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लोककथा

सात कबूतर

खलील जिब्रान

अनुवाद - बलराम अग्रवाल


सात सौ साल पहले सात सफेद कबूतर घाटी की गहराई से बर्फ-से सफेद पहाड़ों की ओर उड़े।

उनकी उड़ान को देखने वाले सात लोगों में से एक ने कहा, "सातवें कबूतर के परों पर मुझे एक काला धब्बा नजर आ रहा है।"

आज उस घाटी के लोगों को सफेद पहाड़ों की ओर उड़े वे सातों ही कबूतर काले नजर आते हैं।


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