hindisamay head


अ+ अ-

कविता

पहली बार

विमलेश त्रिपाठी


जब पहली बार मैंने प्यार किया
तो सोचा -
इसे सच कर रख दूँगा
जैसे दादी अपने नैहर वाली बटलोही में
चोरिका संचती थी

उछाह में दुलारूँगा, जैसे अपने रूखर हाथों से
दुलारते थे बकुली बाबा, झँवराये हुए धनहा जजाति को
जीवन भर निरखूँगा निर्निमेष
आँखों में मोतिया के धब्बे बनने के बाद भी
अमगछिया के रखवारे
टूँआ हरिजन की तरह

जब पहली बार मैंने प्यार किया
तो समझा -
सपना केवल शब्द नहीं, एक सुन्दर गुलाब होता है
जो एक दिन
आँखों के बियाबान में खिलता है
और हमारे जीने को
देता है एक नया अर्थ
(अर्थ, कि आत्महत्या के विरुद्ध एक नया दर्शन)

जब पहली बार मैंने प्यार किया
तो महसूस हुआ
कि हर सुबह पूरबारी खिड़की से
सूरज की जगह, अब मैं उगने लगा हूँ

और कोईरी डोमिन की रहस्यमय मुस्की में
कहीं-न-कहीं मेरी सहमति शामिल है

हर सुबह बिनने लगी है
महुए के फूलों की जगह वह
क्षण के छोटे-छोटे महुअर
याकि मन के छोटे-छोटे अन्तरीप

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में विमलेश त्रिपाठी की रचनाएँ