ये जो किस्सा मैं सुनाने जा रही हूँ, इसे मेरी एक दोस्त अपरा ने कुछ दिनों पहले मुझे सुनाया था। तब वह कनाडा की एक यूनिवर्सिटी से साइकोलॉजी में रिसर्च कर रही थी।
अपरा को एक दिन उसके एक प्रोफेसर ने डिनर पर बुलाया। अपरा खुशी-खुशी जा पहुँची। दरवाजे की घंटी बजाई। प्रोफेसर साहब ने दरवाजा खोला, बड़े जोशीले अंदाज में स्वागत किया। Welcome Apara, come come. फिर उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज लगाई। Nikole, look who is here? फिर उन्होंने दोनों का आपस में परिचय कराया। दो मिनट वहाँ बैठने के बाद वे उठ खड़े हुए और बोले, Nikole, you talk to Apara and I go and cook meanwhile. अपरा निकोल से बात करने लगी। बीच-बीच में वो आते और पूछ जाते, Apra, are you comfortable? Would you like to drink something? Tea, coffee, Lassi? लस्सी? कनाडा में लस्सी सुनकर उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ। लस्सी का लालच भी था और थोड़ा संकोच भी।
'Sir, Lassi will take time.'
'No, no, I make it in two minutes.'
और सचमुच दो की जगह पाँ मिनट में प्रोफेसर साहब एक जग भरकर लस्सी लेकर हाजिर हो गए। आधे-पौने घंटे में खाना भी तैयार हो गया। दस-बारह तरह की अलग-अलग डिशें मेज पर सजा दी गईं। इसके बाद उन्होंने अपनी बेटियों को आवाज दी। दो छोटी लड़कियाँ उछलते-कूदते खाने की मेज पर आ धमकीं। खाना सचमुच बहुत स्वादिष्ट था। अपरा ने मजे से खाया। अभी तक साइकोलॉजी पर उनसे डिस्कस करके उनके ज्ञान के आगे नतमस्तक अपरा अब उनकी पाक कला से भी अभिभूत थी। उस रात के डिनर में उनकी पत्नी निकोल की कोई भी भूमिका नहीं थी। इससे पहले कि हिंदुस्तानी लड़की एक सदमे से बाहर निकलती, प्रोफेसर ने उसे दूसरा झटका दिया। खाना खत्म होते ही वो बोले, Apara, would you like to have some Laddu? ये कहते हुए उन्होंने फ्रिज में से बेसन के लड्डुओं का एक डिब्बा निकाला और बोले, I have prepared this Laddu at home. This time sugar is not proper but last time it was perfect.
रात बहुत हो गई थी। सो उन्होंने अपरा को रात वहीं रुक जाने के लिए कहा। उन्होंने उसे एक अलग कमरा दे दिया और वो तानकर सो गई।

अगले दिन सुबह जब अपरा की आँख खुली तो हल्के से खुले दरवाजे के बाहर दूसरे कमरे में उसे प्रोफेसर की पीठ नजर आई। वे बिस्तर पर दूसरी ओर मुँह करके बैठे थे। पीठ हल्की झुकी-सी। कुछ कर रहे होंगे, सोचकर अपरा फिर तानकर सो गई। एक घंटे बाद फिर उसकी नींद खुली तो आँख मलते उसने देखा कि प्रोफेसर अब भी ठीक उसी मुद्रा में इस ओर पीठ किए बैठे थे। उसे जिज्ञासा हुई। वह कमरे से बाहर आई और मुँह धोने के बहाने उस ओर गई। फिर तो उसने जो देखा, वह चौबीस घंटे के अंदर तीसरा झटका था। प्रोफेसर साहब अपनी छोटी बेटी के लिए एक प्यारा-सा गुलाबी रंग का स्वेटर बना रहे थे। उन्होंने आधे से भी ज्यादा बुन डाला था।
मैं उन प्रोफेसर का नाम नहीं बताऊँगी। वो साइकोलॉजी के क्षेत्र में दुनिया के बड़े नामों में से एक हैं। उनके फेसबुक अकाउंट में मनोविज्ञान से जुड़े दिलचस्प शोधों और बातों के साथ-साथ किसी दिन उस गुलाबी स्वेटर की तस्वीर होती है, जो उन्होंने अपनी बेटी के लिए बुना है, किसी दिन निकोल के लिए बुने गए किसी स्कार्फ की, बड़ी बेटी के लाल मोजों की तो कभी बच्चों के लिए बनाई उनकी फेवरेट डिश की तस्वीर भी। पत्नी और बेटी ही नहीं, वो अपने प्यारे दोस्तों और स्टूडेंट्स को भी लाल स्कार्फ बुनकर बड़े प्यार से गिफ्ट देते हैं।
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