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हजारहा अखबारों, टी.वी., न्यूज चैनलों में आ रही
खबरों के अलावा भी
बची रह जाती हैं
कुछ खबरें
दमन, पीड़ा और प्रतिरोध की
वे बची रहेंगी अब भी
छटपटाती, सिसकती और चीखती
किसी कोने-दराज में दबी...
जबकि जमाना है सोशल मीडिया का भी
उन खबरों तक नहीं पहुँच पाएगा
जब कोई
तब किसी कवि की निगाह जाएगी जरूर
उन पर
फिर वह दर्ज करेगा उन्हें
शिद्दत से अपनी कविता में !
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