कल मैंने दार्शनिकों को बाज़ार में देखा। अपने सिरों को टोकरी में रखकर वे चिल्ला रहे थे - "बुद्धि… ऽ… ! बुद्धि ले लो… ऽ… !"
बेचारे दार्शनिक! अपने दिलों को खुराक देने के लिए उन्हें सिर बेचने पड़ रहे हैं।
हिंदी समय में खलील जिब्रान की रचनाएँ