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					घाट 
				
					सरयू के घाट पर 
					सूर्य की किरणों के परावर्तन से 
					चमकती लहरों में 
					अपने हाथों-पाँवों को धोते 
					और मुँह पर पवित्र 
					सरयू-जल के छींटे मारते 
					मैंने यही सोचा कि 
					एक सफल 
					प्रजावत्सल जीवन 
					जीने के बाद भी 
					राम को अतीव 
					दुख का कौन-सा नगीना 
					शूल की तरह 
					चुभ रहा था हृदय में 
					कि उन्होंने अपने परिजनों, 
					कुटुंबियों, 
					मित्रों-अनुचरों सहित - 
					किया सामूहिक आत्मोत्सर्ग? 
					क्या वह दुख था 
					पत्नी और 
					सर्वाधिक प्रिय अनुज 
					की आत्महत्या का! 
					कारण जिसके 
					वे स्वयं थे? 
					किसी भी महान आत्मा का अंत 
					क्यों होता है दुखद 
					और अपने 
					अंतिम क्षणों में वह 
					क्यों महसूस करता है 
					एकाकी? 
					क्यों होता है उसे मोहभंग? 
					चाहे वह कृष्ण हों, 
					बुद्ध हों, 
					यीशु हों, 
					हजरत मोहम्मद हों 
					या फिर 
					गांधी ही क्यों न हों? 
					क्या दुख ही है 
					जीवन का अंतिम सत्य? 
					जो बहेगा अंततः 
					सरयू के 
					चमकते हुए 
					निरंतर 
					प्रवाहमान जल में? 
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