन सभी विसंगतियों के बीच 2014 के बाद मोदी सरकार ने वैश्विक स्तर पर हिंदी को पहचान दिलाई है। कई अवसरों पर भारतीय नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में अपने वक्तव्य दिए हैं। विश्व मंच पर भारत जितना मजबूत होगा, भारत की भाषाएं भी उतनी ही मुखरता से वैश्विक कार्यव्यवहार, व्यापार और राजनय की भाषा के रूप में उभरेंगी। आज संसद के दोनों सदनों में हिंदी में कामकाज का प्रतिशत बढ़ा है। हिंदीतर भाषाभाषी राज्यों के संसद में अंग्रेजी के बजाय हिंदी में चर्चा को प्रधानता देते हैं। भारत सरकार के विदेशी दौरे में जाने वाले प्रतिनिधिमंडलों में भी हिंदी में बातचीत की प्रवृत्ति बढ़ी है। अमेरिका की सरकार ने अपने विदेश मंत्रालय की वेबसाइट का हिंदी अनुवाद प्रारंभ किया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदी में याचिका स्वीकार करना प्रारंभ किया है। देश की प्रतिष्ठित प्रौद्योगिकी संस्थाओं आइआइटी, एनआइटी आदि में हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के माध्यम से पढ़ाई प्रारंभ हुई है।
15 अगस्त, 2022 को लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता के अमृतकाल के दौरान हर भारतीय को पांच प्रण लेने का आह्वान किया, जिनमें एक यह भी था कि दासता का कोई चिह्न नहीं रहने देंगे। अगर अंग्रेज शासकों की भाषा अंग्रेजी जारी रहती है तो दासता के भाव से मुक्ति संभव नहीं है। ज्ञान-विज्ञान, अनुसंधान एवं प्रशासन की भाषा, न्याय, शासन और संचार की भाषा अंग्रेजी ही बनी रहती है तो औपनिवेशिक दासता कायम ही रहेगी। पराई भाषा में स्वराज और स्वबोध का वास्तविक रूप में मूर्त होना संभव नहीं है। इसके लिए देश को स्वभाषा को स्वीकार करना पड़ेगा। अपनी सांस्कृतिक भूमि की निर्मिति केवल स्वभाषा से ही संभव है। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में कामकाज, विचार-विमर्श गुलामी के सभी दृश्य-अदृश्य बिंबों को मुक्त कर सकता है। भारतीय मेधा को समीक्षात्मक मेधा और सृजनात्मक कल्पना से भर सकता है।