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कन्हैयालाल नंदन

संपादन - कन्हैयालाल नंदन

अनुक्रम अज्ञेय के पत्र पीछे     आगे

श्री :
चिरगाँव
12.2.51

प्रियवर,

आपके अस्पताल में होने की बात जानकर चिन्ता में था कि दद्दा के नाम आपके पत्र को पढक़र कुछ चिन्ता मिटी। कुछ ही। क्योंकि श्रीनिवास से कही वह बात ध्यान में है कि अच्छा हूँगा तो फिर भेड़ाघाट का स्नानार्थी (भेड़ा?) बनूँगा। आप समझते हैं कि आप बौद्धिक हैं, इसलिए ‘भेड़ा’ नहीं बन सकते। पर ऐसी दु:साहसिकता, जिससे आप अपने बन्धुओं को चिन्तित ही करें क्या किसी ख्याति वाञ्च्छा का ‘भेड़ा’ बनना नहीं है? मैं तो समझता हूँ, है। पर यह अप्रिय प्रसंग जाने दूँ। पत्र लिखकर कुछ चिन्ता दूर कर दी, इस समय यही बहुत है।

भैया कल इलाहाबाद-काशी के लिए प्रस्थित हुए। मैं भी तैयार था, पर जी नहीं बोला। आपका पत्र उनके पास भेज रहा हूँ। सुमित्रा भी उनके साथ ही गये हैं।

मैं इधर दूसरे काम में लगा हूँ। इसलिए ‘प्रतीक’ के लिए कुछ दिन की और छुट्टी रहेगी।

‘जयदोल’ मिल गया। एक कहानी पढ़ी। नाम नहीं बताऊँगा। इसमें योग्यता का परदा खुल जाने से बच जाता हूँ। पर इधर बहुत समय से ऐसी सुन्दर कहानी नहीं पढ़ी थी। परसों पढ़ी थी। लगता है, कोई बढिय़ा आम खाने को मिला था। दो दिन होने को हैं, पर बीच-बीच में उसकी सुगन्धित डकार से जी प्रसन्न हो जाता है।

सस्नेह,
सियारामशरण
16.11.62

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