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					मैं भटक गया हूँ आकाश में - क्या करूँ? 
					वही बताये जिसे प्राप्त है उसका स्नेह 
					ओ दांतें की खेल-तश्तरियों 
					आसान नहीं था खनकना तुम्हारे लिए। 
					 
					जिंदगी से मुझे अलग किया नहीं जा सकता, 
					उसे स्वप्न आते हैं मारने और दोबारा प्यार करने के 
					कि आँख, नाक और आँखों के कोहरे से 
					फ्लोरेंस का अवसाद टकराता रहे। 
					 
					नहीं, मेरी खोपड़ी को न पहनाओ 
					इतना कँटीला, इतना स्नेहभरा यह जयमाल, 
					इससे अच्छा होगा फोड़ डालो मेरा हृदय 
					नीली आवाज के टुकड़ों पर! 
					 
					अपना काम पूरा कर जब मरने लगूँ 
					मैं-जिंदा लोगों का जिंदगी भर का दोस्त 
					और खुले, और ऊँचे, मेरी छाती में 
					आकाश के गूँज उठें निर्बाध स्वर। 
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