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					(गंगा पर,  फाफामऊ के पास) 
					                                      रेती पारस्निग्ध अचल धारा में धीरे-धीरे
 डूब रहा था...
 सूर्य
 
 
					        पीछे छूट रही थींगाती हुई टिटिहरियाँ
 और सघन करती-सी
 रुकी हवा का धुँधला नीला मौन।
 
 
					दूर से निकट आता धीरे-धीरेभारी छायाओं की महराबों का
 गंगा का लंबा पुल
 सहसा
 ऊपर व्योम में सहज
 डूबा हुआ खड़ा था!
 
 
					मौन हमारी नाव मानोस्वयं दीया-बाती का समय
 या कि
 जन्म दिवस हो जैसे मन के कवि का
 दूर लिये जाती हो जिसको संध्या
 अपने प्रिय रजनी के पूनम द्वीप।
 
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