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कविता

पृथ्वी पर आसमान

रविकांत


सर्वांग चिन्न
दो बिन्ना पृथ्वी
ऊपर एक आसमान
याद कर
वह मद्धिम
पहुँच रही चीख
खिन्न हैं
सूर्य, तारक-गण
इसीलिए
भयावह हैं आकृतियाँ
दहशत में मरुत

कितनी रुग्ण है
आकाश की यह राक्षसी देह

खुशरंग साथिनों की दमक के सिवा
कुछ नहीं है पृथ्वी पर
काम का

 


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