कविता
नीला आकाश कह सकता है त्रिलोचन
प्रेम दबे पाँव चला करता है जाड़े का सूरज जैसे कुहरे में छिप कर आता है साँसों को साध कर नयन पथ पर लाते हैं आना ही पड़ता है कुहरे में उषा कब आई कब चली गई नीला आकाश यदि कहे कह सकता है राग उस पर बरसा था
हिंदी समय में त्रिलोचन की रचनाएँ