सर्वांग चिन्न दो बिन्ना पृथ्वी ऊपर एक आसमान याद कर वह मद्धिम पहुँच रही चीख खिन्न हैं सूर्य, तारक-गण इसीलिए भयावह हैं आकृतियाँ दहशत में मरुत
कितनी रुग्ण है आकाश की यह राक्षसी देह
खुशरंग साथिनों की दमक के सिवा कुछ नहीं है पृथ्वी पर काम का
हिंदी समय में रविकांत की रचनाएँ