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मूँद लो आँखें
शाम के मानिंद।
जिंदगी की चार तरफें
मिट गयी हैं।
बंद कर दो साज के पर्दे।
चाँद क्यों निकला, उभरकर...?
घरों में चूल्हे
पड़े हैं ठंडे।
क्यों उठा यह शोर?
किस लिए यह शर?
छोड़ दो संपूर्ण - प्रेम,
त्याग दो सब दया - सब घृणा।
खत्म हमदर्दी।
खत्म -
साथियों का साथ।
रात आयेगी
मूँदने सबको।
(1945)
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