हम बार-बार उजड़ते हैं तो बसने की कहानियाँ भी दुहराते हैं बार-बार ये और कुछ नहीं बस लीला है मनुष्य की अपरंपार !
हिंदी समय में चंद्रेश्वर की रचनाएँ