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धरो शिर
हृदय पर
वक्ष - वह्नि से, -- तुम्हें
मैं सुहाग दूँ -
चिर सुहाग दूँ!
प्रेम - अग्नि से - तुम्हें
मैं सुहाग दूँ।
विकल मुकुल तुम
प्राणमयि,
यौवनमयि,
चिरवसंत - स्वप्नमयि,
मैं सुहाग दूँ :
विरह - आग से, - तुम्हें
मैं सुहाग दूँ !
(1941)
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