क्या करोगे शून्य प्राणों को भरोगे पथ कहाँ, वन जटिल तरु-घन, हरा कंटक - भरा निर्जन खेद मन का क्या हरोगे हवा डोली घास बोली आज मैंने गाँठ खोली फूल, तुम खिल - कर झरोगे
हिंदी समय में त्रिलोचन की रचनाएँ