कविता
धूप कोठरी के आइने में खड़ी शमशेर बहादुर सिंह
धूप कोठरी के आइने में खड़ी हँस रही है पारदर्शी धूप के पर्दे मुसकराते मौन आँगन में मोम-सा पीला कोमल नभ एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को बहुत नन्हा फूल उड़ गई आज बचपन का उदास माँ का मुख याद आता है
(1959)
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