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लोककथा

बेजुबान

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


एक बार मैं एक ऐसे आदमी से मिला जिसके कान बेहद चौकन्ने थे, लेकिन वह गूँगा था। उसकी जीभ एक युद्ध के दौरान कट गई थी।

आज मैं जानता हूँ कि गहरी खामोशी में जाने से पहले उसने कौन-सा युद्ध लड़ा होगा। मुझे खुशी है कि वह अब जिन्दा नहीं है।

हम दोनों के ही लिए यह दुनिया बहुत बड़ी नहीं है।


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हिंदी समय में खलील जिब्रान की रचनाएँ