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					वे कभी नहीं जान पायेंगे कि रात को क्या हुआ जबतुम देह को सहलाते अँधेरे में पनाह ले रहे थे
 जब कि खिड़की में सड़क आसमान तक
 पसरी पड़ी थी
 ऐसी कोई राह नहीं थी जो ब्रह्मांड के भूलभुलैये में
 छोटी गली ना पकड़ती हो
 छालों से भरे उनके दैविक पदचिह्न बर्फ पर फिसल रहे थे
 और मस्त्य अपने को दलदली चट्टानों पर चिह्नित कर रही थीं
 वे नहीं जानते थे कि क्या होगा
 उस रात जब वे रेंगते कीड़ों वाली धर्मशाला में पनाह ले रहे थे
 जब आग ने अपनी कालिख राख
 तुम्हारे सीने के रहस्यों पर डाल दी
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