आदि मनुष्य की खोपड़ी मिली जिसमें भूसा भरा था। धरती बनाते वक्त अकसर भगवान के हाथ डगमगाए थे जिसके परिणाम में पापों की सर्जना हो गई थी। पर भगवान ने पाप से भी अपने को खुश माना था। इसी खुशी में उसने भूसे वाले इस मनुष्य का निर्माण किया था और इसे अपना चरित्र लिखने का उत्तरदायित्व सौंपा था। बात यह थी कि भूसेदार मनुष्य की बजाय यदि कुशल तथा प्रखर मनुष्य के हाथों भगवान का चरित्र लिखा जाता तो उस की बहुत सारी भूलों और विशेष कर पापों से उस के खुश होने की भर्त्सना होती। वैसी परिस्थिति में यदि भगवान के यशोगान के लिए एक प्रार्थना स्थल बनता तो वहीं बगल में बीसियों श्मशान घाट बनाए जाते ताकि भगवान को सामने मान कर उस की अरथी जलायी जाए।
दिमाग से भूसेदार आदमी भगवान का चरित्र लिखने से आदि ऋषि कहलाया। उस ने भगवान का काम किया, इसलिए भगवान के सदा होने में उसका भी होना शामिल हो जाने से वह आदि ऋषि कहलाया।